'बेहद के मैदान में रहा कबीरा सोय', ये गाते हैं कबीर को
वीथिका
Jun 02, 2015
रायपुर से रमेश शर्मा
लोक कलाकारों से समृध्द छत्तीसगढ़ की पहचान देश-दुनिया में पंडवानी की मशहूर गायिका तीजनबाई के कारण तो है ही, भारती बंधुओं ने भी कबीर की रचनाओं को भजन में ढालकर एक अलग पहचान कायम कर ली है। भारती बंधु मंच पर बैठकर जब कबीर को गाते हैं तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
सबसे बड़े भाई स्वामी जीसीडी भारती वैसे तो रायपुर नगर निगम में सरकारी नौकरी में हैं, लेकिन दफ्तर के बाद उनका पूरा समय रियाज में ही बीतता है। उनका पूरा परिवार कबीरमय है। 'कबीर ही क्यों?' पूछने पर स्वामी भारती कहते हैं कि आज के दौर में कबीर ही सबसे ज्यादा मौजूं लगते हैं। चारों तरफ धर्म और जातीयता के विषाद हैं, ऊंच-नीच भेदभाव के माहौल में कबीर के दोहे ही रास्ता बता सकते हैं। कबीर कहते हैं- ''राम-रहीमा एक है, नाम धराई दोई। आपस में दोऊ लरि-लरि मुए, मरम न जाने कोई'' कबीर की सभी रचनाओं में समाज के लिए कोई न कोई शिक्षा जरूर है और आज सैकड़ों सालों बाद भी कबीर का महत्व कम नहीं हुआ है। इसीलिए हमने कबीर को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है।
माता सत्यभामा और पिता स्वामी विद्याधर गैना भारती से भारती बंधु को प्रेरणा मिली। दरअसल भारती बंधु परिवार में की पीढ़ियों से भजन गायकी की परंपरा रही है, जिसे सहेजने और संगठित करने की प्रेरणा स्वामी जीसीडी भारती ने ग्रहण की और आज वे प्राय: सभी बड़े आयोजनों में शिरकत करने लगे हैं। दिल्ली में त्रिवेणी कला सभागार हो या एनसीईआरटी का कार्यक्रम, भारतीय बंधु हमशा बुलाए और सुने जाते हैं। भारती बंधु का अंदाजेबयां भी गजब है। उनकी महफिल की शुरुआत अंचल के जाने माने व्यंग्यकार गिरीश पंकज की इन लाइनों से होती है-
''गिरती है दीवार धीरे-धीरे, जोर लगाओ यार धीरे-धीरे,
मिलने-जुलने में कसर न छोड़ना, हो जाएगा प्यार धीरे-धीरे।''
वैसे कबीर को गाते हुए भारती बंधु इन पंक्तियों का जिक्र जरूर करते हैं-
''हद छांड़ी बेहद गया, रहा निरंतर होय,
बेहद के मैदान में रहा कबीरा सोय।''
छत्तीसगढ़ के भारती बंधु को 18 जिलों में कबीर गायन के लिए अनुबंधित किया था। अब तक वे हजारों कार्यक्रम दे चुके हैं। इनकी अद्भुत कबीरशैली से प्रसन्न होकर मशहूर आलोचक डॉ. नामवर सिंह, भी उनकी तारीफ कर चुके हैं। अशोक वाजपेयी ने तो यहां तक कहा था कि कबीर की मस्ती और फक्कड़पन के बिना सच्चा गायन संभव नहीं। सचमुच भारती बंधु को देखकर अलमस्त फकीर याद आ जाते हैं। तन पर सफेद कुरता और लुंगी, सिर पर हिमाचली टोपी सादगी के साथ जब स्वर लहरियां जुड़ती हैं तो माहौल कबीरमय हो उठता है।
जैसे गाते हैं, वैसे ही रहते हैं भारती बंधु। रायपुर में मारवाड़ी श्मशान घाट के ठीक सामने उनका निवास है। जीसीडी भारती से छोटे विवेकानंद तबले पर संगत देते हैं। अनादि ईश्वर सहगायक हैं। अरविंदानंद मंजीरा बजाते हैं और सत्यानंद ढोलक संभालते हैं। भारती बंधु रचना का चयन सधे हुए तरीके से करते हैं। स्वामी जीसीडी भारती मंच पर तान छेड़ते हैं- कबीरा सोई पीर है जो जाने पर परी, जो पर पीर न जानई वो काफिर बेपीर। तो श्रोता मगन हो जाते हैं। फिर धीरे-धीरे श्रोता कबीर में डूबते चले जाते हैं। भारती बंधुओं को अभी तक कोई बडा पुरस्कार नहीं मिला है। वे कहते हैं- हमें बड़े-बड़े बुध्दिजीवी आशीर्वाद देते हैं और हजारों श्रोता कबीर को सुनकर परमानंद प्राप्त करते हैं, यही हमारा सबसे बड़ा पुरस्कार है। हम लोग जिंदगी भर कबीर को गाते रहेंगे। हम लोग रीमिक्स या पाप (पॉप) नहीं गाना चाहते हैं, कबीर को गाना ही पुण्य कमाना है। भारती बंधुओं की शैली में कव्वाली का रस है। हारमोनियम, तबला, ढोलक जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ वे तीन घंटे रोज रियाज करते हैं।
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