पुण्य प्रसून बाजपेयी।
रेनकोट तो हर किसी ने पहना है क्या नेहरु, क्या इंदिरा, क्या राजीव गांधी, और क्या पीवी नरसिंह राव या फिर क्या वाजपेयी या क्या मनमोहन सिंह। हां किसी का रेनकोट खासा लंबा और किसी का रेनकोट खासा छोटा हो सकता है। लेकिन रेनकोट तो रेनकोट है, जो बाथरुम में शॉवर के नीचे खड़े होने से भी किसी को भी भीगने नहीं देता। लेकिन किसी पीएम ने अपने से पहले पीएम को ऐसा नहीं कहा जैसा पीएम मोदी ने पूर्व पीएम मनमोहन सिंह को कहा। लेकिन सवाल ये भी है कि मोदी ने गलत क्या कहा? रेनकोट तले खड़े होकर क्या वाकई मनमोहन सिंह कह सकते हैं कि करप्शन की बारिश में वह भीगे नहीं। क्योंकि 10 बरस की सत्ता के दौर में मनमोहन का रेनकोट खासा लंबा है। मसलन आयल फार फुड, सत्यम घोटाला, आईपीएल, 2 जी, कामनवेल्थ, आदर्श, इसरो, कोयला, एनएचआरएम, अगस्ता वेस्टलैंड और फेहरिस्त तो खासी लंबी है।
जाहिर है पीएम मोदी ने कुछ गलत तो नहीं कहा। लेकिन अगला सवाल यह भी हो सकता है कि फिर मनमोहन ने पीएम रहते हुये पूर्व पीएम अटलबिहारी वाजपेयी को रेनकोट क्यों नहीं पहनाया? वाजपेयी का रेनकोट भी खासा लंबा था। बराक मिसाइल घोटाला हो या तेलगी स्कैम, तहलका आपरेशन हो या स्टाक मार्केट स्कैम। यूटीआई स्कैम हो या ताबूत घोटाला। पेट्रोल पंप बांटने का खेल हो या नेताओं के पैसे लेते हुये कैमरे पर धराना। और वाजपेयी ने पीएम रहते हुये अपने पूर्व पीएम नवरिंह राव को रेनकोट क्यों नहीं पहनाया? जबकि पीवी की तो सत्ता ही झारखंड मुक्ति मोर्चो के रेनकोट को पहनकर हुई थी। और उस दौर में तो रेनकोट की लंबाई जमीन को छूने लगी थी। क्योंकि हर्षद मेहता स्कैम हो या इंडियन बैक स्कैम, शुगर इंपोर्ट घोटाला हो या लखूभाई या सुखराम घोटाला यूरिया घोटाला हो या हवाला घोटाला। तो पीएम रहते हुये वाजपेयी चाहते तो नरसिंह राव को रेनकोट पहना सकते थे। लेकिन वाजपेयी ने राव को रेनकोट नहीं पहनाया।
तो क्या रेनकोट भारत की संसदीय लोकतांत्रिक सत्ता का ऐसा अनूठा सच है जिसे हर किसी ने पहना। क्योंकि नेहरु के दौर में जीप स्कैंडल हो या साइकिल स्कैम। मुंदडा स्कैम हो या तेजा लोन स्कैम या प्रताप सिंह कैरो स्कैंडल और इंदिरा के रेनकोट को कोई कैसे भूल सकता है। मारुति विवाद और अंतुले करप्शन। या फिर इंडियन आयल स्कैम। या चुरुहट लाटरी स्कैम। यू तो इंदिरा के करप्शन के खिलाफ ही जेपी ने देशभर में आंदोलन छेडा और तब संघ परिवार भी जेपी के साथ खड़ा हुआ। लेकिन रेनकोट तब भी किसी ने इंदिरा गांधी को नहीं पहनाया। याद कीजिये तो राजीव गांधी के रेनकोट को बोफोर्स और सेंट किट्स तले कैसे वीपी सिंह ने घसीटा। यूं तब सबमेरिन और एयर इंडिया घोटाला भी था। रेनकोट तो नहीं लेकिन घोटालों का जिक्र कर वीपी सत्ता में आये। लेकिन वह भी ना तो राजीव गांधी के रेनकोट को उतार पाये और ना ही खुद रेनकोट पहनने से बच पाये। 20 करोड के एयरबस घोटाले का रेनकोट वीपी ने भी पहना, लेकिन कहा किसी ने नहीं।
तो क्या रेनकोट का सिलसिला शुरु हुआ है और अब मान लिया जाये कि पीएम ही नहीं सीएम भी इसके दायरे में आयेंगे? क्योंकि रेनकोट तो हर सीएम ने भी पहना है, चाहे वह बीजेपी का हो या कांग्रेस का। अकाली का हो या समाजवादी पार्टी का। लेकिन कहे कौन? तो क्या परंपरा शुरु गई है कि रेनकोट अब हर किसी को पहना दिया जाये? क्या खुद प्रधानमंत्री बीजेपी की सीएम वसुंधरा राजे शिवराज सिंह चौहान, और रमनसिंह को कह पायेंगे कि आपने भी तो रेनकोट पहन रखा है और कांग्रेस के सीएम रावत, सिद्दरमैया और वीरभद्र को कब कहेंगे कि रेनकोट आपने भी पहना है। क्या यूपी की चुनावी सभा में अब अखिलेश यादव को रेनकोट पहनाया जायेगा और पंजाब में प्रकाश सिंह बादल को रेनकोट पहनाने में पीएम ने चूक क्यों कर दी?
