कीर्ति राणा।
मध्यप्रदेश भाजपा ने 39 के बाद फिर 39 प्रत्याशियों की दूसरी सूची जारी कर दी है। इस दूसरी सूची में तीन केंद्रीय मंत्रियों, चार सांसदों के साथ ही भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सहित विभिन्न क्षेत्रों से प्रत्याशी घोषित कर पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ ही कांग्रेस को भी चौंका दिया है।
ये दमदार नेता कहां तो कल तक मोशाजी से प्रत्याशियों को टिकट देने की सिफारिश करने की ताकत रखते थे और वक्त ऐसा आया कि केंद्रीय मंत्री नरेंद्रसिंह तोमर (दिमनी से), प्रह्लाद पटेल (नरसिंहपुर से), फग्गनसिंह कुलस्ते (निवास से) सहित चार सांसद रीवा से रीति पाठक, जबलपुर पश्चिम से सांसद-पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह, सतना के सांसद गणेश सिंह, होशंगाबाद के सांसद उदय प्रतापसिंह और कैलाश विजयवर्गीय अब मतदाताओं की चरणवंदना करते नजर आएंगे।
पार्टी नेतृत्व के इस चौंकाने वाले निर्णय को यूं भी देखा जा सकता है कि इन बीस सालों में सरकार ने हर सप्ताह, हर महीने मेगा इंवेंट करने में तो कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन आमजन के मानस पर अपनी उपलब्धियां अंकित नहीं कर पाई।
सरकार के मुखिया-मंत्रियों और मतदाताओं के बीच गहराती गई खाई में खदबदाते असंतोष को भांप चुके दिल्ली वाले नेताओं ने भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने के लिए अपने इन विश्वस्त सिपहसालार को ही मैदान में उतारना बेहतर समझा है।
ग्वालियर-चंबल, मालवा-निमाड़, विंध्य, नर्मदापुरम इन सभी क्षेत्रों में अधिकाधिक सीट मिलने पर ही भाजपा फिर से सरकार बनाने का आंकड़ा हासिल कर सकती है।
हर सभा में शिवराज ‘अबकी बार दो सौ पार’ का नारा लगवाते रहे, लेकिन अमित शाह जब-जब भी सभा करने आए, 150 सीटों से आगे नहीं बढ़े। ये अंतर बताता रहा कि नेतृत्व किसी मुगालते में नहीं रहना चाहता।
दूसरी सूची में इन दमदार नेताओं को मैदान में उतारने का मतलब है उनकी सीटों से लगे आसपास के जिलों में भी पार्टी के पक्ष में बनने वाली हवा को जीत की आंधी में बदलना। बहुत संभव है कि अगली सूची के नाम और अधिक चौंकाने वाले हों।
यदि इस प्रयोग के बाद भी भाजपा की कर्नाटक, पंजाब, दिल्ली जैसी फजीहत मध्यप्रदेश में भी हो जाए तो कम-से-कम शिवराजसिंह के कपड़े तो कालिख मुक्त रहेंगे। कारण वो तो सभा मंचों के स्टार प्रचारक बने हुए हैं, प्रत्याशी तय करने से लेकर चुनाव लड़ाने के सारे सूत्र तो दिल्ली टीम के हाथ में हैं।
पिछले चुनाव की तरह ‘हमारे तो शिवराज’ जैसा नारा टीम भाजपा ने अंधेरे में धकेल दिया है। यह चुनाव भारी भरकम घोषणाओं, मोदी के चेहरे, केंद्र की उपलब्धियों पर लड़ा जा रहा है।
मंत्रियों-सांसदों को चुनाव लड़ाने में सर्वाधिक चौंकाने वाला फैसला कैलाश विजयवर्गीय को क्षेत्र क्रमांक एक से लड़ाने का है। यह निर्णय पार्टी कार्यकर्ता ही नहीं, कांग्रेस को भी चौंकाने वाला ही है।
इसका इफेक्ट यह भी कि बैठे-ठाले कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला का कद बढ़ गया है। अब उन्हें जीत का तोहफा तश्तरी में मिलना संभव नहीं है... इसे कांग्रेस भी समझ चुकी है।
विजयवर्गीय से याराना कायम रखने के लिए बहुत संभव है कि दिग्विजय सिंह भी सुरेश पचौरी के माध्यम से कमलनाथ को यह मशवरा देने के लिए राजी कर लें कि संजय को ब्राह्मण-मुस्लिम बहुल सबसे कम मतदाता वाले तीन नंबर क्षेत्र से टिकट फाइनल कर दें!
