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संवैधानिक संस्थाएं व्यक्तिगत आजादी की सुरक्षा की गारंटी क्यों नहीं देती?

मीडिया            Feb 06, 2023


राकेश दुबे।

अंतत: मलयालम न्यूज वेबसाइट के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को लखनऊ की जिला जेल से बीते गुरुवार को 28 माह की जेल के बाद रिहा कर दिया गया।

उन्हें 5 अक्तूबर, 2020 में तब गिरफ्तार कर लिया गया था जब वे उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित हाथरस गैंगरेप मामले में पीड़िता के घर जा रहे थे।

उत्तर प्रदेश सरकार का आरोप था कि वह सिर्फ पत्रकार की भूमिका में नहीं थे बल्कि केरल में सक्रिय प्रतिबंधित संगठन पीएफआई के लिये सक्रिय थे और हाथरस मामले को उछालने के लिये उन्हें विदेशों से पैसा भेजा गया था।

इस प्रसंग में पत्रकार, सरकार की कार्रवाई, सुप्रीम कोर्ट तथा स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर राष्ट्रव्यापी बहस चलती रही है।

उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश सरकार का दावा रहा है कि जिस अखबार का रिपोर्टर होने का दावा कप्पन करते हैं वह साल 2018 में बंद हो चुका है। वहीं सिद्दीक कप्पन का कहना है कि वह मलयालम भाषा की न्यूज वेबसाइट अजीमुखम के लिये काम करते हैं और केरल वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के दिल्ली सचिव हैं।

 उनकी गिरफ्तारी के बाद कई पत्रकार संगठन भी सक्रिय थे। कालांतर में यह मुद्दा दो राज्यों के बीच विवाद का विषय बन गया। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने इस मामले में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर इस मामले में दखल देने का आग्रह करते हुए कहा था कि उनकी तबीयत ठीक नहीं है और उनके साथ मानवीय व्यवहार किया जाये।

 साथ ही उन्होंने कप्पन को सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में स्थानांतरित करने की मांग की थी। उनका कहना था कि केरल के सामान्य लोग व पत्रकार बिरादरी कप्पन की स्थिति और उसके मानवाधिकारों को लेकर चिंतित हैं।

केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट ने भी कप्पन को दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग की थी। इस संगठन ने मांग की थी कि इतना ही नहीं।

केरल के पत्रकारों ने सुप्रीम कोर्ट से दखल की मांग करते हुए मामले में सुप्रीम कोर्ट में हेबियस कारपस यानी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की थी, जिसमें उनके गिरकर चोटिल होने तथा कालांतर में कोरोना पीड़ित होने पर चिंता जाहिर की थी।

इसके अलावा केरल के ग्यारह सांसदों ने भी तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कप्पन की तत्काल रिहाई की मांग की थी। उनके साथ दो अन्य आंदोलनकारी छात्रों को भी गिरफ्तार किया गया था।

दरअसल, एक माह पूर्व उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट से मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत मिली थी।

उल्लेखनीय है कि अन्य मामलों में बीते साल सुप्रीम कोर्ट से उन्हें जमानत मिल गई थी, लेकिन मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उन्हें जमानत नहीं मिल पायी थी।

कालांतर में बीते दिसंबर में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत देते हुए उनके खाते में विदेशी धन ट्रांसफर होने की बात से इनकार किया था।

प्राथमिकी में भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के अंतर्गत राजद्रोह, धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों में शत्रुता को बढ़ावा देने, धार्मिक भावनाओं का अपमान करने एवं दुर्भावनापूर्ण ढंग से लोगों को उकसाने के आरोप लगाये थे।

इसके चलते उन पर गैरकानूनी रोकथाम अधिनियम यानी यूपीए और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। साथ ही चार्जशीट में आरोप लगाया गया कि आरोपियों ने दोहा व मस्कट स्थित वित्तीय संस्थानों से प्राप्त अस्सी लाख रुपये के जरिये प्रदेश में अशांति फैलाने का प्रयास किया। इसके अलावा आरोप लगा कि कप्पन के लेपटॉप व मोबाइल से संवेदनशील जानकारी मिली है।

वहीं कप्पन का कहना है कि हाथरस ही नहीं, वे कश्मीर व अन्य स्थानों पर रिपोर्टिंग करने के लिये ग्राउंड जीरो पहुंचते रहे हैं। हाथरस में बड़ी घटना थी बलात्कार व हिंसा की शिकार लड़की के शव का उसके परिजनों की इच्छा के विरुद्ध दाह-संस्कार कर दिया गया था।

आरोप है कि कप्पन के कोरोना पीड़ित होने पर हथकड़ी के साथ अस्पताल में रखा गया। वहीं पुलिस अधिकारी दावा करते हैं कि वे सिर्फ सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में थे।

यही वजह है कि कप्पन की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा था कि जिस ढंग से उन्हें अस्पताल में रखा गया, उससे उनके जीवन पर संकट आ सकता है।

हालांकि उन्हें बीच में बीमार मां को देखने के लिये पांच दिन की बेल जरूर मिली थी। 

जेल से बाहर आने के बाद कप्पन ने कहा कि उन्हें जेल के भीतर पढ़ने-लिखने में खासी दिक्कत हुई।

उनकी दलील है कि उनके खिलाफ जो आरोप लगाये गये हैं उसके लिये किसी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।

दरअसल, मीडिया की आजादी के इतर बहस इस बात पर भी होती रही है कि संवैधानिक संस्थाएं व्यक्तिगत आजादी की सुरक्षा की गारंटी क्यों नहीं देती? इसमें व्यक्ति की निजी आजादी का प्रश्न भी शामिल है।

 



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