संजय गांधी ताप बिजली घर मे मात्र 3 दिनों के उत्पादन योग्य कोयले के शेष बचे स्टाक में कितना जलने लायक है या कितना पत्थर है यह कई सवालों को जन्म देता है जैसे जब कोयले का ग्राउंड निम्न ग्रेड के कोयले का स्टाक कम तब बिजली उत्पादन में प्रति यूनिट खपत होने वाली मात्रा क्यों कम हो जाती है ? या जब बेहतर उत्कृष्ट ग्रेड का तब खपत ज्यादा क्यों ?
संजय गांधी ताप बिजली घर बीरसिंहपुर म प्र को एस ई सी एल कोयला खदानों से रेल मार्ग से आता है की कोरबा (छत्तीसगढ़) की गेवरा ,कुसमुंडा रॉबर्टसन आदि से 11 से 12 पावर ग्रेड का कम कीमत वाला कोयला 70 से 80 % अब आ रहा है, पूर्व में "सी आई सी एरिया " का महंगा उत्कृष्ट कोयला विभिन्न खदानों से 70% लाया जाता रहा और तब 770 ग्राम से 810 ग्राम प्रति यूनिट कोयले की खपत आती रही, और पावर हाउस में लाखों टन कोयले का भरपूर स्टाक रहता था, परंतु अब आजकल कोरबा की खदानों का सस्ता लोअर पावर ग्रेड 11 - 12 का कोयला कुल सप्लाई का 70% से75% तक आने लगा और आज स्टाक में मात्र 50- 55 हजार मेट्रिक टन शेष बचा, जिससे बड़ी मुश्किल से तीन दिन पावर हाउस चल सकता है , यूनिटें अंडर लोड चलने के बाद 20% कम कोयला खा कर मात्र 660 ग्राम कोयले से एक यूनिट बिजली पैदा करने लगी ?
बड़े बड़े बिजली घरों की बायलर और टरबाइन बनाने वाले कम्पनियों इंजीनियरों और वैज्ञानिकों को यहां के इंजीनियरों से सीखना और खोज करना चाहिए कि कैसे बढ़िया कोयले ज्यादा खपत कर से कम बिजली एवम घटिया निम्न ग्रेड के सस्ते कोयले से ज्यादा बिजली उत्पादित की जा सकती है , इस पावर प्लांट के ऐसे विद्वान अधिकारियों से एन टी पी सी , भेल , टाटा,अडानी, अम्बानी जैसे बिजली बनाने वाली कम्पनियों सीखना चाहिए जिससे ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में नई क्रांति आ सके... जबकि म प्र जेनको की खण्डवा में स्थापित " सिंगाजी सुपर ताप ग्रह " जिसमे 2x600 मेगावाट की सुपर क्रिटिकल इकाइयां लगी हैं , उन इकाइयों को कोरबा क्षेत्र की खदानों से निम्न ग्रेड का जो कोयला बीरसिंहपुर के संजय ताप बिजली घर आता है उन्ही खदानों से वासरी में धुलाई करा कर जिसमे लगभग 20 % कचरा और धूल डस्ट आदि निकल जाने के बाद कोयले की क्वालिटी अच्छीहो जाती है, रेलवे रेक से 75 लाख ₹ प्रति रेक 4हजार मेट्रिक टन कोयले का भाड़ा लगभग 72 लाख रुपये रेलवे को देकर 960 किलोमीटर दूर ले जाया जाता है , सिंगाजी ताप बिजली घर मे जो धुला कोयला पहुंचता है उसकी "जी सी व्ही" प्लांट में कोयले के पहुंचने के बाद लगभग 4000से 4200 से ऊपर है इस मान के अनुसार इस उन्नत सुपर क्रिटिकल इकाई के डिजाइन हीट रेट के अनुसार अधिकतम 500 ग्राम कोयले की प्रति यूनिट खपत होनी चाहिए परंतु यहां भी लगभग 650 ग्राम कोयला प्रति यूनिट खपत हो रहा है . जो निर्धारित डिजाइन हीट रेट से 20 से 25% ज्यादा है जबकि यह नवीन इकाई है और साल भर में 25 प्रतिशत से कम बिजली उत्पादन इस पावर हाउस से लिया गया , अधिकतर यह इकाई मेरिट आर्डर डिस्पैच( MOD) में महंगे उत्पादन प्रतिस्पर्धा में रिज़र्व शट डाउन के नाम पर ठप्प ही रही , 2017- 18 के वित्तीय वर्ष के 01अप्रैल से 12 मई तक सिर्फ कुछ घंटे ही यह इकाई ही चलायी गयी जो मात्र 7% से भी कम पी एल एफ है , एक नम्बर 600 मेगावाट की यूनिट 30 मार्च 2017 से ठप्प रही जिसे 13 मई को आरम्भ किया गया है , दो नम्बर यूनिट भी नर्मदा सेवा यात्रा के एक हफ्ते पहले ही महीनों बाद चालू हुई है, थर्मल क्षेत्र के अनुभवी जानकर लोगों का कोयला खदानों से एक हजार किलोमीटर दूर संयंत्र की स्थापना पर सवालिया निशान लगा रहें हैं कि पिट हेड और कोयला खदान के पास के संयंत्रों की स्थापना को ताक में रख बनाये गए इस पावर हाउस का भविष्य क्या होगा , जबकि 3और 4 नम्बर की 660 मेगावट की इकाइयों का निर्माण 6हजार करोड़ के करीब लागत से चल रहा है , क्या इस यूनिट का भी हाल एक और दो नम्बर जैसा तो नहीं होगा ?
बड़ी विषमय की स्थित नजर आ रही है कि एक ही सरकारी संस्थान "मध्यप्रदेश जेनको "के दोनों संयंत्रों में यह कैसा खेल कि जब स्टाक में कम निम्न ग्रेड का कोयला तब खपत कम , औऱ जब उत्तम बढ़िया कोयला तो कोयले की खपत आखिर ज्यादा क्यों?
कहीं ऐसा तो नहीं अरबों रुपयों के बिजली घरों के कोयले के खेल में कोई बड़ा रहस्य तो नही छिपा , जिसमे कितने चमकते चेहरों पर दाग लगा दे?
सुरेन्द्र त्रिपाठी उमरिया
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