ये सवाल इसलिये क्योंकि बीजेपी के तीन सीएम, राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे, मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ के सीएम रमन सिंह, जरा इनके रेनकोट का माप देखिये। वसुंधरा बेदाग हैं लेकिन ललित मोदी स्कैंडल, 45 हजार करोड का खदान आवंटन, अरावली की पहाडियों में अवैध खनन, हाउसिंग बोर्ड का घपला और गहलोत के दौर से चला आ रहा एसपीएमएल इन्फ्रा लिमिटेड को लाभ देने का सिलसिला थमा कहां है। कांग्रेस लगातार आरोप लगा रही है।
इसी तर्ज पर मध्यप्रदेश के सीएम भी तो बेदाग हैं जबकि, उनके दौर में व्यापम घोटाले ने हर परीक्षा और रोजगार को कठघरे में खडा कर दिया।उनके दौर में मामले तो उठते रहे चाहे वह गेंहू डंप करने का स्कैम, स्कॉलरशिप स्कैम हो या डंपर केस या फिर आईएएस अरविंद जोशी और टिनू जोशी की संपत्ति का मामला। इसी तर्ज पर रमन सिंह भी बेदाग हैं। चाहे सीएजी ने वीवीआईपी चापर अगस्तावेस्टलैंड को लेकर सवाल खड़े किये हों। या 36 हजार करोड का पीडीएस स्कैम हो या फिर नमक या सैनिटेशन स्कैम हो या राशन कार्ड का घपला। हर आरोप के कटघरे में कांग्रेस ने यहां सीएम को ही खड़ा किया। ठीक वैसे ही जैसे मनमोहन को हर घोटाले पर बीजेपी ने कटघरे में खडा किया।
तो क्या पीएम मोदी बीजेपी के सीएम को रेनकोट पहना पायेंगे। या फिर अब सियासत रेनकोट तले कुछ इस तरह आयेगी कि चुनाव प्रचार में उत्तराखंड के सीएम हरीश रावत हो या यूपी के सीएम अखलेश यादव। दोनों को रेनकोट पहनाने की होड़ मचेगी। क्योंकि रावत बेदाग है। मगर उनके दौर में बाढ राहत में घपला हो गया, शराब घोटाला हो गया, जमीन घोटाला हो गया स्टिंग कराने में घपला हो गया पावर कॉरपोरेशन में घपला हो गया। यानी आरोपों की फेरहिस्त से कैसे रावत बचेंगे?
यूं तो अखिलेश खुद को बेदाग बताते हैं लेकिन रेनकोट के आरोप तो अखिलेश पर भी हैं। मसलन कुंभ मेले में घपला, जमीन कब्जा और बालू खनन, फिर अपने ही मंत्री को करप्ट बताकर अखिलेश ने ही बाहर का रास्ता दिखाया। लेकिन रेनकोट से वह कैसे बच सकते हैं? और रेनकोट की फेरहिस्त में तो कमोवेश हर राज्य के सीएम का चेहरा भी दिखायी देना चाहिये। क्योंकि चारा में फंसे लालू को छोड़ दें तो कोई सीएम नहीं बचेगा। क्योंकि बीते 5 बरस में ही राज्यों के घोटाले घपले की रकम 90 लाख करोड़ से ज्यादा की है। यानी सियासी हमाम कह कर खामोश हुआ जाये। या रेनकोट तले हर किसी को खडत्रज्ञ मानकर समूची संसदीय राजनीति को ही दागदार करार दे दिया जाये।
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