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आपातकाल में मीसाबंदियों की आवाज बनी गुजराती पत्रकारिता

मीडिया            Jun 19, 2022


 मल्हार मीडिया भोपाल।
गुजराती पत्रकारिता की परंपरा बहुत पुरानी है। आजादी से लेकर आज तक गुजराती और गुजराती पत्रकारिता अपने सामाजिक दायित्व निभाती आ रही है। आपातकाल के दौरान तो गुजरात से निकलने वाला साप्ताहिक पत्र ‘साधना’ तो एक तरह से मीसाबंदियों की आवाज ही बन गया था।

गुजरातियों ने पत्रकारिता के अलावा आजादी की लड़ाई, उद्योगों की स्थापना और समाज सुधार के कार्यों में भी महती भूमिका निभाई है। यह कहना है गुजराती पत्रकारिता के समर्थ हस्ताक्षर पद्मश्री विष्णु पंड्या का।

वे आज मध्यप्रदेश की राजधान भोपाल स्थित माधवराव सप्रे स्मृति समाचारपत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान के 39वें स्थापना दिवस समारोह के अवसर पर आयोजित व्याख्यान एवं सम्मान समारोह में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे।

सप्रे संग्रहालय के सभागार में आयोजित समारोह में पद्मश्री विष्णु पंड्या को सप्रे संग्रहालय के राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित भी किया गया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व आयकर आयुक्त आरके पालीवाल थे तथा अध्यक्षता प्रसिद्ध बाल साहित्यकार एवं साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे कर रहे थे।

प्रखर पत्रकार एवं साहित्यकार माधवराव सप्रेजी का आज 151वें जन्मदिवस तथा आगामी एक जुलाई को गुजराती के पहले समाचार पत्र ‘मुंबई समाचार’ के 200 वर्ष पूरे होने की बेला में आयोजित कार्यक्रम गुजराती पत्रकारिता पर केंद्रित किया गया था।

कार्यक्रम के मुख्यअतिथि आरके पालीवाल ने कहा कि गुजराती समाज सेवा भावी समाज है। यहां के लोगों ने समाज सेवा और देश सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य किए हैं।

उन्होंने बताया कि गुजराती पत्र ‘भूमि पुत्र’ के माध्यम से उनका गुजराती समाज से जुड़ाव रहा। इसी तरह वर्ष 2009 में सर्वोदय परिवार के पत्र ‘हिंद स्वराज’ के शताब्दी अंक के संपादन के दौरान और भी करीब आया।

उन्होंने बताया कि मुंबई में बसे कई लोगों ने गुजरात के आदिवासी गांवों में जाकर वहां सेवा कार्य किए और उन गांवों की तस्वीर बदल दी। उनके स्वयं के द्वारा किए कार्यों के अनुभव को भी साझा किया।

श्री पालीवाल ने सुझाव दिया कि भोपाल में बसे गुजराती समाज के लोग राजधानी के आसपास के छोटे गांवों के उत्थान के कार्यों में आगे आयें।

कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. विकास दवे ने कहा कि यह आयोजन गुजराती पत्रकारिता के माध्यम से पत्रकारिता के परिवेश पर चिंतन का अवसर भी देता है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर यह बात कही जाती है कि पत्रकारिता ‘मिशन’ है या ‘व्यवसाय’।

लेकिन दोनों में ही ईमानदारी का भाव होना चाहिए। यदि व्यवसाय का प्रवेश हो रहा है तो बुराई नहीं है। लेकिन इससे जीवन मूल्यों का हनन नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ‘न्यूज में व्यूज’ का प्रवेश चंद उपकृत हुए लोगों द्वारा राष्ट्रीय चेतना को दबाने का षडयंत्र है।

पत्रकारिता को अपने उद्देश्य से भटकना नहीं चाहिए। देखने में आ रहा है कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बाकि तीन स्तंभों की सीमाओं का अतिक्रमण करने को आतुर है। यह स्थिति पत्रकारिता के लिए ठीक नहीं मानी जाएगी।

आरंभ में संग्रहालय के संस्थापक-संयोजक विजयदत्त श्रीधर ने स्वागत वक्तव्य देते हुए आयोजन के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मुंबई समाचार के 200 वर्ष पूरे हो रहे हैं। यह पूरी पत्रकारिता के लिए गौरव की बात है।

इस बहाने गुजराती पत्रकारिता के सामाजिक सरोकारों को जानने-समझने की भावना से यह आयोजन रखा गया है। उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी की जन्मभूमि बाबई का नाम माखन नगर किये जाने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का आभार भी माना।

