मौसम की करवटें:हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे तो घिरते ही रहेंगे

खरी-खरी            Dec 29, 2018


राकेश दुबे।
मौसम का मिजाज सख्त है। भोपाल में 10 साल का रिकॉर्ड टूट गया, इतनी कम तापमान कभी नहीं रहा। वहीं इंदौर में न्यूनतम पारा 2.2 गिरकर 7,3 डिग्री पर पहुंच गया। सुबह से शीतलहर ने लोगों को ठिठुरने पर मजबूर कर दिया है।

सही मायने में पूरा उत्तर भारत शीतलहर की चपेट में है। देश के मध्य और पश्चिमी क्षेत्र के अनेक क्षेत्रों में पारा सामान्य से नीचे है।

हालांकि, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान बढ़ने से भारत के बड़े हिस्से में ठंड का मौसम सिकुड़ता जा रहा है,मौसम की वर्तमान स्थिति कुछ दिनों तक जारी रहने का अनुमान है।

पर्यावरण का संकट और प्रदूषण से जाड़ा, गर्मी और बरसात के मौसमों की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं. ऐसे में तात्कालिक पहलों के साथ ऐसे प्रयासों पर ध्यान देने की आवश्यकता है, जिनसे हम भविष्य के बदलावों के लिए तैयार हो सकें।

एक तरफ कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में बर्फबारी होने और तापमान गिरने से पर्यटन में उछाल आया है तथा फसलों के बेहतर उपज की उम्मीद बंधी है, लेकिन दिल्ली समेत उत्तर भारत में शीतलहर के प्रकोप ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इसका बड़ा कारण हवा में प्रदूषण की लगातार बढ़ोतरी है।

देश के इस हिस्से में हवा की गुणवत्ता दुनिया में सबसे खराब है और इससे लोगों का स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।

ठंड के मौसम में प्रदूषण ने कोहरे की समस्या को और गहरा दिया है। जिससे यातायात बाधित हो रहा है। प्रदूषित धुंध दिन के तापमान को नीचे रखती है, जिससे ठंड बढ़ जाती है। वैश्विक तापमान बढ़ने से बेहद ठंडी हवाओं का प्रसार औद्योगिक और वाहन उत्सर्जन के साथ मिलकर खतरनाक हो जाता है।

बीते दो महीने से दिल्ली में प्रदूषण बहुत बढ़ गया है,अब आपात स्थिति का सामना करने के लिए उद्योगों और निर्माण पर रोक लगाई गई है तथा वाहनों का चालन सीमित करने के उपायों पर विचार हो रहा है।

हवा के तेज बहाव ने शीतलहर को गंभीर जरूर बनाया है, पर इससे प्रदूषण में कमी की उम्मीद भी है। इसके साथ उत्तर भारत में उमस का स्तर भी बढ़ा है और यह तेज हवा के असर को कुंद कर सकता है।

बहरहाल, यह तो मौसम का चक्र है और ठंड कोई इसी साल नहीं आयी है। सवाल यह है कि जब सरकारों के पास प्रदूषण और शीतलहर के संबंधों के बारे अनेक अध्ययन उपलब्ध हैं, तो समय रहते इससे बचाव की कोशिशें क्यों नहीं होती हैं?

यही लापरवाह रवैया बेघरबार और वंचितों को गर्म कपड़े, बिस्तर और रैन बसेरा मुहैया कराने के मामले में भी साल-दर-साल देखा जाता है।

खबर आ रही है कि ठंड से लोगों की मौत हुई या वे गंभीर रूप से बीमार हो गये। लेकिन, हकीकत तो यह है कि ऐसा मौसम की वजह से नहीं, बल्कि गर्म कपड़े और छत की कमी की वजह से होता है।

दिल्ली और उससे सटे इलाके नवंबर की तरह अब तो यह भी शिकायत नहीं कर सकते हैं कि पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा पराली जलाने से प्रदूषण बढ़ रहा है। किसान फिलहाल बुवाई के काम में लगे हैं।

पर्यावरण का संकट और प्रदूषण से जाड़ा, गर्मी और बरसात के मौसमों की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। ऐसे में तात्कालिक पहलों के साथ ऐसे प्रयासों पर ध्यान देने की आवश्यकता है,जिनसे हम भविष्य के बदलावों के लिए तैयार हो सकें।

यदि हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे या केवल बचाव में लगे रहे, तो कभी शीतलहर, कभी तेज लू और कभी सूखे या बाढ़ से घिरते ही रहेंगे। सभी को कुछ करने की जरूरत है।

 


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