शिवराज की सादगी: जब मजदूर ही न पहचान पाये यह मुख्यमंत्री हैं

वीथिका            Mar 05, 2016


manoj-kumarमनोज कुमार। शिवराजसिंह चौहान को आप किस रूप में देखते हैं? यह सवाल आपसे पूछा जाए तो स्वाभाविक रूप से जवाब होगा कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में लेकिन इससे आगे आपसे पूछा जाए कि एक आम आदमी के रूप में क्यों नहीं तो जवाब देने में थोड़ा वक्त लग सकता है। इस सवाल का जवाब देने में वक्त लगना स्वाभाविक है क्योंकि जिस कालखंड में हम जी रहे हैं अथवा पिछला समय हमने जो गुजारा है, उसमें व्यक्ति को उसके गुणों से नहीं बल्कि उसके पद और पद की हैसियत से पहचाना है। स्वाभाविक है कि शिवराजसिंह चौहान की पहचान एक मुख्यमंत्री के रूप में है और इतिहास के पन्नों में भी उन्हें इसी पहचान के साथ दर्ज किया जाएगा लेकिन सच तो यह है कि अपना सा लगने वाला यह मुख्यमंत्री हमारे बीच का, आज भी अपना सा ही है। शिवराजसिंह के चेहरे पर तेज है तो कामयाबी का लेकिन मुख्यमंत्री होने का गरूर नहीं, चेहरे पर राजनेता की छाप नहीं। सत्ता के शीर्ष पर बैठने की उनकी कभी शर्त नहीं रही बल्कि उनका संकल्प था प्रदेश की बेहतरी का। वे राजनीति में आने से पहले भी आम आदमी की आवाज उठाने में कभी पीछे नहीं रहे। वे किसी विचारधारा के प्रवर्तक हो सकते हैं लेकिन वे संवेदनशील इंसान हैं। एक ऐसा इंसान जो अन्याय को लेकर तड़प उठता है और यह सोचे बिना कि परिणाम क्या होगा, अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने निकल पड़ता है। बहुतेरों को यह ज्ञात नहीं होगा कि शिवराजसिंह चौहान मजदूरों को कम मजदूरी मिलने के मुद्दे पर अपने ही परिवार के खिलाफ खड़े हो गए थे। शिवराजसिंह चौहान का यह तेवर परिवार को अंचभा में डालने वाला था। मामूली सजा भी मिली लेकिन उन्होंने आगाज कर दिया था कि वे आम आदमी के हक के लिए आवाज उठाते रहेंगे। शिवराजसिंह चौहान उन बिरले मुख्यमंत्रियों में से एक होंगे जिनके कांधे पर हाथ रखकर सैकड़ों लोग मिल जाएंगे यह कहते हुए कि शिवराज हमारे साथ पढ़े हैं। ‘शिवराज हमारे साथ पढ़े हैं’, इसमें अपनापन तो है लेकिन एक भाव यह भी कि देखो हमारे साथ पढ़ा विद्यार्थी, हमारा दोस्त शिवराजसिंह आज मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री है। थोड़े से लोग इस बात पर गर्व करते हैं कि ‘हम शिवराजसिंह के साथ पढ़े हैं’ और थोड़े से लोग होंगे जो कहते मिल जाएंगे-‘शिवराजसिंह और हम साथ पढ़े हैं।’ शिवराजसिंह के साथ सहपाठी होने की यह गर्वानुभूति सालों गुजर जाने के बाद हो रही है तो इसलिए कि शिवराजसिंह चौहान जब भोपाल के अपने स्कूल ‘मॉडल स्कूल’ में जाते हैं तो मुख्यमंत्री बनकर नहीं, स्कूल के एक पुराने विद्यार्थी की तरह। शिक्षकों का चरण स्पर्श करना नहीं भूले। सहपाठियों को नाम से याद रखना और उन्हें संबोधित करना उनकी सादगी की एक झलक है। 1956 में जब नए मध्यप्रदेश का गठन हुआ और समय-समय पर मुख्यमंत्री बदलते रहे। हर मुख्यमंत्री की अपनी शैली थी। काम करने से लेकर जीवन जीने तक। लगभग सभी मुख्यमंत्री कुछ अलग दिखना चाहते थे या लोगों ने उन्हें वैसा प्रस्तुत करने की कोशिश की लेकिन 2005 में मुख्यमंत्री के इस परम्परागत चेहरे के विपरीत सादगी भरा एक चेहरा नुमाया हुआ शिवराजसिंह चौहान का। संसद से विधानसभा और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद भी उन्होंने अपने लिए कोई बनावट नहीं की। उनकी बुनावट इतनी मोहक थी कि कभी पांव पांव वाले भइया के नाम से मशहूर शिवराजसिंह मामा के नाम से मशहूर हो गए। ऐसा नहीं है कि शिवराजसिंह चौहान पहले मुख्यमंत्री हों जिन्हें विशेषण दिया गया बल्कि लगभग हर मुख्यमंत्री को उनकी कार्यशैली