रावण का कद बढ़ाने में व्यस्त लोगों को याद है क्या रामलला तिरपाल में हैं

खरी-खरी            Sep 27, 2017


राकेश दुबे।
आधे से ज्यादा भारत रावण के पुतले बनाने में व्यस्त हैं। रावण के पुतले की ऊंचाई को विशेषता मानते हुए कुछ संगठन तो इस बात की बकायदा घोषणा करने में लगे हैं कि इस साल उन्होंने पिछले साल से ऊँचा रावण का पुतला बनवाया है। इस ऊंचाई को चंदे के साथ जोड़कर इस साल अधिक चंदा देने का आग्रह ३० सितम्बर अर्थात दशहरे तक दबाव में बदलता महसूस होता दिख रहा है। रावण का पुतला बनाने या बनवाने की होड़ में में हम सब यह भूलते जा रहे हैं कि रामलला का मन्दिर बनाने की कसमें खाने और वादा करने वालों के राज में रामलला तिरपाल में ही बैठे है। चूँकि रावण के पुतले के साथ कोई राजनीति नहीं जुड़ी है, इस कारण जिसका जितना बड़ा बजट होता है उतना बड़ा पुतला खड़ा करके आग लगा दी जाती है।

रावण के पुतले बनाने का व्यवसाय अब पुश्तैनी होने लगा है। भोपाल शहर के कई मुख्य मार्ग पर बैनर लगा कर इस बात की घोषणा की जा रही है कि फलां रावण मेकर, २५ साल का अनुभव। ये बेचारे रावण के पुतले बहाने से कुछ कमा लेते हैं। पुतले ही तो बनाते हैं, बेचारे। रावण बनाना वैसे किसी के बस की बात नहीं है और न कुव्वत ही है। शास्त्रों में लिखे और वाम पन्थ के पैरोकारों के हिसाब से रावण विद्वान और गुणी था। कई मामलों में अपने समकालीनों से श्रेष्ठ भी।

लगता है तत्समय भी मीडिया मैनेजमेंट या मीडिया बाइंग जैसी विधा आ गई होगी। इस कारण उसके अवगुण ज्यादा प्रचार पा गये। आज भी मीडिया को जब किसी घटना में कुविशेषण जोड़ने होते हैं तो रावण ही प्रतिमान होता है। एक अख़बार में पिछले दिनों एक शीर्षक था नवरात्रि के दौरान हिन्दू विश्वविद्यालय में रावण लीला वैसे भी विशेषणों के मामले में इन मीडिया का सोच त्रेता युग का ही है। वैसे नाम रख लेने से “कन्हैया” मुरली बजाने में निष्णात नहीं होते न कोई राम रावण मार पाता है। नरों में श्रेष्ठ होने का विशेषण भी अब फीका होता जा रहा है। हाँ! गरल पान करने वाले शंकर जरुर मौजूद हैं, जो तिरपाल में बैठे रामलला के उद्धार की बात उठाते रहते हैं।

किसी मित्र ने प्रश्न किया कि क्या दशहरा मनाना बंद कर दें? मेरा उत्तर उन सहित सभी लोगों को है, सदगुण धारण कीजिये, कहीं से भी मिले। राम का चरित्र गुणों से भरपूर है, ईमानदारी से कितने लोग उसे आत्मसात करते हैं। समाज के नेतृत्व करने वाले तो अब अपने पूर्व के नेतृत्व कर्ता के अवगुणों और भूलों से प्रतिस्पर्धा करते नजर आते हैं। अपनी चूक को पिछले की चूक के मुकाबले छोटी बताने के तर्क देते हैं। यह प्रवृत्ति न तो “राम” की है और न “रावण” की। रावण के पुतले और राम की प्रतिमा से ज्यादा महत्वपूर्ण गुण और प्रवृत्ति है। इसका विकास कैसे हो, दशहरे पर यही चिंतन हो।

 



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