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सत्ता के नाम पर चल रहे सट्टे से नाखुश जनता

राज्य            Jul 09, 2019


प्रकाश भटनागर।
विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने के साथ एक बात यह खुलकर सामने आई है कि केन्द्र सरकार में किसी एक विभाग का मंत्री होना और मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री होने में जमीन आसमान का अंतर है। जाहिर है यह मुख्यमंत्री कमलनाथ की बहुत बड़ी अग्नि परीक्षा का समय है।

मुख्यमंत्री कभी आशंकित तो कभी आतंकित वाले भाव से ग्रस्त दिखते हैं। आशंका, लंगड़ी सरकार के लडखड़ाकर गिर जाने की हावी है। आतंक बाहरी और भीतरी दोनो तरह के हैं और खुले तथा छिपे विरोधियों की गतिविधियों से नुकसान होने के भी।

ऐसे हालात के शिकार मुख्यमंत्री का विधानसभा में मत विभाजन की बात कहना कोई आश्चर्य वाली बात नहीं है।
इस आश्चर्य की आवश्यकता उस समय और कम हो जाती है, जब कर्नाटक में कांग्रेस-जद (एस) की सरकार पर संकट के बादल और गहरा गये हैं। लेकिन आखिर ऐसा कब तक चल पाएगा? छह महीने से ज्यादा हो गये, सरकार के गठन को।

अधिकांश मौकों पर यही लग कि यह नाथ नहीं बल्कि अनाथ सरकार है। विधानसभा के पहले ही दिन इसके संकेत मिल गए। कांग्रेस के ही एक विधायक हरदीप सिंह डंग के सवाल के जवाब में गृहमंत्री बाला बच्चन का लिखित जवाब वही था कि मंदसौर गोलीकांड में किसानों के खिलाफ जो कार्रवाई की गई थी वो विधि सम्मत है।

विधानसभा के पिछले सत्र में इसी मंदसौर गोलीकांड को लेकर कांग्रेस के भीतर बवाल मचा था। जाहिर है, इसके बाद भी नौकरशाही अपने ही तरीके से चल रही है। इस हिसाब से कांग्रेस विधायक पिछले पन्द्रह साल में भाजपा सरकार के कथित घपलों-घोटालों पर जो सवाल पूछेंगे, नौकरशाही से उनका जवाब भाजपा के लिए सकारात्मक ही आएगा।

प्रदेश की जनता ने ऐसी त्वरित प्रतिक्रियावादी कभी भी नहीं की थी। लेकिन इस कमलनाथ सरकार में आरम्भ से ही जिस तरह के गति अवरोधक पैदा किये गये, उसके चलते पांच महीने से भी कम के अंतराल में मतदाता ने कांग्रेस की बजाय लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा को राज्य की 29 में से 28 सीट दे डालीं।

कांग्रेस की यह हार मोदी फैक्टर की वजह से हुई, किंतु इस बात से भी कोई इनकार नहीं किया जा सकता कि सत्ता के नाम पर चल रहे सट्टे से जनता बेहद नाखुश है।

इस शब्द के लिए क्षमा करें, किंतु क्या सचमुच यहां सट्टा बाजार जैसा माहौल नहीं है! किस विधायक का किस समय विरोधी पक्ष में नंबर खुल जाए, कोई नहीं जानता। किस मंत्री के साथ कब क्या हो जाए, सब कुछ संशय से भरा हुआ है।

अब प्रदेश की जनता तो इसकी दोषी है नहीं। तो फिर क्यों कर वह इसका खामियाजा भुगते? जिस तरह का आपको जनादेश मिला है उसमें बहुत संंभल कर सरकार चलाने की जरूरत होती है। लेकिन ऐसा कभी नहीं लगा। तबादलों का तो इस सरकार में ऐसा जंजाल चल रहा है कि अब प्रदेश का प्रशासन भी बहरा रहा है।

