रियो:भारत की नंबर-2 महिला बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु पहुंचीं प्री क्वार्टर फाइनल में

वामा            Aug 16, 2016


मल्हार मीडिया। भारतीय ओलंपिक टीम में पदक की दौड़ में अभी भी जो चुनिंदा खिलाड़ी बने हुए हैं, उनमें शामिल हैं बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु। भारत की नंबर-2 महिला बैडमिंटन खिलाड़ी पी. वी. सिंधु ने रियो ओलम्पिक के नौवें दिन रविवार को महिला एकल वर्ग के अपने दूसरे ग्रुप मुकाबले में जीत हासिल कर प्री क्वार्टर फाइनल में प्रवेश कर लिया। विश्व चैम्पियनशिप में दो बार ब्रॉन्ज जीत चुकीं सिंधु ने कनाडा की अपनी प्रतिद्वंद्वी मिशेल ली को तीन गेमों तक खिंचे मुकाबले में 19-21, 21-15, 21-17 से हराया। सिंधु को हालांकि जीत हासिल करने के लिए एक घंटा 11 मिनट तक कठिन संघर्ष करना पड़ा। सिंधु ने पहले गेम में ली को कड़ी चुनौती दी और हार मानने से पहले 24 मिनट तक कठिन संघर्ष किया। पीवी सिंधु का उदय ऐसे समय हुआ, जब एक और बैंडमिंटन स्टार साइना नेहवाल पहले से ही अपनी उपलब्धियों से सबका मन मोह रही थी। लेकिन सिंधु ने इसकी फ़िक्र किए बिना अपनी जगह बनाई. 21 वर्षीय सिंधु हैदराबाद के गोपीचंद बैडमिंटन एकेडेमी में ट्रेनिंग लेती है। 5 जुलाई 1995 को जन्मी सिंधु ने अपने करियर की सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग 2014 में हासिल की थी, जब वे नौवें नंबर तक पहुँची थी। फ़िलहाल वे रैंकिंग में 10वें नंबर पर हैं। सिंधु के माता-पिता दोनों ने पेशेवर वॉलीबॉल खेली है। उनके पिता रामन्ना को भी अर्जुन पुरस्कार मिल चुका है। लेकिन सिंधु ने बैडमिंटन चुना। उनके आदर्श हैं पुलेला गोपीचंद, जो 2001 में ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैम्पियन बने थे। सिंधु ने आठ साल की उम्र में बैडमिंटन खेलना शुरू किया था। सिंधु ने महबूब अली से बैंडमिटन की बुनियादी जानकारी ली। बाद में सिंधु पुलेला गोपीचंद की बैडमिंटन एकेडेमी पहुँचीं। 2010 में वे उबेर कप में भारतीय टीम का हिस्सा थीं। 2014 में सिंधु ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों में सेमी फ़ाइनल तक पहुँचीं। 2015 में वे डेनमार्क ओपन के फ़ाइनल तक पहुँचीं। जबकि इस साल सिंधु ने मलेशिया मास्टर्स ग्रां प्री में सिंगल्स का ख़िताब जीता था। 10 अगस्त 2013 को सिंधु पहली भारतीय सिंगल्स खिलाड़ी बनीं, जिन्होंने वर्ल्ड चैम्पियनशिप में मेडल जीता। वर्ष 2015 में सिंधु को पदमश्री से सम्मानित किया गया। सिंधु के बारे में ये भी कहा जाता है कि वे जो भी ठान लेती हैं, वो पूरा करके मानती हैं। उनके आदर्श गोपीचंद ने भी कई बार कहा है कि सिंधु कभी हार नहीं मानतीं।


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