कीर्ति राणा।
मध्यप्रदेश में इंदौर से चुनावी शंखनाद कर के गृहमंत्री अमित शाह फिर से आने के लिए वापस चले गए हैं। लेकिन इंदौर यात्रा में मैसेज तो दे ही गए हैं कि न तो मालवा-निमाड़ में विधानसभा चुनाव को और न ही विजयवर्गीय को इतने हल्के में मत लेना।
सही भी है 2018 के विधानसभा चुनाव में मालवा-निमाड़ की सीटों को हल्के में नहीं लिया होता तो सिंधिया को भाजपा में इतनी तवज्जो भी नहीं मिल पाती।
कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला की मंडली ने 72 घंटे से भी कम समय में बूथ कार्यकर्ता सम्मेलन की तैयारियों को अंजाम देकर पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं को यह विश्वास दिला दिया है कि इस तरह की चुनौतियों से निपटना सहज बात है।
जन-धन-बल में हर तरह से सम्पन्न यह मंडली एक तो क्या हर संभाग में ऐसे सम्मेलन कराने के साथ ही पांच-पच्चीस प्रत्याशियों को अपने खर्चे पर चुनाव लड़वाने की ताकत भी रखती है।
कथा-भजन-भंडारे में माहिर मंडली की इस प्रतिभा को अमित शाह ने तो पहली बार ही परखा है।
मुख्यमंत्री और उनके सलाहकारों को जिन नेताओं के कारण अपनी कुर्सी खींच लिए जाने का अज्ञात भय सताता रहा है तो उस लिस्ट में कैलाश विजयवर्गीय का नाम अमिट रहा है और अमित शाह की इस इंदौर यात्रा ने तो विजयवर्गीय के उज्जवल भविष्य की कल्याण कथा लिख डाली है-बशर्ते मालवा और निमाड़ में भाजपा 2013 जैसा इतिहास रच डाले, तब इन दोनों क्षेत्रों की 66 सीटों में से भाजपा ने 57 सीटें हांसिल की थी और कांग्रेस मात्र 7 सीटों पर सिमट गई थी।
शाह के दौरे से तो मालवा-निमाड़ क्षेत्र में भाजपा के आक्रामक अभियान की शुरुआत हुई है, चुनाव तक तो यह तूफानी हो जाएगा।
यदि भाजपा मालवा-निमाड़ में 2013 वाला चुनाव परिणाम दोहरा देती है तो पूर्व विधायक भंवर सिंह शेखावत द्वारा 2018 में इस क्षेत्र में मिली कम सीटों को लेकर विजयवर्गीय पर निरंतर लगाए जाते रहे आरोप भी स्वत: धुल जाएंगे।
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