बजट बजाएगा किसका बाजा?

बिजनस            Jan 29, 2025


राकेश कायस्थ।

मेरी याददाश्त में शायद ही कोई और आम बजट होगा, जिसे लेकर एक साथ इतने सारे परस्पर विरोधी दावे किये जा रहे हों। सरकार के काम करने के तरीके को देखकर इनमें से किसी भी दावे को झुठलाया नहीं जा सकता, भले ही व्यवहारिक तौर उन्हें अमली जामा पहनाना संभव हो या ना हो।

पिछले दस साल के मोदी राज में उद्योग जगत अर्थव्यस्था को लेकर इतना चिंतित कभी नहीं रहा, जितना इस समय है। इन चिंताओं का जिक्र सार्वजनिक मंचों से भी होने लगा है, जो अब से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ।

आप कोई भी बिजनेस न्यूज़ चैनल खोलकर देख लीजिये। बहुत सारे एंकर और एक्सपर्ट इस बार के बजट को इकॉनमी के लिए `मेक ऑर ब्रेक बजट’ बता रहे हैं।

उन्हें लगता है कि अर्थव्यवस्था महंगाई और बेरोजगारी जनित मंदी के लंबे चक्र में फंसती जा रही है, जिसे अंग्रेजी में stagflation कहा जाता है। इस स्थिति को बदलने के लिए तत्काल कुछ ऐसा करने की ज़रूरत है, जिससे जनता की क्रय-शक्ति बढ़े, बाज़ारों में रौनक लौटे, कंपनियों का माल बिके यानी कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था का चक्का तेजी से घूमे।

इसके लिए जनता के हाथ में पैसा देना होगा। ये काम किस तरह होगा? एक खबर ये चल रही है कि इनकम टैक्स की दरों में कुछ कटौती होगी। इस कटौती के बाद मिडिल क्लास के हाथ में पैसा आएगा, वो खरीदारी करेगी। इनकम टैक्स काटने से सरकार को जो नुकसान होगा, उससे ज्यादा पैसे उसे जीएसटी के ज़रिये मिल जाएंगे, जब जनता बाजारों का रुख करेगी।

कुछ जानकार ये कह रहे हैं कि इनकम टैक्स देनेवालों की तादाद बहुत बड़ी नहीं है। बेहतर ये होगा कि सरकार जीएसटी में कुछ कटौती करे, तभी इकॉनमी में डिमांड वापस लौटेगा अन्यथा स्थिति बद से बदतर होती चली जाएगी।

तो क्या वाकई ऐसा माना जा सकता है कि सरकार इनकम टैक्स की दरें घटाएगी या फिर जीएसटी कम करेगी? पिछले दस साल का रिकॉर्ड ये है कि सरकार  हमेशा आम आदमी की जेब से चवन्नी-अट्ठनी निकालने की स्कीमें लेकर आई है।

2018 तक किसी भी निवेश पर होनेवाला दीर्घकालिक लाभ इनकम टैक्स के दायरे से बाहर था। ऐसा इसलिए था क्योंकि पूर्वर्ती सरकारें जानती थीं कि वो आम नागरिकों को न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराने में असमर्थ हैं। इसलिए जनता अगर थोड़ा जोखिम लेकर शेयर, प्रॉपर्टी या सोना में निवेश करती है, तो उस पैसे पर लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स नहीं लगना चाहिए।

लेकिन मोदी राज में यह छूट खत्म कर दी गई। उसके बाद शेयरों पर मिलने वाले लाभांश को भी टैक्सेबल बना दिया गया। इतना ही नहीं शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स भी बढ़ाते-बढ़ाते बीस प्रतिशत के स्तर पर ले आया गया। इन सबका नतीजा ये हुआ कि सरकारी आमदनी में इनकम टैक्स का योगदान कॉरपोरेट टैक्स को पार कर गया।

सरकार उद्योपतियों की हितैषी है और चुनाव जीतने के लिए उसे मुफ्त में आटा-चावल बांटते रहना है। आखिर ये पैसा कौन देगा, ज़ाहिर है, मिडिल क्लास टैक्स पेयर।

आप पूछ सकते हैं कि अपर क्लास टैक्स पेयर क्यों नहीं, तो इसका जवाब ये है कि

अपर क्लास के पास टैक्स बचाने के एक हज़ार तरीके हैं। उदाहरण के लिए कोई डॉक्टर, चार्टेड एकाउंटेट, एक्टर या बिजनेसमैन अपनी आमदनी कम दिखा सकता है। सैकड़ों तरह के खर्चों पर जीएसटी क्रेडिट ले सकता है, लेकिन वेतन भोगी व्यक्ति के पास ऐसी कोई सुविधा नहीं है।

तो क्या ये मान लिया जाये कि आम आदमी की जेब इस बजट में कटनी तय है? दावे से ऐसा नहीं कहा जा सकता क्योंकि कॉरपोरेट सेक्टर भी ये फरियाद कर रहा है कि बाज़ार में खरीदार नहीं है, क्योंकि जनता के पास पैसे नहीं हैं।

यानी सरकार के लिए इस बार आगे कुँआ और पीछे खाई वाली स्थिति है। अगर उसने साहसिक फैसला लेते हुए टैक्स छूट दी तो फिर चुनाव जीतने के लिए तरह-तरह की खैराती स्कीम के पैसे कहां से आएंगे? अगर छूट नहीं दी और इकॉनमी और गहरी मंदी में धंसी तो क्या होगा?

इन सवालों के बीच अचानक एक और खबर मार्केट में तेजी से घूम रही है। खबर ये है कि सरकार इस बजट में डायरेक्ट टैक्स कोड ला सकती है। कहने को तो ये कर व्यवस्था का सरलीकरण है लेकिन असली में इसकी मार आम आदमी पर अकल्पनीय होगी।

डायरेक्ट कोड टैक्स के बारे में ये बताया जा रहा है कि मुख्य आय के अतिरिक्त आप जो भी कमाएंगे वो सब उस श्रेणी में टैक्सेबल होगा, जिस श्रेणी में आप आयकर देते हैं। उदाहरण के लिए मान लीजिये आप 30 प्रतिशत के टैक्स ब्रैकेट में हैं, तो आपका लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स साढ़े बारह परसेंट नहीं बल्कि सीधे 30 प्रतिशत होगा। बैंक एफडी पर भी आपको इसी रेट से टैक्स भरना पड़ेगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने हाल में एक पॉडकास्ट में कहा था कि उन्हें लगता है कि उन्होंने अपनी रिस्क लेने क्षमता का अब तक समुचित इस्तेमाल नहीं किया है। मोदीजी ने आखिरी बड़ा रिस्क नोटबंदी करके लिया था, जिसके नतीजे में उन्हें यूपी में शानदार जीत मिली और असंगठित क्षेत्र का भट्टा पूरी तरह बैठ गया।

तो क्या देश को मोदी के अगले रिस्क के लिए तैयार रहना चाहिए। कुल मिलाकर बात ये है कि चाकू कद्दू पर गिरे या कद्दू चाकू पर कटना कद्दू को ही है।

 


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