मल्हार मीडिया भोपाल।
जातीय जनगणना पर अपना फैसला सुनाकर पटना हाई कोर्ट ने आखिरकार नीतीश कुमार के ड्रीम प्लान को हरी झंडी दे दी है। जातीय गणना को लेकर पटना हाईकोर्ट ने इस संदर्भ में नीतीश सरकार को बड़ी राहत दी है।
जातीय सर्वेक्षण मामले पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने बिहार सरकार को जातीय गणना कराने की अनुमति दे दी है। इतना भर नहीं इस मामले में दायर विरोधियों की तमाम याचिकाओं को पटना हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है।
दरअसल, देश के ये बड़े नेता यह मानते थे कि आजादी के पहले और और आज की स्थिति में काफी बदलाव आया है। तब के जातीय जनगणना के अनुसार आज उनकी जनसंख्या नहीं है। इसलिए सरकारी योजनाओं का अनुपातन लाभ, आरक्षण पाने वाले जातियों की स्थिति सही से परिलक्षित नहीं हुई है। इस वजह से सदन में उनकी हिस्सेदारी भी अनुकूल नहीं हो पाई है। यह लोकतंत्र में कहीं न कही नाइंसाफी है।
दरअसल, सामाजिक न्याय की राजनीति करने वालों का यह आरोप हमेशा रहता था कि पिछड़ा, अतिपिछड़ा और दलितों की जनसंख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है जबकि सवर्ण समुदाय की कम। कारण भी बताते हैं कि पिछड़ों, अतिपिछड़ा और दलित में शिक्षा का चलन कम था। वे समझते थे जितना बड़ा परिवार उतनी आमदनी के स्रोत। इस वजह से आज की लोकतांत्रिक व्यवस्था में उन्हें जनसंख्या के अनुपात में हिस्सेदारी नहीं मिल पाती है। इनकी बढ़ती आबादी यानी लोकतांत्रिक व्यवस्था में बढ़ते वोट की तरह देखा जाता रहा है। इस वोट बैंक के बढ़ते स्वरूप से इन पार्टियों की राजनीतिक स्थिति मजबूत रहेगी।
यूं तो भाजपा जनगणना का खुल कर विरोध नहीं किया, बल्कि उसने बड़ी चालाकी के साथ नरेंद्र मोदी नीति सरकार अतिपिछड़ा और पिछड़ा की राजनीति को जगह देनी शुरू कर दिया है। लेकिन खुलकर समर्थन नहीं करने के पीछे भाजपा की सोच यह थी कि कहीं इनसे सवर्ण वोटर नाराज नहीं हो जाए। दूसरी तरफ भाजपा की राजनीति की थ्योरी फेल होती दिख रही थी। उसे लग रहा था कि जातीय जनगणना से हिंदू में बिखराव आएगा।
हालंकि भाजपा ने इस जरूरत से इनकार करने के बदले अपनी नीति में ही बदलाव लाने लगी। बिहार के सापेक्ष अगर बात करें तो पिछले कई सालों से भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष पिछड़ा से बनता रहा है। यहां तक कि भाजपा ने पसमांदा मुस्लिमों को भी टारगेट कर सबका साथ, सबका विकास के नारे के साथ उदारवादी हिंदू जैसी छवि के साथ इसका सामना करने की तैयारी भी कर ली है।
हालंकि अभी महागठबंधन की राजनीति को हाई कोर्ट का फैसला अच्छा लग रहा होगा। इस बार की जातीय जनगणना में उप जातियों का जिन्न भी निकलेगा और तब वह भी हिस्सेदारी का दवाब जातीय नेताओं पर बनाएंगे। पिछड़ों में ही ऐसी कई जातियां हैं, जिनके अंदर भी कई उपजातियां हैं। उदाहरण के तौर पर वैश्य ले लें। तो इसके अंदर तेली, सुडी, कलवार आदि आदि उप जातियों भी सामने आएंगी जो पिछड़ों की राजनीत करने वालों के लिए कई परेशानी लेकर आ सकती है।
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