ऐसा होने पर अश्विन और पिंटू के बीच बढ़ती अदावत को तो रोकने में कामयाबी मिल जाएगी, लेकिन महेश जोशी की अंतिम इच्छा पिंटू को चुनाव लड़ाने के वादे की दिग्विजय सिंह को बलि चढ़ाना पड़ सकती है!
विजयवर्गीय क्षेत्र क्रमांक एक से चुनाव भारी भरकम लीड से जीत सकते हैं, क्योंकि पूर्व विधायक सुदर्शन गुप्ता जिन नरेंद्रसिंह तोमर के भरोसे थे, वो तो मदद करने से रहे।
अन्य दावेदार दीपक जैन टीनू, कमलेश खंडेलवाल, गुरुजी न्यास वाले गोपाल गोयल को भी नेतृत्व ने संदेश दे दिया है कि पार्टी के लिए जब एक एक सीट नाक का सवाल बन गई हो, तब इनमें से कोई भी इस सीट से पार्टी की नाक ऊंची करने लायक नहीं है।
विजयवर्गीय के बाद पार्टी उनके पुत्र आकाश को भी टिकट देकर परिवारवाद की आग में झुलसने की गलती पार्टी किसी हालत में नहीं करेगी।
पिछले दिनों हुई ताई-भाई की मुलाकात का रहस्य अब खुलता है तो मराठी बहुल इस क्षेत्र से ताई-पुत्र मिलिंद महाजन का नाम अगली सूची में घोषित हो सकता है।
ऐसे में पांच नंबर से दावेदारी कर रहे गौरव रणदिवे को टिकट मिलना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि इंदौर के दो मराठी भाषियों को उपकृत करने की गलती करने की बजाय यहां किसी अन्य समाज (जैसे- संघ से जुड़े अशोक अधिकारी) या अन्य को प्रत्याशी बनाया जा सकता है।
बीते वर्षों में जब-जब भी मप्र में बदलाव की आवाज उठी विजयवर्गीय, तोमर, पटेल के नाम ही उभरते रहे! अब ये तीनों चुनाव मैदान में हैं। बहुत संभव है कि मालवा-निमाड़ में ढहते किले को मजबूत करने के लिए विजयवर्गीय पर भरोसा किया जाए या सिंधिया-तोमर विवाद की आग पर पानी डालने के लिए तोमर पर या उमा भारती को खुश करने ‘विंध्य’ को मजबूत बनाने के लिए पटेल को कमान सौंपी जाए।
यह नवंबर अंत तक स्पष्ट हो जाएगा। फिलहाल तो भाजपा की अगली सूची का भी इंतजार करना होगा कि कहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी नाम ना आ जाए।
रही कांग्रेस की बात तो वह अभी शिवराज के खिलाफ जन आक्रोश को भुनाने निकली हुई है। कमलनाथ यदि कहते रहे हैं कि प्रत्याशियों की सूची तो तैयार है... बस इशारा करना है... तो अब नाम फाइनल करने वाले वरिष्ठ नेताओं को भी भाजपा की यह दूसरी सूची मंथन का वक्त देने के लिए पर्याप्त है।
कांग्रेस में ऐसे कितने पूर्व केंद्रीय मंत्री, राज्यसभा सदस्य हैं, जो कांग्रेस नेतृत्व से अनुरोध करें कि हम विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं। भाजपा की इस दूसरी सूची में भी शिवराज सिंह का नाम नहीं है।
ऐसे में यह कयास लगाना भी जल्दबाजी होगी कि पार्टी उन्हें बुधनी से ही लड़ाएगी या अब तक हारती रही किसी सीट से प्रत्याशी बनाएगी।
बहुत संभव है कि अभी जिन मंत्रियों-सांसदों को सीट जिताने के लिए उतारा है, इनसे छह महीने बाद इस्तीफे करवाकर इन सीटों पर उन दावेदारों को भी मौका दिया जा सकता है, जिन्हें अभी ‘खून का घूंट’ पीना पड़ा है।
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