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फिल्म समीक्षा :एक्सीडेंटल मीडिया एडवाइजर की कहानी द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर

पेज-थ्री            Jan 11, 2019


डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।
संजय बारू सवा चार साल तक तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया एडवाइजर रहे, लेकिन कहानी उन्होंने 10 साल की बयां कर दी। फिल्म देखते हुए लगता है कि इसका मकसद कांग्रेस और राहुल का मजाक उड़ाना और मीडिया एडवाइजर को प्रधानमंत्री से बड़ा दिखाना है। पूरी फिल्म में प्रधानमंत्री और मीडिया एडवाइजर की बॉडी लैंग्वेज ऐसी है, जिससे लगता है कि प्रधानमंत्री तो संजय बारू थे और मनमोहन सिंह उनके स्टॉफर।

फिल्म ने यह बताने की कोशिश की कि डॉ. मनमोहन सिंह द्रोणाचार्य की तरह हैं और कांग्रेस कौरवों की तरह। एक परिवार के लिए समर्पित। फिल्म में मीडिया से जुड़े लोगों की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण बताई गई है कि लगता है कि पीएमओ तो कुछ है ही नहीं। फिल्म में 4-5 लोगों को पीएमओ की जिम्मेदारी दिखाई गई है, जो सही नहीं लगता।

संजय बारू ने सवा चार साल तक मीडिया एडवाइजर के चश्मे से प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय को देखा। यह कल्पना भी हास्यास्पद है कि प्रधानमंत्री और उनका कार्यालय जो कुछ करता है, उसकी पूरी जानकारी मीडिया एडवाइजर को होती है।

वास्तव में मीडिया एडवाइजर की भूमिका एक सीमित दायरे में ही है। फिल्म में राहुल गांधी और सोनिया से जुड़े जो प्रसंग दिखाए गए है, उससे साफ है कि चुनाव के मद्देनजर यह फिल्म बनाई गई है।

इस फिल्म में भारतीय राजनीति के अनेक चेहरों के कैरीकेचर आप देख सकते हैं। अनुपम खेर ने मनमोहन सिंह के अंदाज को काफी हद तक अपना लिया है, लेकिन यह बात जंचती नहीं कि 30 साल पहले भी मनमोहन सिंह के हावभाव वैसे ही होंगे, जैसे अभी हैं।

फिल्म में बहुत से टीवी फुटेज भी है, जिससे फिल्म में थोड़ी विश्वसनीयता नजर आती है। बहुत से पत्रकार और विपक्ष के नेता भी अपनी भूमिका निभाते नजर आते है। फिल्म में दिखाया गया है कि संजय बारू की इस किताब से मनमोहन सिंह खुश नहीं थे। इसी को भुनाने की कोशिश फिल्म में लगती है।

दिव्या सेठ शाह ने मनमोहन सिंह की पत्नी गुरशरण कौर का किरदार निभाया है और जर्मनी की सुजैन बर्नल्ट ने सोनिया की भूमिका। राहुल और प्रियंका के किरदारों के पास करने के लिए कुछ था ही नहीं, क्योंकि उनके रोल बामुश्किल 3-4 मिनिट ही दिखाए है। जिन टीवी फुटेज का उपयोग फिल्म में किया गया है, वे सद्भावनापूर्वक नहीं लगते, क्योंकि उनमें कांग्रेस के नेताओं का उपहास दिखाया गया है।

अहमद पटेल की भूमिका खलनायक की तरह दिखाई गई है। नीरा राडिया से लेकर एन. राम और अन्ना हजारे से लेकर अटल बिहारी बाजपेयी की छवि भी फिल्म में नजर आती है। ब्रिटेन में इस फिल्म का अधिकांश भाग फिल्माया गया है। बाकी फुटेज अलग से जोड़े गए है। फिल्म में गहराई की कमी लगती है, लेकिन राजनीति में सतही दिलचस्पी रखने वालों को फिल्म लुभाती है।

 


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