आयोजन में राजधानी के गुजराती समाज की सहभागिता भी रही। कार्यक्रम का संचालन एवं आभार साहित्यकार सुधीर मोता ने किया। इस अवसर पर शहर के प्रबुद्धजन बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

आजादी के आंदोलन से लेकर समाज सेवा में योगदान
इस अवसर पर सम्मानित विभूति विष्णु पण्ड्या ने ‘गुजराती पत्रकारिता की परंपरा और सरोकार’ विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि यदि गुजराती पत्रकारिता की बात करें तो ‘मुंबई समाचार’ ने एक तरह से पत्रकारिता का इतिहास बदल डाला है। पत्रकारिता के प्रति गुजरात का समर्पण देखें तो गांधी से पहले पोरबंदर से अफ्रीका पहुंचे लाला हरदयाल ने चार भाषाओं में समाचार पत्र निकाले।

दो सौ साल पहले सूरत से घर से भागकर निकले फरदूनजी मर्झवानजी ने ‘मुंबई समाचार’ निकाला। जो आज जीवंत पत्रकारिता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। आजादी के आंदोलन में गुजराती पत्रकारिता की अहम भूमिका रही है।

सन 1857 की क्रांति में पारसी अखबारों ने ही विदेशों में हिंदुस्तान की प्रतिष्ठा रखी। इसे अँगरेज इतिहासकारों ने भी माना है।

गुजराती समाज के 50 से ज्यादा लोग पत्रक्रांति से जुड़े रहे फिर वे वापस घर तक नहीं आ पाये थे सभी को फांसी हुई थी। 20वीं सदी में महात्मा गांधी ने ‘नवजीवन’, ‘यंग इंडिया’ और ‘हरिजन’ जैसे पत्र निकाले। इन पत्रों के जरिये समाज सुधार के कार्य करते थे। जिसका परिणाम ही था कि एक महिला ने अपने बेटे की गुड़ खाने की आदत छुड़ाने में उनसे मदद चाही थी।

‘मीसाबंदियों’ की आवाज बने गुजराती पत्र

अपने उद्बोधन में पण्डयाजी ने कहा कि आपातकाल के दौरान साप्ताहिक पत्र ‘साधना’ मीसाबंदियों की आवाज बन गया था। सरकार की पैनी निगाह के बीच भी हम देश भर के मीसाबंदियों के समाचार इस पत्र में छपते थे। उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश से बावस्ता संघ के एक प्रचारक प्यारेलाल खंडेलवाल ने पत्र लिखकर अनुरोध किया कि आज यही उम्मीद की किरण है। आप इसे हिंदी में भी निकालें। इस वजह से फिर देवनागरी लिपि में समाचार लिखे जाने लगे। उन्होंने बताया कि आपातकाल में देश के सौ पत्रकार जेल में थे। उनमें से स्वयं भी एक थे। जेल के अनुभवों के आधार पर ही ‘मीसावास्यम’ किताब लिखी थी।

यह मेरा तीसरा सम्मान
अपने सम्मान के प्रतिउत्तर में विष्णु पण्ड्याजी ने कहा कि यह मेरा तीसरा सम्मान है। पहला सम्मान तब मिला था जब मुझे पत्रकारिता ने जेल पहुंचाया था। दूसरा सम्मान तब था जब गुजरात के दूर-दराज के गांव में रहने वाली हमारे अखबार की एक पाठिका ने पत्र लिखकर यह आग्रह किया अर्थाभाव में आपका पत्र खरीद नहीं पाती हूं, कृपया मुझ तक समाचार पत्र भिजवायें, जब भी संभव होगा राशि भिजवा दूंगी। एक अल्पशिक्षित पाठक से मिला यह सम्मान ‘पद्मश्री’ से कम नहीं है। तीसरा सम्मान विद्यानुरागी राजाभोज की नगरी में मुझे सप्रेजी के नाम पर स्थापित पत्रकारिता का यह राष्ट्रीय सम्मान मिलना है।

सम्मान भी प्रदान किए गए
इस अवसर पर सप्रे संग्रहालय द्वारा दिए जाने वाले सम्मान भी प्रदान किए गए। इस क्रम में पद्मश्री विष्णु पण्ड्या को ‘माधवराव सप्रे पुरस्कार’ तथा विज्ञान संचारिका सारिका घारू को ‘महेश गुप्ता सृजन सम्मान’ से सम्मानित किया गया।

इसके अलावा कैलाश यादव, राकेश कुमार, जितेंद्र चौहान, सुनील दौराह, राहुल यादव को ‘आंचलिक पत्रकार सम्मान’ दिए गए।

सम्मानित विभूतियों की प्रशस्ति का वाचन सप्रे संग्रहालय की निदेशक मंगला अनुजा ने किया।

 



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