मल्हार मीडिया भोपाल।
भारत जैसे देश में कोई भी व्यवस्था तभी चल सकती है जब वह बहुसंख्यक समाज का स्वाभाविक संस्कार बन जाए। कोई भी ऐसी बात जो मानवीय गरिमा को क्षति पहुंचाती हो।
उसे लेकर यदि आम नागरिकों के मन में हिचक का भाव होगा तभी उनमें संवैधानिक मूल्यों को लेकर आग्रह और आदर का भाव पैदा होगा।
प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल ने रविवार को विकास संवाद संविधान फेलोशिप उन्मुखीकरण कार्यक्रम के समापन के अवसर पर आयोजित संविधान संवाद व्याख्यान में ये बातें कहीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता सामाजिक कार्यकर्ता विभूति झा ने की।
‘समाज संस्कार और संविधान’ विषय पर बोलते हुए प्रोफेसर अग्रवाल ने कहा कि हमें यह स्वीकार करना होगा कि आजादी के बाद के सात दशकों में संवैधानिक मूल्यों को जनता का संस्कार बनाने के गंभीर प्रयासों पर ध्यान नहीं दिया गया।
उन्होंने कहा कि अगर ऐसा किया गया होता तो इतना संवेदनहीन समाज देखने को नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि ऐसे प्रयासों पर जोर दिया जाए।
उन्होंने स्पष्ट किया कि लोकतंत्र केवल संख्या बल का नाम नहीं है बल्कि वह संस्थाओं और मर्यादाओं से बनता है।
उन्होंने भारतीय संविधान को एक दूरदर्शी संविधान बताते हुए कहा कि वह एक बेहतर और न्याय संगत समाज का स्वप्न हमारे सामने रखता है जिसे साकार करने का ध्येय लेकर हमें आगे बढ़ना है।
उन्होंने डॉ. बी.आर अम्बेडकर को उद्धृत करते हुए कहा कि भले ही संविधान निर्माताओं के सामने यह चुनौती थी कि उन्हें बुनियादी रूप से एक अलोकतांत्रिक समाज में एक लोकतांत्रिक संविधान लागू करना था।
लेकिन तथ्य यह भी है कि समाज को अनिवार्य तौर पर न्याय संगत होना ही चाहिए।
उन्होंने विकास संवाद संविधान फेलोशिप के भावी फेलोज को भी शुभकामना देते हुए आशा जतायी कि वे समाज में स्थायी बदलाव की दिशा में सार्थक काम करेंगे।
इससे पहले विकास संवाद के निदेशक सचिन कुमार जैन ने संवैधानिक मूल्यों की महत्ता पर बात करते हुए इस फेलोशिप की जरूरत के बारे में बात की।
उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान एक अभूतपूर्व संविधान जिसे बहुत विस्तार से व्याख्यायित किया गया है।
उन्होंने कहा कि इतने विपरीत वैश्विक हालात में हमारा संविधान रचा गया लेकिन इसके बावजूद किसी सदस्य ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि हम लोकतांत्रिक प्रणाली के अलावा किसी अन्य शासन प्रणाली को अपनायें।
फेलोशिप के बारे में उन्होंने कहा कि संस्थान काफी समय से इस बात पर विचार कर रहा था कैसे आम जीवन में संवैधानिक मूल्यों के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाया जाए।
उन्होंने कहा कि पत्रकारों और अधिवक्ताओं के लिए शुरू की गयी यह फेलोशिप इसी दिशा में बढ़ाया गया एक कदम है।
इस दौरान मुख्य वक्ता पुरुषोत्तम अग्रवाल और अध्यक्षता कर रहे विभूति झा ने सचिन कुमार जैन की पुस्तक ‘जीवन में संविधान’ का लोकार्पण भी किया।
यह पुस्तक रोजमर्रा की घटनाओं के उदाहरण के साथ जीवन में संवैधानिक मूल्यों की महत्ता को प्रदर्शित करती है।
कार्यक्रम का संचालन चिन्मय मिश्र ने किया। कार्यक्रम में बड़ी तादाद में शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
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