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दुर्गा उत्सव में मिलिये इस दुर्गा से,इसके हौसले का सलाम जरूर करेंगे आप

वामा            Oct 15, 2015


sandip-naik-articleसंदीप नाईक बैतुल से लौट ही रहा था कि स्टेशन पर एक युवा लड़की को ढेर सारा सामान ढोते हुए देखा तो मैं हैरत में पड़ गया मैंने उसे पास बुलाया और पूछा कि क्या मैं दो मिनिट बात कर सकता हूँ और तस्वीर ले सकता हूँ तो बहुत जोश और खुशी से बोली ...जी जरुर! मेरा नाम दुर्गा है। पिताजी के किसी घटना में पाँव खराब हो गये, घर में सात भाई-बहन हैं और कमाने वाला कोई नहीं, सो, मैंने यह कुली का काम ले लिया और अब बैतुल स्टेशन पर काम करती हूँ। अपनी उम्र 21 बरस बताते हुए थोड़ा अचकचा गई वो दुर्गा। दसवीं में फेल हो गई थी साहब सो पढ़ना छोड़ दिया, अब घर में काम करना पड़ता है पर दस साल बाद मैं ऐसी नहीं रहूंगी, ओपन से पढ़ रही हूँ और जल्दी ही सब पढ़ाई पूरी करके अच्छा काम करूंगी, स्टेशन पर सब मदद करते हैं, कोई छेड़छाड़ नहीं करता, यात्री भी जो मांगती हूँ -दे देते हैं। हाँ पर आप मुझे कमजोर ना समझें- मै 65 से 70 किलो तक का बोझ उठा लेती हूँ मैं किसी मर्द कूली से कम नहीं हूँ। सुबह आठ बजे आती हूँ देर रात नौ बजे तक रहती हूँ- स्टेशन मेरा घर है साहब। आप क्या कह रहे हैं लाड़ली लक्ष्मी योजना........अरे साहब वो तो 21 साल पूरा होने पर लड़की को देगी सरकार कुछ रूपया पर जब वो पढ़ लेगी तो सरकार के रूपये क्यों लेगी क्या लडकी में स्वाभिमान नहीं होता है.? पर इक्कीस साल तक वो क्या करेगी...और जब घर में ऐसी स्थिति हो तो सरकार के पास हमारे लिए कोई योजना है.....इस सवाल पर मैं अनुत्तरित था। पर बस सलाम करके लौट आया मैं। ट्रेन आ रही थी दुर्गा और मेरा सफर शुरू हो रहा था बस तुम्हारे हौसले और जज्बे की मैं कद्र करता हूँ सात भाई-बहन, माँ - बाप और तुम्हारी हिम्मत निश्चित ही काबिले तारीफ है और तुम्हारे सवाल हम सबके मुँह पर एक बड़ा तमाचा है। हम जो महिला सशक्तिकरण के लिए काम करते है और महिलाओं के लिए बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। पर तुम्हें हमारी जरुरत नहीं है क्योंकि तुम वास्तव में दुर्गा हो ....दुर्गा.......जिसका उत्सव चल रहा है। संदीप नाईक के फेसबुक वॉल से


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