मल्हार मीडिया भोपाल।
इसरो के चेयरमेन एवं अंतरिक्ष विज्ञान विभाग के सचिव डॉ. एस सोमनाथ ने उम्मीद जताई है कि भारत बहुत जल्द अंतरिक्ष पर्यटन में बड़ी छलांग लगाएगा।
उन्होंने कहा कि दुनिया के कुछ बड़े देशों में अंतरिक्ष पर्यटन का दौर आरंभ हो चुका है।
भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अपनी ही धरती से स्वदेशी रॉकेटों के जरिये अन्य देशों के उपग्रहों को अंतरिक्ष में विदा करने के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर ली है और अंतरिक्ष पर्यटन की शुरूआत होने वाली है।
उन्होंने इसी वर्ष गगन यान को अंतरिक्ष में भेजे जाने की जानकारी भी दी।
भारत अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव के फेस-टू-फेस विथ न्यू फ्रंटियर्स इन साइंस कार्यक्रम में डॉ. एस. सोमनाथ ने व्याख्यान के दौरान अनेक उपलब्धियाँ गिनाई।
वे ‘अंतरिक्ष के अग्रवर्ती क्षेत्र में तकनीकी प्रगति के साथ अमृतकाल की ओर अग्रसर' विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष टूरिज्म के लिए टूरिज्म व्हीकल का निर्माण किया जा रहा है।
यह वाहन निजी कंपनियों की सहायता से बनाया जा रहा है। अंतरिक्ष में यात्रा का आनन्द लेने के लिए 6 करोड़ रूपये खर्च करना पड़ेंगे।
डॉ. सोमनाथ ने कहा कि भविष्य में अंतरिक्ष यानों को भेजने के लिए मीथेन गैस का ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जायेगा और इसके लिए नये इंजनों का निर्माण किया जा रहा है।
चन्द्रमा और मंगल पर भेजे जाने वाले यानों में भी मीथेन का उपयोग किया जायेगा। दरअसल यह भविष्य का ईंधन है,जिसका इस्तेमाल कई तरह से लाभकारी रहेगा।
डॉ. सोमनाथ ने भारत के अंतरिक्ष विज्ञान कार्यक्रम की क्रमिक विकास यात्रा की चर्चा करते हुए कहा कि अंतरिक्ष विज्ञान में हुई रिसर्च का उद्देश्य मानव समाज की भलाई रहा है।
जियो स्पेशियल ई-गवर्नेंस के अंतर्गत अनेक महत्वपूर्ण कार्यक्रम शुरू किये गये हैं। उन्होंने बताया कि गगन यान इसी वर्ष अंतरिक्ष में भेजा जायेगा।
अंतरिक्ष विज्ञान के रणनीतिक उपयोगों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भविष्य में युद्ध कम्प्यूटर नियंत्रित होगा। डॉ. सोमनाथ ने कहा कि साइंस मिशन में कई परियोजनाओं को सम्मिलित किया गया है।
डॉ. सोमनाथ ने बताया कि आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को साकार करने और अमृत काल को ध्यान में रखकर आगामी 25 वर्षों का स्पेस साइंस का रोडमैप तैयार कर लिया गया है।
कार्यक्रम का समन्वय आरजीपीवी के कुलपति डॉ. सुनील कुमार गुप्ता ने किया। विशिष्ट अतिथि आईआईटी, इंदौर के निदेशक प्रो. सुहास जोशी थे। व्याख्यान को सुनने के लिए बड़ी संख्या में स्कूली बच्चे उपस्थित थे।
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