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बिना किसी सबूत वाली जी न्यूज की यह खबर सेना के माथे पर कलंक लगा गई

मीडिया            Jul 19, 2016


आशुतोष कुमार। इंडियन एक्स्प्रेस में आज 2009 की यूपीएससी परीक्षा में टॉप करने वाले और कश्मीर में तैनात आईएएस शाह फ़ैसल का एक लेख छपा है जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे राष्ट्रीय मीडिया के प्राइम टाइम जोश की वजह से कश्मीर भारत से दूर जा रहा है। इसकी एक बानगी कल ज़ी न्यूज़ में सुधीर चौधरी का डीएनए भी था। इसमें राहुल सिन्हा की रपटों के आधार पर तमाम 'राष्ट्रवादी झूठ' परोसा गया। हद तो यह हो गई कि राहुल ने दिल्ली में एक पूर्व ख़ुफ़िया अधिकारी से बातचीत के ज़रिये दि्ल्ली के कई पत्रकारों को 'अलगाववादियों जैसी भावना 'रखने का आरोप लगाया और सवाल उठाया कि सरकार उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई क्यों नहीं करती।बहरहाल, दाढ़ी और फ़िरन के साथ बहुरुपिया बनकर रिपोर्टिंग करने वाले राहुल सिन्हा ने अपने 'राष्ट्रवादी जोश' में भारतीय सेना पर भी कलंक लगा दिया। उन्होंने पीओके और भारत को जोड़ने वाले 'अमन सेतु ' के ज़रिये बार्टर पद्धति से कारोबार करने वाले व्यापारियों पर घपले का आरोप लगाते हुए कहा कि वे चोरी से बचाये पैसे, कट्टरपंथियों तक पहुँचाते हैं । रपट में इसका कोई सुबूत नहीं था, लेकिन जोश में राहुल सिन्हा भूल गये कि पुल की सुरक्षा और देख-रेख भारतीय सेना के हवाले है। यानी इस घपले में सेना भी शामिल है। आशुतोष कुमार ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए क्या लिखा है, पढ़िये— टीवी पत्रकारिता में जब झूठ और सच की कोई परवाह नहीं रह जाती , जब एकमात्र मकसद येन-केन-प्रकारेण सत्ताधारी दल के राजनीतिक एजंडे को आगे बढ़ाना हो जाता हो , तब कभी- कभी कुल्हाड़ी अपने ही पैरों पर लग जाती है। आज ज़ी न्यूज़ के साथ यही हुआ। यह चैनल ख़ुद को हमेशा भारतीय सेना के परम पैरोकार की तरह पेश करता रहा है। सेना द्वारा अतिरिक्त शक्ति के प्रयोग की हर चर्चा को वह देश के साथ गद्दारी के रूप में पेश करता है, लेकिन आज की घटना से स्पष्ट हो गया कि ज़ी न्यूज़ की असली वफ़ादारी अपने राजनीतिक आकाओं के प्रति है ,भारतीय सेना के प्रति नहीं । कश्मीर के बारामुला जिले के उरी शहर के पास कमान अमन सेतु है । जम्मू – कश्मीर और पाक अधिकृत कश्मीर को जोड़ने वाला पुल। सन 2006 में यह पुल भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार के लिए खोला गया । आज (18.7.2016) अपने लोकप्रिय नौबजिया कार्यक्रम डीएनए में चैनल संपादक सुधीर चौधरी ने दिखाया कि इस सीमा पर व्यापार की आड़ में भारी मात्रा में काला धन कश्मीर में भेजा जा रहा है। यह काला धन कश्मीर में वहाबी विचारधारा को तेजी से फैलाने में किया जा रहा है। यह आरोप सीधे सीधे भारतीय सेना के माथे पर कलंक का टीका लगा रहा है , क्योंकि सेतु पर व्यापार भारतीय और पाकिस्तानी सेना की देखरेख में होता है। प्रश्न उठता है कि क्या सेतु पर तैनात भारतीय सेना अपने कर्तव्य के