यूपीए ने चुपचाप दफ्नाया सराय एक्ट, भाजपा भी कर रही फॉलो

वीथिका            Jan 15, 2015


अयोध्या से कुंवर समीर शाही वैसे तो अंग्रेजों और दूसरे विदेशी आक्रमणकारियों ने ‌हिंदुस्तान का जैसे हो सका शोषण किया, परंतु अंग्रेजों ने यहां बहुत अच्छे काम भी किए थे, जिनमें एक सराय एक्ट भी बनाया था। समाचार आया है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने चुपके से सराय एक्ट को भी दफना दिया ! और किसी को इसकी कानोकान ख़बर भी न लगी। ना जाने कैसे इस देश की सभ्यता और संस्कृति से प्रेरित यह सराय एक्ट वर्ष 1867 में अंग्रेजों ने बनाया था। इसमें बाध्यता थी, कि किसी भी पड़ाव, सराय, होटल या अन्य ऐसा स्थान, जहां व्यापारी या ग्राहक आकर रूकते हों, उसके मालिक को उनके लिए आते ही पानी का गिलास पेश करना होगा और उसका कोई पैसा ग्राहक या व्यापारी से नहीं लिया जाएगा। ऐसा न करने वाले पर सराय एक्ट में जुर्माने का भी प्रावधान था। मगर, न कोई विरोध, न हल्ला, न शोर उसे यूपीए सरकार ने खत्म कर दिया, क्योंकि शायद वह कानून पर कोई बोझ बन रहा था और भारतीय संस्कृति की बार-बार याद दिलाता था। भारत सरकार ने सराय एक्ट खत्म करने के बारे में कहा है कि यह एक्ट अब बूढ़ा हो चला था, इसकी वर्तमान में कोई प्रासंगिकता नहीं बची थी। पानी के बाजारीकरण को बढ़ावा देने की साजिश दरअसल केंद्र सरकार ने पुराने पड़ चुके व अप्रचलित कानूनों की समीक्षा के लिए पीसी जैन की अध्यक्षता में वर्ष 1998 में एक विशेष आयोग का गठन किया था। आयोग ने ऐसे करीब 1382 पुराने कानूनों की जांच-पहचान की, जिनमें से अब करीब 415 को निरस्त कर दिया गया है, जबकि 17 कानून निरस्त किए जाने की प्रक्रिया में हैं। कुछ अन्य कानूनों की भी समीक्षा यह आयोग कर रहा है। सराय एक्ट के संबंध में अगर गहनता से विचार करें तो प्रथम दृष्टया तो यही लगता है कि एक पुराना कानून था, चला गया, लेकिन अगर इस कानून के जाने को शक की निगाह से लें, तो लगता है कि कहीं जानबूझ कर तो सराय कानून को नहीं मिटा दिया गया है? संदेह करने का कारण बिल्कुल स्पष्ट है कि वर्तमान में जिस प्रकार से पानी का बाजारीकरण हुआ है, उसमें कहीं न कहीं सराय कानून बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बिजनेस पर असर डाल रहा था। व्यवहारिक रूप से देखा जा रहा है कि अब प्याऊ की जगह बोतल बंद पानी बिक रहा है। शिष्टाचार रूप से पानी के गिलास देने की परंपरा खत्म होती जा रही है। यह गिलास भी पानी की बोतल की कमाई में बहुत आड़े आ रहा था। सराय कानून का चले जाना इसी का नतीजा माना जाता है। आखिर ऐसा क्या नुकसान हो जाता अगर सराय कानून बना रहता? इसके मौजूद रहने से कौन सा पहाड़ टूट पड़ता? कुछ कानून विशेषज्ञों का अभिमत है कि अगर इस कानून को निरस्त नहीं किया जाता तो भविष्य में यह कानून पानी के बड़े बिजनेस पर आफत बनकर आ खड़ा हो सकता था। शिष्टाचार के नाम पर आज करोड़ों रूपयों का बोतलों में भरा पानी सरकारी बैठकों, सेमिनारों सम्मेलनों, पार्टियों, होटलों और समारोहों में पिया और पिलाया जाता है। सराय कानून कब तमाशा कर दे, निगाह गड़ाए बैठीं पानी बेचने वाली कंपनियों की नज़र में खटक रहा था। जब कोई मेहमान घर पर आता है तो उसे सबसे पहले पानी पिलाया जाता है। जेठ की दोपहरी में व चिलचिलाती गर्मी में धर्मलाभ कमाने के लिए श्रद्धालु प्याऊ लगाते हैं। कुछ लोग 12 महीने प्याऊ लगाकर रखते हैं तो कुछ गर्मी के दिनों में। जब थका-हारा कोई व्यक्ति किसी पेड़ के नीचे जाकर बैठता है और उसे ठंडा-शीतल जल पीने को मिल जाए तो उसे सुकुन मिलता है और उसका कुछ अंश पानी पिलाने वाला भी महसूस करता है। हिंदुओं में प्याऊ लगाकर पानी पिलाना धर्म-कर्म माना जाता है। पहले किसान के पास गांव में शक्का हुआ करते थे, जिनका काम चमड़े से बनी मसक लेकर पानी पिलाने का ही होता था। कुएं पर कपड़े धोते हुए महिलाएं आने-जाने वालों को पानी पिलाती रहती थीं। हम ऐसी संस्कृति में जन्मे-पले और बड़े हुए, लेकिन जब से पानी पिलाने के बदले पैसे का चलन बढ़ा है, हम मिट से गए हैं, मिटते जा रहे हैं। हमारी संस्कृति और सभ्यता चौपट हो रही है और हमारा धर्म गुमराही के रास्ते पर चला गया है। खतरे में भविष्य सराय कानून का जाना एक ख़तरनाक संकेत है कि भविष्य बहुत कठिन होने वाला है। एक ओर तो भूजल और सतही जल में षड़यंत्र के तहत जहर घोला जा रहा है, वहीं दूसरी ओर सराय जैसे कानून समाप्त किए जा रहे हैं। अब सरकार की यह भी तैयारी है कि सरकारी हैंडपंप न लगाए जाएं। प्रत्येक गांव में टंकी बनाई जाए और उसी से प्रत्येक घर को पानी दिया जाए तथा उससे उसका पैसा लिया जाए। ऐसा बहुत जल्द होने वाला है। इसलिए सराय कानून को पुनः नए रूप में जीवित किया जाना अति-आवश्यक है। अगर ऐसा नहीं होता है तो यह समझने में कतई भूल नहीं करनी चाहिए कि सरकारें पानी का व्यापार करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बहुत अधिक दबाव में हैं, जिनसे इन्हें मोटी दलाली मिलती है। पानी-पानी और पानी का हल्ला मचाकर लाखों-करोड़ों रुपए डकारने वाले स्वयं सेवी संगठन और इस देश का ऐसी समस्याओं के प्रति संवेदनहीन मीडिया आखिर कहां हैं, वे सराय कानून को पुनः बनाने की मांग क्यों नहीं कर रहे हैं? क्यों नहीं समाज को बता रहे हैं कि सराय कानून का जाना देश और समाज में अस्थिरता पैदा करेगा? कहां हैं तथाकथित पानी के सामाजिक सरोकारी?


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