राजनीति में नया चलन:खेत की बात के जवाब में खलिहान की बात

खरी-खरी            May 10, 2019


राकेश दुबे।
भारतीय राजनीति का यह ऐसा काल है, जिसमें सत्ता और प्रतिपक्ष के सतही कार्यकर्ता से लेकर शीर्ष पुरुष तक आरोप लगाने को अपना अधिकार मान बैठे हैं, भले ही उसका परिणाम कुछ भी हो।

यह एक ऐसा काल है जब हर आरोप का जवाब प्रत्यारोप से दिया जा रहा है, सबसे ज्यादा हैरानी तब होती है जब आरोप के जवाब या तो आते नहीं और आते भी हैं तो खेत की बात के जवाब में खलिहान की बात की भांति।

सबसे ज्यादा आश्चर्य तो तब होता है कि जब आरोप पर मौन साध लिया जाता है। आरोप लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट में हीले-हवाले वाले हलफनामे देने से भी बाज़ नहीं आ रहे हैं।

क्या देश में शुचिता की राजनीति का दौर समाप्त हो गया या आरोप के लगाने से पहले होमवर्क नही होता और पूरे तथ्य जुटाए या प्रस्तुत नहीं किये जाते। यह एक खतरनाक प्रवृत्ति हैं। देश की प्रतिष्ठा सत्ता और प्रतिपक्ष के व्यवहार से बनती और बिगड़ती है।

प्रधानमंत्री मोदी की जिन्दगी के निजी सवाल उछलते हैं, मोदी चुप रहते हैं। प्रधानमन्त्री के बारे में सब कुछ जानना नागरिकों का हक है। शिक्षा, अनुभव और यहाँ तक परिवार के बारे में भी, सब कुछ पारदर्शी होना चाहिए।

इसी तरह के सवाल कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बारे में उठते हैं, पर यहाँ भी खतरनाक चुप्पी ही जवाब में गूंजती है। इसके अतिरिक्त कई और मामले हैं। जैसे एक रक्षा सौदे के तहत ऑफसेट अनुबंध हासिल किया गया था।

मीडिया में इस आशय की खबरें आने के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राहुल गांधी से जिन सवालों के जवाब मांगे थे उनके संतोषजनक जवाब सामने आने ही चाहिए थे। ये जवाब इसलिए और भी आने चाहिए, क्योंकि बिना किसी सुबूत राफेल सौदे के मामले में चौकीदार चोर है का शोर मचाने में लोग लगे हुए थे।

ऐसे ही राहुल गाँधी की ओर से अभी तक इस सवाल का भी जवाब नहीं आ पाया है कि क्या उन्होंने ब्रिटेन की नागरिकता ली थी? इसके उत्तर में यह कहना अर्थ हीन है कि दुनिया जानती है कि राहुल गांधी भारत में ही पैदा हुए। यह ठीक वैसा ही प्रश्न और उत्तर है कि जशोदा बेन कौन हैं और कहाँ रहती है ?

ये सवाल चुनाव के दौरान पूछना और सटीक उत्तर न आना, दर्शाता है कि कहीं कुछ छिपाया जा रहा है। जैसे राहुल गाँधी के बारे मे सवाल तो यह है कि क्या उन्होंने कारोबार करने के उद्देश्य से ब्रिटेन की नागरिकता ली थी?

कारोबार के सिलसिले में किसी भारतीय की ओर से किसी अन्य देश की नागरिकता लेने में हर्ज नहीं, लेकिन इस पर रहस्य का आवरण नहीं होना चाहिए। कम से कम संशय को दूर ही करना चाहिए। जो लोग सार्वजनिक जीवन में हैं, बल्कि देश का प्रधानमंत्री हैं या बनना चाह रहे हैं, उनसे पारदर्शी व्यवहार अपेक्षित है। शिक्षा का हो, व्यवसाय का या परिवार का हो।

ताज़ा आरोपों के चक्र व्यूह में राहुल घिरे हैं। आरोप है कि राहुल गांधी ने पहले भारत में बैकप्स नामक एक कंपनी स्थापित की, जिसमें उनकी बहन प्रियंका भी साझीदार थीं। इसके बाद वह इसी नाम की कंपनी ब्रिटेन में स्थापित करते हैं। इसमें गोवा के एक कांग्रेसी नेता के दामाद साझीदार बनते हैं।

राहुल के इन्हीं साझीदार की एक कंपनी को कुछ समय बाद फ्रांस के साथ हुए रक्षा सौदे में ऑफसेट अनुबंध हासिल हो जाता है। अगर वास्तव में ऐसा हुआ तो यह कई गंभीर सवालों को जन्म देता है। इन सवालों की गंभीरता इससे कम नहीं हो जाती कि 2009 में राहुल अपनी ब्रिटिश कंपनी से अलग हो गये हैं।

सार्वजनिक जीवन में सक्रिय लोगों के लिए यह ठीक नहीं कि वे दूसरों को तो सवालों के घेरे में खड़ा करें, लेकिन अपने जीवन से जुड़े सवालों पर मौन धारण कर लें। राजनीति की यह प्रवृत्ति सबके लिए घातक है वो कोई भी हो।

 


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