प्रति लापरवाह है ? या यह कि वह सीधे-सीधे ऐसे अनैतिक देशविरोधी व्यापार को संरक्ष्ण दे रही है ? या क्या वह पाकिस्तानी व्यापारियों , आतंकियों और सैनिकों के साथ मिल गई है ? अगर इन तीनों बातों में से कोई भी सच नहीं है तो आखिर सेतु पर आतंकी काले धन की आवाजाही कैसे हो रही है ? क्या ज़ी न्यूज़ की इस रिपोर्ट में संशय की सुई भारतीय सेना की तरफ नहीं घुमा दी गई है ? याद रहे, यहाँ सीमा के आरपार चल रहे किसी गुपचुप व्यापार की बात नहीं हो रही है, सेतु पर सेना की देखरेख में चलने वाले आधिकारिक व्यापार की बात हो रही है। ऐसी व्यापार में आतंक फैलाने के मकसद से होने वाली चोरबाजारी की ज़िम्मेदारी सीधे सीधे भारतीय सेना पर आयद होती है। rahul-sinha-sudhir-choudhri अजीब बात यह है कि रिपोर्ट में कोई सबूत पेश नहीं किया गया । सबूत का एक तिनका भी नहीं । सबूत छोडिए , ऐसी किसी घटना का ज़िक्र तक नहीं किया गया । फिर भी राहुल सिन्हा की 'ज़मीनी रपट' के हवाले से दावा किया गया है कि सेतु पर धडल्ले से कालाबाज़ारी चल रही है, और इस ज़रिये उपार्जित किए गए काले धन को कश्मीर में आतंकी विचारधारा और बड़े पैमाने पर मस्जिदों को बनाने में इस्तेमाल किया जा रहा है । बिना किसी सबूत या सामग्री के पेश की गई यह रपट भारतीय सेना की निष्ठा पर सवाल खड़े करती है। अब या तो ज़ी न्यूज़ तत्काल सबूत पेश करे या इस 'गर्हित देशद्रोही पत्रकारिता' के लिए सेना से और देश से क्षमा मांगे। तभी इस कलंक से उपजी क्षति की भरपाई हो सकती है । आज शुरू हुई ' कश्मीर में अधर्म ' शीर्षक श्रृंखला में ऐसे ही और झूठ भी परोसे गए हैं। धडल्ले से . रंचमात्र सबूत न होने पर भी किसी खास या आम घटना का ज़िक्र तक न करते हुए मसलन यह कहा गया कि दिल्ली की जामा मस्जिद से कश्मीर जाने वाली बसों में आतंकियों के लिए नोट पहुंचाए जाते हैं ! क्या ऐसी कोई शिकायत सामने आई है ? कोई पकड़ा गया है ? किसी जिम्मेदार व्यक्ति ने ऐसा दावा किया है ? सारे सवालों का जवाब " नहीं " है , फिर भी इस ज़मीनी रपट में इस बेपर की खबर को सत्य की तरह उड़ाया गया है । aman-setu यही नहीं , इसी कार्यक्रम में यह दावा भी किया गया कि कश्मीरी नागरिकों के जो बच्चे विदेश पढने जाते हैं , उनके माध्यम से भी उस भारी काली धनराशी का भुगतान होता है, जिससे कश्मीर में आतंकवाद का प्रसार हो रहा है। इसका भी कोई सबूत या दृष्टांत नहीं दिया गया। यों तो ज़ी न्यूज़ फर्ज़ी रिपोर्टिंग के लिए पहले ही काफी बदनाम हो चुका है , लेकिन यह मामला अपनी मिसाल आप है। पूरे कार्यक्रम को ध्यान से देखिए तो साफ़ प्रकट हो जाता है कि कार्यक्रम का उद्देश्य कश्मीरियों और मुसलमानों के प्रति नफ़रत की विषैली आग भडकाने के सिवा और कुछ नही है। लेकिन ज़ी को होश ही नहीं है कि उसके अतिउत्साह से भारतीय राष्ट्र की महानतम संस्थाएं भी खतरे में पड़ गई हैं। देखना यह है कि इस गम्भीर मामले पर प्रमुख राजनीतिक दलों और स्वयम मीडिया नियंत्रक संस्थाओं का रुख क्या रहता है ? साभार मीडिया विजिल


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