और उनके तेवर के अनुरूप विशेषण मिलता रहा है। कोई राजा-महाराजा कहलाए तो किसी को संवेदनशील होने का विशेषण दिया गया। संत और साध्वी के रूप में मध्यप्रदेश की सत्ता सम्हालने वाले भी थे लेकिन लगातार 11 वर्षों से सत्ता के शिखर पर बैठे शिवराजसिंह चौहान की सादगी चर्चा में रही। शिवराजसिंह चौहान की सादगी भारतीय राजनीति में उन्हें अलग तरह से रखती है. आमतौर पर मुख्यमंत्री बनते ही सलाहकारों की भीड़ उमड़-घुमड़ पड़ती है। ये सलाहकार उन्हें ‘आम’ से ‘खास’ बनाने में जुट जाते हैं और उनके इर्द-गिर्द एक ऐसा घेरा बना दिया जाता है कि आम आदमी के लिए वे सत्ता पुरुष बनकर रह जाते हैं। शिवराजसिंह चौहान ने ऐसे सलाहकारों से खुद को दूर रखा। ‘आम’ से ‘खास’ बनने में उनकी कोई रूचि नहीं रही सो वे जैसा थे, वैसा ही बना रहना चाहते हैं। लगभग हर जगह वे अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ पायजामा-कुरता में मिलेंगे। ऐसा नहीं है कि अपनी वेशभूषा के प्रति वे सर्तक ना हों। वे जब नेशनल मीडिया के कांफ्रेंस में जाते हैं तो गलाबंद सूट पहनते हैं या फिर यह सूट जब ग्लोबल इंवेस्टर्स मीट में उद्योगपतियों से रूबरू होते हैं तब आप देख सकते हैं। यह पहनावा दिखावा नहीं है बल्कि अवसर की जरूरत है और इससे परहेज नहीं किया जा सकता है। इससे इतर एक और ड्रेस उनका अपना प्रिय है जिसमें वे निहायत एक आदमी की तरह टीशर्ट और फुलपेंट में दिख जाते हैं। यह उनका प्रिय लिबास है जब वे सत्ता से अवकाश पर होते हैं। शिवराजसिंह की सादगी का आलम यह है कि वे गांव-देहात के दौरे के समय धूल भरी सडक़ में अपने लोगों के साथ बैठने में कोई हिचक नहीं करते हैं। आलम तो यह है कि जब वे सडक़ निर्माण का औचक निरीक्षण के लिए पहुंचते हैं और बताते हैं कि वे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान हैं तो मजदूर उन्हें पहचानने से इंकार कर देते हैंं। इस वाकये से शिवराजसिंह के चेहरे पर गुस्से का भाव नहीं आता है बल्कि वे हंसी में लेते हैं। साथ चल रहे अफसरों को कहते हैं चलो, भई यहां शिवराज को कोई पहचानता नहीं। क्या यह संभव है कि एक मुख्यमंत्री को उसकी जनता पहचानने से इंकार करे और वह निर्विकार भाव से लौट आए? यह सादगी शिवराजसिंह में मिल सकती है। उनके इन्हीं अनुभवों ने उन्हें आम आदमी से जोडऩे के लिए कई तरह के जतन करने का उपाय भी बताया। इन्हीं में से एक मुख्यमंत्री आवास पर होने वाली विभिन्न वर्गों की पंचायत रही है। कभी मुख्यमंत्री आवास आम आदमी के लिए तिलस्म सा था। बाहर से लोग अंदाज लगाया करते थे कि अंदर क्या क्या होगा लेकिन जब आम आदमी को मुख्यमंत्री आवास से बुलावा आया तो यह तिलस्म टूट गया। मध्यप्रदेश की राजनीति में यह शायद पहला अवसर होगा जब कोई मुख्यमंत्री अपने आवास में हर पर्व और हर उत्सव सेलिब्रेट कर रहा है। शिवराजसिंह की सादगी के यह वह उद्धरण हैं जिसकी गवाही पूरा मध्यप्रदेश दे रहा है। हां, यह बात भी तय है कि जब आप शिवराजसिंह चौहान को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में जांचते हैं, परखते हैं तो एक राजनेता के रूप में कुछ कमियां आप को दिख सकती हैं। कुछ फैसले सबके मन के नहीं होते हैं और इस बिना पर आप उन्हें घेरे में ले सकते हैं लेकिन एक आदमी से जब आप सवाल करेंगे तो उनका जवाब होगा कि अपना अपना सा लगने वाला यह शिवराज हमारा मुख्यमंत्री है और हमें ऐसा ही मुख्यमंत्री चाहिए। शिवराजसिंह चौहान अपनी उम्र के एक और कामयाब साल पूरे करने जा रहे हैं। हर साल की माह मार्च की 5 तारीख उनके जीवन के लिए सौभाग्य की तारीख हो और वे चिरजीवी हों, यह मंगलकामना मध्यप्रदेश की है।


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