मल्हार मीडिया।
मध्यप्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के.के. मिश्रा ने व्यापमं घोटाले में भ्रष्टाचार व अनैतिक तरीकों से चयनित एमबीबीएस में प्रवेश पा चुके 634 छात्रों के दाखिले देश की शीर्ष अदालत द्वारा रद्द किये जाने के ऐतिहासिक फैसले के बाद तत्कालीन जांच एजेंसी एसटीएफ को एक बार फिर घेरते हुए कहा है कि आखिरकार इन छात्रों के अलावा निजी चिकित्सा महाविद्यालयों के संचालकों द्वारा 721 छात्रों को नियम विरूद्व दिये गये दाखिल को लेकर उसने किसके दबाव में एफआईआर दर्ज नहीं की थी?
अपने बयान में श्री मिश्रा ने कहा कि यही नहीं पीएमटी घोटाले से संबद्ध प्रदेश के 6 निजी मेडिकल कॉलेजों द्वारा सरकारी कोटे की सीटें मेनेजमेंट कोटे से भर दिये जाने, उसमें हुए करोड़ों रूपयों के भ्रष्टाचार के खुलासे, जिसे मध्यप्रदेश शासन चिकित्सा शिक्षा विभाग, मंत्रालय की जांच रिपोर्ट क्र. एफ-9/127/2014/1-55 (पार्ट), भोपाल, दिनांक 7 अक्टूबर, 2014 में भी अनियमितता/ भ्रष्टाचार को स्वीकारे जाने की बात प्रामाणिक तौर पर मौजूद है। इन मेडिकल कॉलेजों द्वारा सरकारी कोटे की सीटें मैनेजमेंट कोटे से भर दिये जाने की गड़बड़ी उजागर हो जाने के बाद प्रमुख सचिव चिकित्सा-शिक्षा ने इन निजी मेडिकल कॉलेजों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश जारी किये थे, जिसे तत्कालीन चिकित्सा-शिक्षा मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने 6 सितम्बर, 2014 को जारी अपनी नोटशीट पर एफआईआर दर्ज करने के बजाय इनके खिलाफ कठोर कार्यवाही करने के निर्देश जारी कर सरकार की नीयत पर सवालिया निशान लगा दिया।
ऐसा क्यों, किसलिए और किसके दबाव में किया गया अथवा इन सबके नेपैथ्य में कौन सी ईमानदारी छुपी हुई है। बावजूद इसके तत्कालीन जांच एजेंसी एसटीएफ और वर्तमान जांच एजेंसी सीबीआई ने इस मसले पर किसी भी प्रकार की कार्यवाही क्यों नहीं की? उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी अनियमितता और भ्रष्टाचार को लेकर चिकित्सा-शिक्षा विभाग के डीएमई की भूमिकाओं को लेकर भी बार-बार सवाल उठे, किन्तु राजनैतिक रसूखों की वजह से वे आज तक क्यों, किसके दबाव में और किसलिए बचे हुए हैं?
श्री मिश्रा ने आज राज्य सरकार पर एक और गंभीर आरोप मढ़ दिया है कि एशिया के सबसे बड़े व्यापमं महाघोटाले को लेकर मुख्यमंत्री और पूरी राज्य सरकार की हुई किरकिरी व पाप से बचने के लिए सरकार ने ताबड़तोड़ व्यापमं का नाम ही बदल डाला। सीबीआई जांच के चलते सरकार की मंशा क्या थी, स्पष्ट होना चाहिए। क्योंकि विडम्बना है कि इस महाघोटाले में भारी भरकम धनराशि देकर चयनित हुए अयोग्य प्रतिभागी कोर्ट और जेलों के चक्कर काट रहे हैं, योग्य पीढ़ी बर्बाद हो चुकी है और पैसा खाने वाले भ्रष्ट लालबत्तियों में घूम रहे हैं?
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