मल्हार मीडिया भोपाल।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी चयन के मामले में भाजपा हर कदम फूंक-फूंककर रख रही है।
पिछले चुनावों में हारी हुई सीटों की सूची आने के बाद अब ऐसी सीटों पर प्रत्याशियों के नामों का इंतजार है, जहां पार्टी के विधायक हैं। इस बार पार्टी 40% से अधिक विधायकों के टिकट काटकर नए चेहरों को मौका दे सकती है।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत सात सांसदों और राष्ट्रीय महासचिव को उम्मीदवार बनाकर सबको चौंका दिया है। अब तक पार्टी ने 79 उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं। इनमें से सिर्फ तीन सीटों पर ही भाजपा जीती थी। शेष पर उसे हार ही मिली थी। अब भाजपा की चौथी सूची का इंतजार है, जिसमें मौजूदा विधायकों के नामों पर फैसला होगा। भाजपा 40 प्रतिशत से अधिक मौजूदा विधायकों के टिकट काट सकती है।
भाजपा ने टिकट चयन के लिए जो प्रक्रिया तय की है, उसमें छवि, जातिगत समीकरण और संगठन के फीडबैक को सबसे अधिक महत्व दिया जा रहा है।
सर्वे के आधार पर ऐसे उम्मीदवारों की तलाश की गई है, जो जीतने की ताकत रखते हैं। जो विधायक किसी भी पहलू पर कमजोर साबित होंगे, उन्हें पार्टी टिकट नहीं देगी। पैनल में जगह भी नहीं मिलेगी। प्रदेश स्तर पर दावेदारों के नाम जुटाए गए हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दो एजेंसियों से सर्वे कराया है।
इसमें एक पैनल में कम से कम तीन और अधिकतम पांच नामों को शमिल किया गया है। सर्वे में एक विधानसभा क्षेत्र में वोटरों की संख्या के आधार पर दो से पांच हजार लोगों के बीच सर्वे कराया गया है। सर्वे रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली से केंद्रीय नेतृत्व प्रत्याशियों के नाम पर मुहर लगा रहा है।
प्रदेश में भाजपा पिछले 20 में से 18 साल सत्ता में रही है। कई स्तरों पर सत्ता विरोधी लहर भी दिख रही है। सरकार के कुछ मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ स्थानीय स्तर पर विरोध है। इसे दूर करने के लिए मध्य प्रदेश में पार्टी 40% से अधिक विधायकों के टिकट काटने का मन बना चुकी है। पार्टी की रणनीति ऐसी सीटों पर नए और युवा चेहरों को टिकट देने की तैयारी में है।
जनप्रतिनिधि की इमेजः भाजपा विधायक की क्षेत्र में छवि कैसी है। उस पर कोई गंभीर आरोप तो नहीं है। विधायक के संरक्षण में कहीं उसके लोग आम जनता पर मनमानी या दंबगई तो नहीं कर रहे।
जातिगत समीकरणः प्रत्याशी चयन में विधानसभा क्षेत्र के जातिगत समीकरणों को खास महत्व दिया जा रहा है। लोधी समुदाय की अधिकता वाले क्षेत्रों में लोधी उम्मीदवार को तलाशा जा रहा है। इसी तरह ज्यादातर उम्मीदवार ओबीसी वर्ग से होंगे।
संगठन का फीडबैकः विधायकों समेत सभी दावेदारों को लेकर संगठन से फीडबैक लिया जा रहा है। जिला स्तर पर संगठन के पदाधिकारियों की राय के आधार पर ही किसी नाम पर विचार किया जाएगा।
क्षेत्र में किए विकास कार्यः मौजूदा विधायक का परफॉर्मेंस एक अहम फेक्टर है। उसने क्षेत्र में किस तरह के विकास कार्य करवाए हैं, इसका लेखा-जोखा मांगा जा रहा है। पार्टी के तय मानकों के आधार पर उन्हें परखा जा रहा है।
जनता के बीच उपलब्धताः विधायकों की क्षेत्र में सक्रियता कैसी है, यह भी टिकट का निर्णायक पहलू है। जनता की विधायक तक पहुंच और उसकी उपलब्धता का सवाल भी सर्वे में शामिल रहा है।
पार्टी ने टिकट के लिए जो फेक्टर तय किए हैं, उन पर खरा उतरना जरूरी है। ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस से आए नेताओं पर भी परखा जा रहा है। ऐसे विधायकों के टिकट कट सकते हैं, जो सिंधिया के साथ भाजपा में आए जरूर, लेकिन अपने आप को भाजपा के अनुरूप ढाल नहीं सके।
संगठन से उनका सामंजस्य है या नहीं, यह भी एक अहम पहलू है। सिंधिया के साथ भाजपा में आए कुछ विधायक अब भी भाजपा की रीति-नीति में रच-बस नहीं सके हैं। इस आधार पर उनके टिकटों पर तलवार लटक रही है। संगठन से टकराहट होने पर नेताओं को टिकट से इनकार किया जाएगा।
भारतीय जनता पार्टी 2018 की गलती नहीं दोहराना चाहती है। चुनाव प्रचार से लेकर प्रत्याशी के चयन में भी चौंका रही है। पार्टी ने अब तक 79 प्रत्याशियों की सूची जारी की है। तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत सात सांसद और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को टिकट दिया है। इनमें 76 सीटों पर भाजपा को हार मिली थी। इस वजह से केंद्रीय नेताओं के जरिये न केवल उन सीटों को कांग्रेस से छीनने की तैयारी है बल्कि आसपास के जिलों में भी उनका प्रभाव हो सकता है।
2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 109 और कांग्रेस ने 114 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा की सीट बढ़कर 127 पहुंच गई थी।
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