मल्हार मीडिया ब्यूरो।
मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति वाले नए कानून को लेकर बुधवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है।
केंद्र सरकार ने कहा- यह दलील गलत है कि किसी संवैधानिक संस्था की स्वतंत्रता तभी होगी, जब सिलेक्शन पैनल में कोई ज्यूडिशियल मेंबर जुड़े। इलेक्शन कमीशन एक स्वतंत्र संस्था है। इस याचिका का मकसद सिर्फ राजनीतिक विवाद को खड़ा करना है।
सुप्रीम कोर्ट नए कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है। ये याचिका कांग्रेस कार्यकर्ता जया ठाकुर ने दाखिल की थी। पीठ ने इस याचिका पर 12 जनवरी को सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति ने 14 मार्च को पूर्व IAS अफसर ज्ञानेश कुमार और सुखबीर संधू को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया था।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति ने 14 मार्च को पूर्व IAS अफसर ज्ञानेश कुमार और सुखबीर संधू को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया था।
2 मार्च 2023 को मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। कोर्ट ने आदेश दिया कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक पैनल करेगा। जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और CJI शामिल होंगे। इससे पहले सिर्फ केंद्र सरकार इनका चयन करती थी।
5 सदस्यीय बेंच ने कहा कि ये कमेटी नामों की सिफारिश राष्ट्रपति को करेगी। इसके बाद राष्ट्रपति मुहर लगाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा था कि यह प्रोसेस तब तक लागू रहेगा, जब तक संसद चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कोई कानून नहीं बना लेती।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार पिछले साल मानसून सत्र में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और अन्य चुनाव आयुक्तों (EC) की नियुक्ति, सेवा, शर्तें और अवधि से जुड़ा बिल, 2023 लेकर आई। इस बिल के तहत चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति तीन सदस्यों का पैनल करेगा। इसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता और एक कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे। पैनल से CJI को बाहर रखा गया था। दिसंबर में शीतकालीन सत्र के दौरान यह बिल दोनों सदनों में पास हो गया।
नए कानून पर विपक्ष ने आपत्ति दर्ज कराई थी
विपक्षी दलों का कहना था कि सरकार सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के आदेश के खिलाफ बिल लाकर उसे कमजोर कर रही है। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2023 में एक आदेश में कहा था कि CEC की नियुक्ति प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और विपक्ष के नेता की सलाह पर राष्ट्रपति करें।
नया कानून सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन
जया ठाकुर ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि धारा 7 और 8 स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत का उल्लंघन है क्योंकि यह चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के लिए स्वतंत्र तंत्र प्रदान नहीं करता है।
याचिका में यह कहा भी गया है कि यह कानून सुप्रीम कोर्ट के मार्च 2023 के फैसले को पलटने के लिए बनाया गया, जिसने CEC और EC को एकतरफा नियुक्त करने की केंद्र सरकार की शक्तियां छीन ली थीं। यह वो प्रथा है जो देश की आजादी के बाद से चली आ रही है।
चुनाव आयोग में कितने आयुक्त हो सकते हैं?
चुनाव आयुक्त कितने हो सकते हैं, इसे लेकर संविधान में कोई संख्या तय नहीं की गई है। संविधान का अनुच्छेद 324 (2) कहता है कि चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त हो सकते हैं। यह राष्ट्रपति पर निर्भर करता है कि इनकी संख्या कितनी होगी। आजादी के बाद देश में चुनाव आयोग में सिर्फ मुख्य चुनाव आयुक्त होते थे।
16 अक्टूबर 1989 को प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने दो और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की। इससे चुनाव आयोग एक बहु-सदस्यीय निकाय बन गया। ये नियुक्तियां 9वें आम चुनाव से पहली की गईं थीं। उस वक्त कहा गया कि यह मुख्य चुनाव आयुक्त आरवीएस पेरी शास्त्री के पर कतरने के लिए की गईं थीं।
2 जनवरी 1990 को वीपी सिंह सरकार ने नियमों में संशोधन किया और चुनाव आयोग को फिर से एक सदस्यीय निकाय बना दिया। एक अक्टूबर 1993 को पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने फिर अध्यादेश के जरिए दो और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को मंजूरी दी। तब से चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो चुनाव आयुक्त होते हैं।
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