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हिंदुस्तान अखबार को बताना चाहिए राजदेव के पास कौन सी सूचना थी कि हत्या हो गई

मीडिया            May 18, 2016


ravish-kumar-ndtvरवीश कुमार। हिन्दुस्तान अख़बार को ही बताना चाहिए कि राजदेव के पास कौन सी ऐसी सूचना रही होगी जिसके कारण कोई उसकी हत्या के बारे में योजना बना सकता है । हो सकता है किसी सहयोगी को कुछ भी पता न हो मगर इसकी पड़ताल होनी चाहिए । 2005 में जब राजदेव को मारने कुछ लोग आए थे और बीच बचाव करने गए साथी पत्रकार के सीने पर बंदूक तान दी थी तब इसकी प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज कराई गई । तब राजदेव को ऑपरेशन कराना पड़ा था । तर्क दिया गया है कि बदमाशों को नहीं पहचानने की वजह से प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई गई लेकिन ऐसी स्थिति में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज तो होती ही है । कई बार पत्रकार नहीं भी दर्ज कराते हैं मगर मारपीट से लेकर आपरेशन तक की नौबत आई होगी तो किसी ने पूछा नहीं कि मारने वाला कौन था ? क्या उस घटना का संबंध किसी ख़बर से रहा होगा ? इन सवालों के जवाब ज़रूरी है। हिन्दुस्तान अख़बार को राजदेव के कुछ डिसपैच के संकलन छापने चाहिए । जैसे इंडियन एक्सप्रेस ने अपने युवा फ़ोटोग्राफर की दुर्घटना मृत्यु के बाद रविवार को पूरे दो पन्ने छापे थे । उम्मीद है हिन्दुस्तान हत्या के विरोध में सफेद संस्करण छापने के साथ राजदेव के कार्यों को भी पाठकों तक ले जाने की उदारता दिखायेगा । इससे आप पाठक भी लाभान्वित होंगे क्योंकि राजदेव के संपर्क में आने वाले दिल्ली के कई वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि वो एक अच्छा पत्रकार था। ज़मीनी स्तर की काफी सूचनाएँ रहती थीं और उनके प्रति पेशेवर समझ भी । टीवी में आप मामूली प्रतिभा के दम पर साल दो साल में हम लोग कहाँ से कहाँ से पहुँच जाते हैं । अख़बारों की दुनिया काफी अलग है । उस सिस्टम में लोग उन्हीं पदों पर कई वर्षों तक पड़े रह जाते हैं । इसलिए राजदेव रंजन की पेशेवर छवि मांग करती है कि उसकी पुरानी रिपोर्ट के कुछ नमूने हम सभी तक पहुँचे । अंग्रेज़ी पत्रों की तरह हिन्दुस्तान भी राजदेव के महत्व को घटना से ज़्यादा महत्व दे । इस वक्त संस्थान के सदस्य गहरे सदमे में होंगे लेकिन ऐसा कर अख़बार अपने पाठकों के बीच ज़िंदा किये रहेगा । एक साथ नहीं तो रोज़ उसकी एक ख़बर छापे जिससे जाँच एजेंसियों पर दबाव बना रहे । राजदेव रंजन जैसे पत्रकार अपनी जोखिम पर ऐसी ख़बरों में हाथ डालते हैं । अख़बारों ओर चैनलों की हालत और स्तर क्या है आप जानते हैं । ख़ासकर हिन्दी पट्टी के । कोई एक अख़बार नहीं है जिसके तेवर संस्थान विरोधी हो या जो जुनूनी पत्रकारिता करता हो । पर पत्रकारों का अपना जुनून तो होता है । वो ऐसी ख़बरों के पीछे भागते रहते हैं । अलग अलग तरीके से साथी पत्रकारों के बीच बाँटते रहते हैं । आप हिन्दी के अख़बार पढ़ते होंगे । बहुत कम ख़बरें ऐसी होती हैं जो संस्थान विरोधी होती हैं । राष्ट्रीय और राजकीय स्तर पर चर्चित खोजी पत्रकारिता की ज़्यादातर बड़ी ख़बरें अंग्रेज़ी की होती हैं । हिन्दी में खोजी पत्रकारिता तो लुप्त ही हो गई है । हिन्दी अख़बारों का व्यवस्था से एक किस्म का सामंजस्य दिखता है । खोजी पत्रकारिता में चैनलों का हाल अब ख़राब हो गया है वर्ना एक समय हिन्दी चैनलों ने जुनून के स्तर पर खोजी पत्रकारिता की थी । आप जिन अखबारों और चैनलों के लिए महीने का पाँच सौ हज़ार ख़र्च करते हैं उनकी पत्रकारिता का मूल्याँकन तो कीजिये । चैनल तो बदल देते हैं लेकिन क्या आप अख़बार बदलते हैं ? कहीं आप निष्क्रिय पाठक तो नहीं हैं ? 