कचरे का आफ्टर इफैक्ट बैकफुट पर सरकार

खरी-खरी            Jan 04, 2025


कीर्ति राणा।

कचरा जलाने के खिलाफ पीथमपुर में भड़की हिंसा के बाद देर रात मुख्यमंत्री यादव ने आपात्त बैठक के बाद घोषणा की है कि अभी कचरा नहीं जलाया जाएगा।

सीएम का यह निर्णय आंदोलन शांत करने के लिहाज से उचित ही है लेकिन सरकार का बैकफुट पर आना सीधे-सीधे प्रशासनिक खेमे की अदूरदर्शिता और प्रदेश के प्रशासनिक मुखिया का फेल्योर भी है।

प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी और उनके काबिल अधिकारियों के दिमाग में यह विचार क्यों नहीं आया कि सरकार जो निर्णय ले रही है उससे कानून व्यवस्था की स्थिति भी बिगड़ सकती है।

यह पीथमपुर से लेकर भोपाल, दिल्ली तक हुए विरोध का ही असर है। इसके साथ ही सीएम विरोधी गुट की अघोषित रूप से जीत भी है।

माना कि ऐसे सारे कारणों से सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा है तो फिर सीएस उनकी टीम और डीजीपी क्या सिर्फ यस सर, यस सर करने ही डेली ब्रीफिंग में शामिल रहते हैं।

जिस गैस त्रासदी ने मप्र को कलंकित किया उसके कचरे के ऑफ्टर इफेक्ट क्या हो सकते हैं इसका अंदाज प्रशासनिक मशीनरी ने पहले से क्यों नहीं लगाया या मुख्यमंत्री को ऐसे निर्णय के आसन्न खतरे बताने, अलर्ट करने का साहस नहीं था।

यह भी सब जानते हैं कि मुख्यमंत्री कोई भी निर्णय, घोषणा बिना सीएस, नीति निर्धारकों को विश्वास में लिये बगैर कर ही नहीं सकते।

वर्तमान सीएम पर तो यूं ही मोशाजी के रबर स्टैम्प का ठप्पा पहले दिन से ही लगा हुआ है। जाहिर है उनके द्वारा लिया गया हर निर्णय संघ की उस मंडली का माना जाता है जो उन्हें शिवराज सिंह से हजार गुना बेहतर बनाने वाली छवि गड़ते रहते हैं।

इस मंडली ने भी चिंतन नहीं किया कि कचरा जलाने वाला यह निर्णय अमल से पहले सरकार को झुलसा देगा।

संघ मंडली ने जब लाड़ली बहना जैसी योजना का निर्णय लिया था तब उसके क्रियान्वयन की राह तब के प्रशासनिक मुखिया और टीम ने ही आसान की थी।

यूनियन कार्बाइड वाली जमीन को खाली करने के लिये यदि कचरा ट्रांसफर के निर्णय की प्लॉनिंग यदि संघ मंडली ने ही बनाई है तो उसके क्रियान्यन के लिए पीथमपुर का रास्ता तो मुख्य सचिव की टीम ने ही बताया है ना।

यह रास्ता बताने के दौरान वरिष्ठतम आईएएस अधिकारियों के दिमाग में यह बात क्यों नहीं आई कि विरोध भी तो हो सकता है ।

यूनियन कार्बाइड वाली गैस त्रासदी विश्व के गंभीर हादसों में शामिल है ऐसे में वल्लभ भवन ने कैसे मान लिया कि जिन कचरे के वाहनों के लिये ग्रीन कॉरिडोर तैयार किया है उस कचरे का इंदौर-पीथमपुर के लोग रेड कॉरपेट बिछा कर, ढोल ढमाके-आतिशबाजी के साथ स्वागत के लिये उतावले बैठे होंगे।

प्रदेश सरकार के लिये यह लज्जास्पद ही है कि एक साल पूरा होते होते ऐसा अदूरदर्शिता पूर्ण फैसला किया कि लोगों ने आत्मदाह को इसका हल माना।

कचरा जहरीला है या नहीं यह तो जांच का विषय है फिलहाल तो यह जांच जरूरी है कि वल्लभ भवन में क्या वाकई कचरा भरा हुआ है।

यह डेमेज कंट्रोल भी अब ये ही सारे अधिकारी करेंगे जिनकी नासमझी से सरकार डेमेज हुई है।

सुप्रीम कोर्ट ने सात साल पहले विशेषज्ञों से परामर्श कर इस 350 टन जहरीले कचरे को ठिकाने लगाने के लिये गुजरात के अंकलेश्वर को उपयुक्त माना था तो इसे पीथमपुर लाने का फीतूर किसके दिमाग में था।

क्या तीन सौ करोड़ के ठेके में बंदरबाट के लिये रामको कंपनी के प्रति प्रेम उमड़ा राम भक्तों के मन में? 

इस पूरे कचरा कांड में शिवराज सिंह दिल्ली में बैठकर तमाशा देख रहे हैं। उनसे भी तो कोई पूछे कि दस साल पहले यदि कुछ कचरा पीथमपुर जलाने भेजा था तो आप का अमला उस रिपोर्ट पर कुंडली मार कर क्यों बैठा रहा।

कचरा जलाने के विरोध में सरकार के जो मंत्री-विधायक यह विश्वास दिला रहे हैं कि हम जनभावना के साथ हैं वो मुख्यमंत्री पर दबाव क्यों नहीं डालते कि दस साल पहले जो कचरा जलाया गया था वह रिपोर्ट सार्वजनिक करे। 

तारीफ तो शिवराज सिंह की टीम की भी होना चाहिए कि भोपाल से कचरा लाए, पीथमपुर में जला भी दिया, जले हुए कचरे की रिपोर्ट भी सरकार दबा कर बैठ गई लेकिन खबर लीक नहीं होने दी-यह धुरंधर और इंवेस्टिंग जर्नलिज्म करने वालों के लिए या तो चुनौती रही या ‘सरकारी सेटिंग’ भी हो सकती है। 

संभव है उस रिपोर्ट में जरूर ऐसे तथ्य रहें होंगे जो खतरा जाहिर करते होंगे, वरना तो शिवराज अपने खाते में उपलब्धि दर्ज कराने से नहीं चूकते, दो-चार अभिनंदन समारोह भी हो जाते, मंचों से कहते  दशकों से पड़े जिस कचरे का निपटारा नहीं हो सका उसे आप के मामा ने ठिकाने लगाया  है।

 


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