प्रकाश भटनागर।
लोकतंत्र की सबसे छोटी इकाई ग्राम पंचायत के वातावरण को समरस बनाये रखने के नजरिये से मध्यप्रदेश में समरस पंचायतों को बढ़ावा देने का शिवराज सिंह चौहान का प्रयास तारीफ के काबिल है।
पंचायतों में जहां सभी पदों पर महिलाओं के निर्विरोध निर्वाचन पर 15 लाख रुपए सहित अन्य तरीके की प्रोत्साहन राशियों की घोषणा की गई है, एक बड़ा कदम है।
यह पूरी व्यवस्था में आधी आबादी के सशक्त प्रतिनिधित्व का रास्ता साफ करेगी, वहीं इसके माध्यम से मध्यप्रदेश देश में एक अलग पहचान स्थापित कर सकेगा।
राज्य की शांति के टापू वाली छवि को भी इससे मजबूती मिलेगी।
चौहान के तीन कार्यकाल में घोषणाओं को साकार रूप देते हुए कई नवाचार किये गए।
चौथे कार्यकाल में पंचायत चुनावों में समरसता वाला प्रयोग भी इसी दिशा में एक उल्लेखनीय कदम है।
यह सभी जानते हैं कि बहुत छोटी इकाई होने के बाद भी पंचायत को राजनीतिक लांच पेड के रूप में बड़ा महत्व मिल चुका है।
सियासी महत्वाकांक्षाओं के इस आरंभिक बिंदु को लेकर गहमागहमी वाला फैक्टर अब जबरदस्त खींचतान में बदल चुका है।
कई जगह तो पंचायत चुनाव दुश्मनी की लंबी और नई कहानी लिख देते हैं।
आशय यह कि पंचायत में मजबूती के माध्यम से अर्थसत्ता तक अपनी जड़ गहरी करने का रास्ता साफ हो जाता है।
इसके चलते भी पंचायत के चुनावों में माहौल का स्तर खींचतान से भी आगे घमासान वाला होता चला गया है।
इसमें न हिंसा वाली बात डराती है और न ही अनुचित तरीकों के इस्तेमाल वाली खबरों में अब चौंकाने का माद्दा रह गया है।
बल्कि होने यह भी लगा है कि इन चुनावों की प्रतिद्वंदिता और नतीजों से गांवों में 'चुनावी रंजिश' के भी सनसनीखेज प्रकरण सामने आने लगे हैं।
यानी चुनाव के दौरान पनपे मतभेद और मनभेद अंतत: संगीन अपराध का कारण बन जा रहे हैं।
ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि राजनीतिक प्रदूषण के इस मकड़जाल से कम से कम गांवों को मुक्त रखा जाए।
अब जिला, प्रदेश या देश के स्तर पर तो समरस वाली थ्योरी को चुनावी समर में लागू किया नहीं जा सकता, लेकिन यह तो हो ही सकता है कि 'मेरा गांव शांति का संदेश' की दिशा में ही प्रयास कर लिए जाएं। शिवराज ऐसा ही कर रहे हैं।
इस दिशा में उनकी नीति तथा नीयत को 'असंभव' या 'आकाश कुसुम' वाली बेड़ियों से भी जकड़ा नहीं जा सकता।
समरस पंचायत का लक्ष्य हासिल करना व्यावहारिक रूप से संभव है।
यदि महिला सरपंच अथवा पंचों के निर्विरोध निर्वाचन पर पंचायत को 15 लाख की प्रोत्साहन राशि मिलेगी, तो इस समरसता की दिशा में उत्साहजनक वातावरण बनने की पूरी गुंजाइश रहेगी।
सभी पंच तथा सरपंच के निर्विरोध निर्वाचन की सूरत में सात लाख की प्रोत्साहन राशि भी इस कोशिश की सफलता के लिए एक सार्थक प्रयास प्रतीत होता है।
लेकिन शिवराज सरकार को इस काम के लिए एक फुलप्रूफ कार्यक्रम अभी से ठोक-बजाकर तैयार करना होगा।
समरसता यकीनन अच्छा तत्व है, किन्तु कतिपय परिस्थितियों में सर्वसम्मति की बजाय यह सामने आना बहुत आवश्यक हो जाता है कि सही और गलत के बीच मुकाबले से ही तस्वीर स्पष्ट की जा सके।
यह रिस्क है कि कहीं निर्विरोध की होड़ में वह विरोध कमजोर न पड़ जाए, जो सही अर्थ में गलत के मुकाबले ताल ठोंककर खड़े होने की क्षमता रखता है।
या फिर यह निर्विरोध किसी गलत के चयन के प्रति उमड़ते-घुमड़ते विरोध के दमन का कारण न बन जाए।
एक लतीफा है, दो लोग एक साथ मर कर यमलोक पहुंचे। उनके पुण्य संख्या के हिसाब से इतने बराबर थे कि दोनों को ही स्वर्ग भेजा जाना था। लेकिन जगह केवल एक व्यक्ति की थी।
मुकाबले की गुंजाइश नहीं थी, लेकिन मुकाबला जरूरी भी हो गया था। संघर्ष को टालने के लिए दोनों के पुण्य एक बार फिर गिनवाए गए।
पता चला कि मृतकों में से एक ने अपने जीवनकाल में किसी भिखारी को पांच रुपये का जो सिक्का दिया था, वह खोटा था। मृतक ने दलील दी कि उसने यह दान रात के समय किया था, लिहाजा वह सिक्का ठीक से देख नहीं सका।
लेकिन मामला तो 'निर्विरोध' वाला था, इसलिए पाप-पुण्य की गणना कर रहे देवता ने दूसरे मृतक को स्वर्ग भेजने का फरमान सुना दिया।
जब खोटे वाले ने यह गलती अनजाने में होने की बात कही तो उसे कहा गया 'उफ! ये वापस लो अपने पांच रुपये और चुपचाप स्वर्ग से दूर चले जाओ।'
कहने का आशय यह कि निर्विरोध की बुनियाद पर टिकी समरसता की यह थ्योरी कहीं रसूखदार शख्सियत की सुविधा के लिहाज से माहौल तैयार कराने तथा किसी सचमुच पात्र किन्तु रसूख से अक्षम की संभावनाओं को बट्टा लगाने वाली साबित न हो जाए।
फिर, महिला जनप्रतिनिधियों के नाम पर पुरुषों की अघोषित हुकूमत वाली चुनौती से तो कोई भी सरकार आज तक मुक्ति नहीं पा सकी है।
इसलिए यह जरूरी लगता है कि शिवराज प्रोत्साहित करने के हतोत्साहित करने वाले आसन्न साइड इफेक्ट्स को भी ध्यान में रखकर आगे बढ़ें।
वैसे समरस पंचायतों के नाम पर यदि शिवराज ने इतना होमवर्क कर लिया है तो फिर ऐसे किन्तु-परन्तु का भी बंदोबस्त वह कर ही चुके होंगे।
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