विधायक दल की बैठक में लक्ष्मण सिंह को प्रदेश पर बढ़ते कर्ज की चिंता हो गयी। इस संबंध में उनके द्वारा पूछा गया सवाल जिस तरह मीडिया तक पहुंचाया गया, उससे यही प्रतिध्वनित होता है कि मामला चिंता का नहीं, बल्कि इस तथ्य को सत्तारूढ़ दल की ओर से ही तथ्य के तौर पर पेश करने का था कि सरकार बुरी तरह आर्थिक बदहाली की शिकार है।

और लक्ष्मणसिंह का आग्रह भी दिग्विजय सिंह से ही था कि वे प्रदेश को आर्थिक बदहाली से बचाने का रास्ता दिखाएं। है ना कांग्रेस की यह हास्यास्पद हालत। प्रदेश के कई मंत्री तक बीते दिनों में सरकार के लिए असुविधाजनक स्थिति वाली बात कह भी चुके हैं और बना भी चुके हैं।

तो क्या यह मान लें कि नाथ को इस बजट सत्र में भाजपा सहित कांग्रेस के भी अघोषित विरोध का सामना करना पड़ सकता है! यह किसी भी लिहाज से आदर्श स्थिति नहीं कही जा सकती।

होना तो यह चाहिए था कि इस सरकार में एक-एक विधायक पूरी मजबूती से एकजुट रहते। जब पता है कि सरकार बाहरी समर्थन पर चल रही है, तब कमलनाथ ने यह क्यों नहीं किया कि सपा-बसपा सहित समर्थन देने वाले निर्दलीय विधायकों को मंत्री बना देते।

मंत्रिमंडल में जगह अब भी बाकी है। फिर ऐसा विलंब क्यों? क्यों नाथ पतंग को इतनी ढील दे रहे हैं कि हालात खिंचती रबर जैसे तनावपूर्ण होते जा रहे हैं? ऐसे तो पतंग कटने और रबर टूटने वाले हालात किसी भी समय आकार ले सकते हैं।

समय आ गया है कि नाथ अपने दीर्घ राजनीतिक अनुभव का व्यावहारिक रूप में इस्तेमाल करें। कोई दायां-बांया इस सरकार के काम में हस्तक्षेप नहीं करे। फिर चाहे वह राजनीतिक भाई ही क्यों न हो। जाहिर बात है कि प्रदेश की जनता ने कम से कम दिग्विजय सिंह के नाम पर तो कांग्रेस को बहुमत के मुहाने पर नहीं ही खड़ा किया था।

खुद कांग्रेस ने यह हालात भांपकर दिग्विजय को विधानसभा चुनाव में बहुत तवज्जो नहीं दी थी। हां, नाथ ने उन्हें महत्व दिया और अब हो यह रहा है कि दिग्विजय उन पर हावी होने की लगातार कोशिश में हैं। वरना वे ऐसा तो हरगिज नहीं करते कि विधायकों को मंत्रियों और मुख्यमंत्री की शिकायत लेकर अपने पास आने के लिए कहे।

नाथ भले आदमी हैं, किंतु भोले बनकर यूं असहाय होना किसी मुख्यमंत्री को शोभा नहीं देता। प्रदेश की जनता को शासन चाहिए, दु:शासन जैसा माहौल नहीं। इसके लिए सिर्फ और सिर्फ नाथ को आगे आना होगा।

तभी हालात उनके पक्ष में बनते नजर आ सकते हैं। राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव में फ्रंट फुट पर खेलने की बात कही थी। वह इसमें असफल रहे। किंतु नाथ को खुलकर फ्रंट फुट पर खेलना होगा।

और अगर वाकई उनका कोई सियासी तजुर्बा है तो उसे साबित करें। वे विधायक दल की बैठक में कह भी चुके हैं कि वे तो संजय गांधी के आग्रह पर एक चुनाव लड़ने के लिए छिंदवाडा आए थे।

जाहिर है अब तक वे पार्ट टाइम पालिटिक्स ही करते रहे हैं। जब जरूरत फुल टाइम की है क्योंकि इसमें किसी को भी शक नहीं है कि कर्नाटक के बाद नम्बर तो मध्यप्रदेश का ही आना है।

 



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