2008 में भी हिन्दुस्तान अख़बार के पत्रकार विकास रंजन की हत्या हुई थी । हमें नहीं मालूम चल सका कि अख़बार ने उस हत्याकांड को किस तरह से फॉलो किया है । विकास के केस की क्या स्थिति है ? उसे सरकार और संस्थान की तरफ से कुछ मुआवज़ा मिला ? इसका भी अपडेट हिन्दुस्तान को लगातार छापना चाहिए । विकास रंजन ने हत्या से पहले शानदार स्टोरी छापी थी । साठ लाख की दवाओं से भरा ट्रक लूटा गया, फिर तमाम व्यापारियों ने लूट का माल ख़रीदा था । हम एंकरों को बिना बात के अनाप शनाप हर साल इनाम मिलते रहते हैं । मैं हैरान हूँ कि इस स्टोरी को कोई पुरस्कार क्यों नहीं मिला। राजदेव रंजन की हत्या को लेकर सबको सतर्क होना चाहिए । अख़बार उसके परिवार के लिए क्या करेगा इस पर भी बात हो । मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने कोष से उनके बच्चों की अच्छी पढ़ाई की व्यवस्था करें । आई आई टी की कोचिंग कराने वाले आनंद सर से निवेदन करें कि रंजन के बेटे को अपने यहाँ पढ़ने का मौका दे ताकि वो जीवन में अच्छा कर सके । क्या इस हत्या के तार शहाबुद्दीन से जुड़े हैं ? यह जानना बेहद ज़रूरी है क्योंकि हत्या सिवान में हुई है । राजद की मौजूदा कार्यकारिणी के सदस्य हैं शहाबुद्दीन । इसका मतलब है बारह साल से जेल में बंद शहाबुद्दीन का अब भी राजद में महत्वपूर्ण स्थान है । इस व्यक्ति की बिहार के जनमानस मे एक ख़ास छवि है । यह बुरे दौर का प्रतीक है । इसलिए इस हत्या को गंभीरता से लेना ही होगा। सिर्फ शूटर पकड़ा ही न जाए बल्कि पता लगाया जाए कि इतने पेशेवर ढंग से हत्या करने का प्रशिक्षण ये लोग कहाँ पाते हैं। सीबीआई जाँच से उत्साहित नहीं हूँ । बीजेपी को सीबीआई में इतना यक़ीन है तो पता करे कि आज तक के पत्रकार अक्षय सिंह की संदिग्ध हालात में हुई मौत की जाँच में क्या प्रगति हुई है । सीबीआई जाँच से होगा यह कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से राजनीतिक और जन दबाव हट जाएगा । लालू यादव भी फ्री हो गए । अब सीबीआई जाने । यही तू तू मैं मैं होगा कि मदद मिली या जांच नहीं हुई । फिर भी सीबीआई को जाँच दे दी गई है तो अब एजेंसी पर सारा दारोमदार है कि वो साबित करे कि इसमें शहाबुद्दीन शामिल हैं या नहीं । बीजेपी अब सीबीआई पर नज़र रखे । सुशील मोदी हर महीने प्रगति रिपोर्ट लेकर ट्वीट करें जिससे इस मामले में ज़रा भी कोताही न हो । यह हत्या उन पत्रकारों के अकेलेपन का दुखद मोड़ है जो कम पैसे में ख़ुद को बचाते हुए आप पाठकों के लिए काम करते हैं । सच पूछिये तो इनके प्रति किसी की कोई सहानुभूति नहीं है । आप पता कीजिये बीस साल से काम कर रहे राजदेव जैसे पत्रकार का वेतन क्या रहा होगा । जिन्हें जंगल राज में दिलचस्पी हैं वे छत्तीसगढ़ के जनसुरक्षा अधिनियम भी जानने का प्रयास कर सकते हैं जिसकी आड़ में कई पत्रकारों को जेल भेज दिया जाता है । जो बेहद कम पैसे में ग़रीब आदिवासियों के प्रति हो रहे पुलिसिया, कोरपोरेट और राजनीतिक शोषण के ख़िलाफ़ लिखते रहते हैं । बिना बीमा, वेतन और सुरक्षा के । कई बार ये पत्रकार जंगल राज बचाने के लिए लिखते हैं । पर उनके लिए छत्तीसगढ़ में जंगल राज का मतलब यह है कि जंगलों पर जिन आदिवासियों का राज है वो बचा रहे। आप जंगल राज करने वालों के फेसबुक पेज और ट्वीटर हैंडल पर जाकर देख सकते हैं कि उन्होंने छत्तीसगढ़ को लेकर कितनी चिंता जताई है । पंजाब में ज़ी न्यूज़ के किसी चैनल को बंद कर दिये जाने की ख़बर आई, आपने क्या इसके ख़िलाफ़ कोई हंगामा सुना ? स्थानीय स्तर पर प्रदर्शन भी हुए मगर सब चुप रह गए । किसी मंत्री ने बयान दिया ? चैनल ने ज़रूर ईंट से ईंट बजा दी होगी । महाराष्ट्र में किस पार्टी के लोग मीडिया संस्थानों के दफ्तर में घुस कर तोड़ फोड़ करते हैं, आप गूगल करेंगे तो उसका और उसके सहयोगियों का नाम मिल जाएगा । मजीठिया बोर्ड के तहत पत्रकारों के वेतन बढ़ाने की बात हुई तो कैसे पत्रकारों का हक मारा गया आप सबने देखा होगा । यह भी देखा सुना होगा कि किस तरह से सांसद, प्रवक्ता अख़बारों के दफ्तरों का दौरा कर पत्रकारों का समर्थन कर रहे हैं ? ओह आपने नहीं सुना ! तो आप पत्रकारिता की चिंता को लेकर ढोंग तो नहीं कर रहे ? कस्बा से साभार।


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