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मप्र भाजपा में इवेंट,इलेक्शन मैनेजमेंट और आधारहीन अचंभों की फैलती नई फौज

खास खबर, राज्य            Feb 20, 2018


राघवेंद्र सिंह।
कॉरपोरेट कल्चर की पालीटिक्स ने धुर दक्षिण पंथी भाजपा के ताने-बाने को ध्वस्त सा कर दिया है। राजनीति में पारिवारिक माहौल और प्रखर राष्ट्रवाद की भावना में इवेंट मैनेजमेंट ने ऐसी घुसपैठ की है कि संघ और उसके संस्कार संगठन व सत्ता के दरवाजे खड़े सिसकियां लेते ले अब हिचकिचयां लेते दिख रहे हैं। अपने खांटी कार्यकर्ताओं के साथ कभी जश्न-ए-शिकस्त मानने वाली भाजपा उत्सव मनाने के लिए आउटसोर्स करती दिखती है।

मात्र चौदह साल में भाजपा इस कदर बदली कि पुराने कार्यकर्ता अगर बुक्के फाड़ कर भी दर्दे दिल बयां करें तो किसी को फुरसत मिलेगी इसकी उम्मीद कम ही है। असल में इतनी बात कहने के पीछे चंद मिसालें भी हैं और उससे शायद ही कोई नाइत्तफाकी रखे।

गौर से पढि़ए... पहले शादी ब्याह से लेकर जन्म दिन मनाने सत्यनारायण की कथा में पंजीरी बनाने और बांटने का काम मिलजुलकर होते थे। मोहल्ले की बहन बेटियों से लेकर मेहमान तक मदद करते थे। शादियों से लेकर मैयत और तेहरवीं तक में भोजन बनने से पंगत परसने का काम भी किराए की टीम से नहीं मुहल्ले के लोग ही करते थे। तब हरेक काम में आनंद था। नौजवानों में इससे समाज सेवा व नेतृत्व भाव भी पैदा होता था।

जिन परिवारों में लड़के-लड़कियों की तादाद ज्यादा होती थी उनकी पूछ-परख भी होती थी। रौब-दौब भी होता था। प्रकारांतर में यही संख्या बल समाज के साथ सियासत में भी काम आता था। आगे चलकर राजनीतिक दलों में इन्हें कार्यकर्ता का नाम दिया। संघ के प्रचारक व पूर्णकालिक जनसंघ से लेकर जब भाजपा में आए तो उन्हें काडरबेस संगठन का नाम दिया गया। वामपंथियों में भी इसका चलन है, मगर चर्चाओं में संघ परिवार ज्यादा सुर्खियों में रहता आया है।

मगर अब सब कुछ कारपोरेट कल्चर में तब्दील हुआ और फिर मानव मन की जगह मशीनों ने ले ली। कम्प्यूटर मोबाइल से भावना और एहसास सब छिन लिया। रह गया तो सिर्फ मजहब। गिव एंड टेक। इसलिए मिस्ड काल के मेंबर भाजपा में जेट स्पीड से बदलते युग के माई-बाप बन गए। मनी और मेनुप्लेशन ही महत्वपूर्ण हो गया। गिरोहबंदी कर ईमानदारी, समर्पित कार्यकर्ता, अप्रसांगिक बना दिए गए। यही वजह है कि 14 फरवरी को भोपाल के जम्बूरी मैदान पर एक लाख किसानों को लाने का इवेंट तय किया गया।

अनुमान है प्रति किसान तीन सौ रुपये का खर्च भी निश्चित हुआ। (इवेंट मैनेजर नाराज न हो) यदि मानवीय भावनाएं इवेंट बनाती तो खराब मौसम, ओला, बारिश के कारण इसे स्थगित कर देती। मगर इवेंट मैनेजर या कंपनियों के लाभ हानि से जुड़ा धंधा होता है। व्यापार करने वाले घाटा सहन नहीं करते। सो करीब तीन करोड़ का यह किसानी जलसा रद्द नहीं हुआ।

बेमौसम बारिश व ओलावृष्टि पूरे प्रदेश के किसानों के लिए बड़ा अपशकुन और मौत के फरमान जैसी थी। मगर इवेंट मैनेजरों की पार्टी से इसे संपन्न कराकर ही दम ली। ये अलग बात है कि इसमें लगभग 25 हजार (बहुत उदार होने पर) कथित किसानों ने ही भाग लिया। भाजपा कार्यकर्ता, जिला व मोर्चा तक के पदाधिकारी कम ही नजर आए।

मुद्दे की बात यह थी कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किसान कल्याण की बड़ी घोषणा गेहूं खरीदी समर्थन मूल्य में 265 रु. प्रति क्विंटल की जबरदस्त वृद्धि करने वाले थे। अब गेहूं दो हजार रु. प्रति क्विंटल सरकार खरीदेगी। साथ ही पिछले साल की गेहूं खरीदी पर दो सौ रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से अतिरिक्त भुगतान भी करेगी।

इतना बड़ा ऐलान तब हुआ जब शिवराज सरकार का हाथ तंग है। उन्हें इसके लिए बधाई मगर संगठन के छोर पर भाजपा का दिल और दिमाग दोनों ही तंग हैं। इवेंट और इलेक्शन मैनेजमेंट के जरिए आधारहीन अचंभों की एक नई फौज अलबत्ता पूरे प्रदेश में जलकुंभी या कुकरमुत्तों की तरह फैल रही है। जलकुंभी जैसे झील के पानी पर फैल उसे पीने के साथ गंदा भी कर देती है। ठीक वही दशा भाजपा की हो रही है। इसे काबू में करने वाले संगठन मंत्री भी असफल हो रहे है।।

