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ये आकाशवाणी ‘बलूचिस्तान’ है! अमेरिका में चुनावी माहौल और कैरी का भारत में होना

खरी-खरी            Sep 01, 2016


ऋतुपर्ण दवे।

बलूचिस्तान पर, लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने जो बोला, पाकिस्तान को जैसे सांप सूंघ गया और पल भर को लगा कि उसे लकवा मार गया। दुखती रग पर चोट कितनी गहरी होती है, सबको पता है। इधर गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जम्मू-कश्मीर में वहां की मुख्यमंत्री से गुफ्तगू की और दूसरे ही दिन वो दिल्ली आकर प्रधानमंत्री से क्या मिलीं, पाकिस्तान, बौखलाहट में आपा खोने लगा। लोहा गरम था। मुफ्ती ने भी सही कहा पत्थर चलाने वाले दूध-टाफी खरीदने नहीं जाते। पाकिस्तान की शह पर भारत में नफरत और अशान्ति फैलाने वाले हमारे बच्चों को बरगलाते हैं। पहले तो डेढ़ महीने से जारी अलगवावादी समर्थित हड़ताल पर महबूबा की बेबसी पर ही संदेह उपजे, स्वाभाविक भी था। लेकिन जब उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ शोला उगलना शुरू किया, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री से बैठकें की, पाक हरकतों की सख्त मुख़ालफत की, शक की रत्ती भर भी गुंजाइश नहीं रही। हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी बुरहान वानी की 8 जुलाई को सुरक्षाबलों से मुठभेड़ में मौत के बाद से घाटी अशान्त है,लगातार कर्फ्यू के साए में रही। उधर,अमेरिका में चुनाव हैं फिर भी बुधवार को भागे-भागे विदेश मंत्री जॉन कैरी, भारी बारिश के बीच दिल्ली आ धमके। यहां उन्होंने संताप किया “अकेला देश अलकायदा, लश्कर-ए-तोयबा, जैश जेसे आतंकी समूहों से नहीं लड़ सकता। आतंकवाद बड़ी समस्या है जिससे निपटने वैश्विक सहयोग की जरूरत है।”(बेचारा पाकिस्तान!)। वो भारत आए थे या पाकिस्तान को मरहम लगाने? पाकिस्तान को दिखावटी चेतावनी की रणनीति वो जानें लेकिन अमरीकी चुनावी उफान के बावजूद, दौड़े आना जरूर किसी बड़े मकसद का संकेत है।

आवामी इत्तेहाद फ्रन्ट(एआईएफ) की अध्यक्ष राबिया बाजी के हालिया बयान को गंभीरता से लेना होगा। वो पाक अधिकृत कश्मीर के प्रधानमंत्री राजा फारुक हैदर खान के हवाले से कहती हैं, हैदर चाहते हैं, नियंत्रण रेखा(एलओसी) के दोनों तरफ के लोगों को मुक्त रूप से आने-जाने की सुविधा मिले। अधिक से अधिक सांस्कृति आदान-प्रदान हो और पर्यटन को भी बढ़ावा मिले। बहुत बड़ा संकेत है, जाहिर है पीओके खुद पाकिस्तान से त्रस्त है। साफ है, पाकिस्तान के अन्दरूनी हालात ठीक नहीं। एक तरफ अमेरिका की निगाह उसके भू-भागों पर है दूसरी तरफ चीन, रूस सहित दूसरे क्षेत्रीय देशों ने ‘शंघाई गठबंधन’ बनाया है और पाकिस्तान भी इन देशों से संबंध सुधार की नीति के साथ, अमरीका अपने 40 साल पुराने रिश्ते को बिगाड़ना नहीं चाहता यानी कोऊ नृप होय हमें का हानि, पाकिस्तान की यही कहानी। ऐसे में बूलचिस्तान का मामला कभी उठा ही नहीं था। अब आकाशवाणी की गूंज जहां बलूचिस्तान के संघर्ष में मील का पत्थर बनेगी, वहीं कूटनीतिक दृष्टि से भारत का यह बड़ा प्रहार होगा। स्वाभविक है, वहां के स्वतंत्रता आन्दोनकारियों को बल मिलेगा, हौसला मिलेगा और सबसे बड़ी बात समर्थन मिलेगा।

भारत अपनी बात खुलकर रेडियो के जरिए पहुंचाएगा। बलूचिस्तान, गिलगिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन की तरफ दुनिया का ध्यान खींचने की बात कही थी। 15 अगस्त 2016, लालकिले की प्राचीर, 8 बजकर 12 मिनट। प्रधानमंत्री ने दो घूंट पानी पिया, लगा कि अब वो पाकिस्तान की चर्चा शुरू करेंगे। लेकिन नहीं, 46 मिनट भाषण चलता रहा। एकाएक प्रधानमंत्री के तेवर बदले समय था 8 बजकर 57 मिनट, नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान पर सीधा निशाना साधा, बलूचिस्तान के नेताओं को भारत के समर्थन के लिए शुक्रिया कहा। उसके बाद चीन पर निशाना साधा और कहा कि अपनों से लड़ना नहीं चाहिए। यह भी साफ कर दिया कि वह भागना नहीं, लड़ना जानता है। 1 घंटे 35 मिनट के भाषण के आखिर में हुए जिक्र का बलूचिस्तान के लोगों ने जिस अंदाज में स्वागत किया लगा जैसे कोई स्वतंत्रता आन्दोलन की अलख जगा रहे सेनानी को साधुवाद दे रहा हो। सुलगते बलूचिस्तान में जगह-जगह नरेन्द्र मोदी के समर्थन में रैलियां निकली, भाषण हुए। पाकिस्तान को मिर्च लगनी थी, लगी। जेनेवा से लेकर बलूचिस्तान तक, नरेन्द्र मोदी को, उनके बयान के लिए धन्यवाद और साधुवाद दिया गया। भारत में अलगाववाद की मशाल जलाए रखने वाला पाकिस्तान अब चौबीसों घण्टे आकाशवाणी बलूचिस्तान के जरिए होने वाली परेशानियों को खूब समझ रहा है। लेकिन यदि जल्द ही अपने आका की गुप्त रणनीति से जम्मू-कश्मीर में वो भी कोई रेडियो प्रसारण करे तो हैरानी नहीं होगी। लेकिन उसे फायद क्या होगा? इससे भी बड़ी हरकतें जम्मू-कश्मीर रोज देख रहा है। सच तो ये है कि बलूचियों को जो दर्द और कृतज्ञता के भाव ने पाकिस्तान के राजनीतिक चेहरे को तनावग्रसत जरूर कर दिया है। लेखक वरिष्ठ पत्रकार और टिप्पणीकार हैं।



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