भारत और ये हिंसक मंसूबे

खरी-खरी            Jun 09, 2018


राकेश दुबे।

क्या कोई बता सकता है कि अहिंसा, सत्य और सहिष्णुता को मूलमन्त्र मानने वाले देश में राजनीतिक हिंसा का चलन क्यों है ? देश में चल रहे राजनीतिक विचार हिंसा की योजना क्यों बनाते हैं ? क्या इसका कोई हल और समाधान नही हो सकता ? नैसर्गिक न्याय का सिद्धांत है जो हम दे नहीं सकते उसे लेने का हमे कोई अधिकार नहीं है | महात्मा गाँधी से लेकर राजीव गाँधी तक की हत्या के पीछे कोई न कोई राजनीतिक विचार और विचारक रहा है | दुर्भाग्य ऐसी हर बड़ी हस्तियों की हत्या के कारक और मारक विचार को बदलने के लिए देश में कोई आगे नहीं आया | बड़े व्यक्तित्व की हत्याओं से देश ने कोई सबक नहीं लिया यह मारक विचार अब नीचे तक आ गया है | पश्चिम बंगाल इसका उदाहरण है | राजनीतिक कार्यकर्ताओं को सरे आम प्रताड़ना से हत्या तक की संस्कृति जिस भी विचार धारा का अंग हो उसे कल्याणकारी कहना और समझना गलत ही नहीं अपराध है| इस पर देश के सारे राजनीतिक विचारकों देश के सन्दर्भ में सोचना और हल निकलना चाहिए | अभी जो हो रहा है, वह ठीक नहीं है |

पुणे की पुलिस ने कोर्ट में एक लेटर पेश करते हुये दावा किया है कि माओवादी पीएम मोदी की 'राजीव गांधी की तरह हत्या'करने की साजिश रच रहे थे | तो क्या यह गंभीर विषय नहीं है | प्रधानमंत्री की किसी व्यक्ति से क्या दुश्मनी हो सकती है ? नरेंद्र मोदी नामक व्यक्ति से मतभेद हो सकते हैं ? विश्व के कुछ हिस्सों की भांति भारतीय इतिहास प्रधान मंत्री की हत्या का रहा है, प्रधानमंत्री पद पर किसी भी विचारधारा का व्यक्ति हो सकता है | व्यक्ति वहां गौण होता है पद महत्वपूर्ण और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक | हम ये कैसा समाज रच रहे हैं ? देश के मूल विचार और दर्शन में तो किसी भी प्रकार की हत्या स्वीकार्य नहीं है | देश में २०१९ में एक सर्वसम्मत प्रधानमन्त्री के चयन का विचार कुछ लोग कर रहे थे | तभी यह खबर आई कि पुणे पुलिस ने गुरुवार को कोर्ट में बताया है कि बुधवार को 5 लोगों को गिरफ्तार किया गया है जिनके संबंध प्रतिबंधित सीपीआई-माओवादी संगठन से हैं| इनके ठिकाने से एक पत्र मिला है, जो प्रधानमंत्री की हत्या के मंसूबे को प्रदर्शित करता है |

देश में प्रचलित विभिन्न विचारधारा जो इस भूमि से उपजी हैं, हिंसा के विरोध में है | विदेशी विचारधारा सत्ता प्राप्ति के लिए हिंसा को जायज ठहराती है | भारतीय राजनीतिक विचार धारा से उत्पन्न कुछ राजनीतिक दल प्रदेश विशेष में हिंसा को जायज ठहराने की कोशिश कर रहे हैं , यही समय है, राजनीतिक विचार का और श्रेष्ठ विचार का | हिंसा का मंसूबा भी तो हिंसा ही है |

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और प्रतिदिन पत्रिका के सम्पादक हैं।



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