इवेंट मेनेजमेंट का दूसरा बड़ा किस्सा है प्रदेश भारतीय जनता युवा मोर्चे का पूरे प्रदेश में दीनदयाल ज्ञान प्रतियोगिता आयोजित की। करीब तीस लाख युवाओं ने इसमें भाग लेकर विश्व रिकार्ड बना दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी प्रदेश युवा मोर्चा ने प्रशंसा प्राप्त की। प्रतियोगिता की सफलता के लिये पीएम के रुख को देखते हुये प्रदेश सरकार भी सक्रिय हो गई थी। कुछ दिन में इसके नतीजों की घोषणा करने का वादा किया गया।

प्रतियोगिता जीतने वालों को हजारों इनाम देना तय हुआ था लेकिन कापी जांचने की तिथि निकल गई नतीजे घोषित नहीं हुए। लिहाजा परीक्षा देने वाले दीनदयालों के लिए इनाम भी नहीं बंटे दरअसल ये सब इवेंट ही है। जिनका हल्ला ज्यादा और उनकी अहमियत कम होती है।

यहां फिर कार्यकर्ता की याद आएगी जो अब पार्टियों के लिए दुलर्भ हैं। वह तो कहीं माचिस की डिबियों में बंद अपने सुरक्षित रखे होगा। इस इवेंट के दौर में ही आईपीएल के ललित मोदी से लेकर नीरव मोदी की नई कतार देखने सुनने को मिल रही है। इन सबका कहीं न कहीं सत्ताधारी दलों से हनीमून वाला रिश्ता निकलता है। चुनाव के पहले या बाद में मध्यप्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़, राजस्थान में बड़े प्लेयर उजागर हो सकते हैं।

मुकाबला कश्मकश के दौर में।
24 फरवरी को सूबे में संपन्न होने वाले दो विधानसभा मुंगावली-कोलारस में भाजपा इवेंट मैनेजर व इलेक्शन मैनेजरों से घिरी है। भोपाल में चुनावी क्षेत्रों के कार्यकर्ताओं के समूहों की मुख्यमंत्री से मुलाकात कराने के साथ बेहतर प्रबंधन के प्रमाण दिए जा रहे हैं जबकि उनमें कई चेहरे रिपीट हो रहे हैं।

सिंधिया रियासत में ये दोनों सीटें पहले माधवराव सिंधिया के बाद जूनियर महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया के कारण कांग्रेस के खाते में रही हैं। भाजपा के पास यहां खोने के लिए कुछ खास नहीं है। मगर कांग्रेस की सीटें छीनने के शाही (अमित शाह) प्रेशर के कारण प्रदेश भाजपा ने इसे मूंछ का सवाल बना दिया है। अटेर व चित्रकूट में भाजपा के फेल होने के बाद मुख्यमंत्री ने खजाना खोल दिया है।

सरपंचों को लाखों रुपए ऐसे वैसे चाहे जैसे भी हो योजनाओं के नाम पर दिए जा रहे हैं। राजमाता विजयाराजे सिंधिया की बेटी मंत्री यशोधरा राजे सभाओं में साफ कह रही हैैं विकास चाहिए तो पंजे को नहीं कमल को वोट दिजिए। जीत के लिये कुछ भी करेगा को मोड पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह सक्रिय हैं।

कांग्रेस की आंतरिक गुटबाजी को हवा देकर भाजपा लाभ उठाने की तैयारी में है। कांग्रेस में सिंधिया विरोधियों को समझा दिया है कि दोनों सीटें जीतें तो फिर सीएम के लिए सिंधिया ही चेहरा बनेेंगे। कुल मिलाकर 20113 में इन दोनों सीटों पर कांग्रेस ने भाजपा को 20 से 24 हजार वोट के भारी अंतर से मात दी थी। मगर विकास चाहिए तो भाजपा को वोट दें... यह नुस्खा असर कर गया तो भाजपा लाभ ले सकती है। लेकिन कांग्रेस ने भाजपा की किलेबंदी खूब तगड़ी की है।

प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया सक्रिय हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया सबसे ज्यादा सक्रिय हैं। अटेल विधानसभा उप चुनाव जीतने के बाद वे अग्निपरीक्षा के दूसरे दौर में हैं। उन्होंने इन चुनावों को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है। वे भी हर हाल में जीत चाहते हैं। कुल मिलाकर यहां चुनाव सिंधिया बनाम शिवराज है। लेकिन भाजपा ने बड़ी चतुराई के साथ यशोधरा राजे सिंधिया को प्रचार की कमान सौंप इसे सिंधिया बनाम सिंधिया बनाने का प्रयास किया है।

इन चुनावों की कमान मुख्यमंत्री समर्थक मंत्रियों भूपेंद्र सिंह व रामपाल सिंह के साथ नरोत्तम मिश्रा के हाथों में है। ये मंत्री गांव गांव में जाकर अफसरों हैं। भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता बाहरी नेताओं से नाराज हैं। इसलिए 15-16 फरवरी के बाद से बाहरी नेताओं को वापसी करने के संकेत दिए गये हैं। चुनाव प्रबंधन में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की भूमिका जरूर प्रभारी बतायी जा रही है। इवेंट्स अलग हट वे पुराने नेता व कार्यकर्ताओं को मनाकर सक्रिय करने में लगे हैं। मुकाबला कांटे पर आता दिख रहा है।

 


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