डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।
इस हफ्ते एक फिल्म लग रही है जिसके दो-दो क्लाइमैक्स हैं। 'A' सिनेमा में फिल्म का अंत कुछ और होगा और 'B' सिनेमा में कुछ और। एक ऑडिटोरियम में हत्यारा 'क' निकलेगा, दूसरे ऑडिटोरियम में हत्या करनेवाला 'ख' या कोई और हो सकता है। किसी भी हिन्दी फिल्म में ऐसा पहली बार हो रहा है। इसके लिए सेंसर से बाकायदा दो अलग-अलग सर्टिफिकेट लिए गए हैं। अंदाज़ है कि दर्शक दोनों फ़िल्में देखेंगे। आशंका यह भी है कि बहुत ज्यादा दर्शक कोई भी फिल्म नहीं देखें ! शिगूफा काम ही न आये! लेकिन हिन्दी सिनेमा में पहली बार ऐसी फिल्म आने वाली है जिसका अंत अलग-अलग होने वाला है। दुनियाभर के सिनेमाघरों में एक ही फिल्म दो क्लाइमैक्स के साथ रिलीज होगी।
दिल्ली के आरुषि हत्याकांड पर 2015 में मेघना गुलज़ार निर्देशित फिल्म तलवार लगी थी। उस फिल्म में एक के बाद एक क्रमश: दो क्लाइमैक्स थे। एक में युवती की हत्या नौकर कर देता है और दूसरे में हत्यारे युवती के माँ-बाप को दिखाया गया था और ऑनर किलिंग का मामला बताया गया था।
1985 में हॉलीवुड की एक फिल्म Clue आई थी, जो मर्डर मिस्ट्री थी। Clue इतिहास की पहली ऐसी फिल्म है जो एक या दो नहीं बल्कि तीन अलग-अलग अंत के साथ सिनेमाघरों में रिलीज हुई है। यह फिल्म एक घर में छह संदिग्धों और एक रहस्यमय हत्या के इर्द-गिर्द घूमती है। इसके तीन अंत में तीन अलग-अलग हत्यारे हैं।
1988 में आई मलयालम फिल्म हरिकृष्णन में ममूटी, मोहनलाल और जूही चावला थे। इस फिल्म में अलग-अलग सिनेमाघरों में दो अलग-अलग अंत दिखाए गए। एक अंत में जूही चावला ममूटी के साथ जाती है, जबकि दूसरे अंत में अभिनेत्री मोहनलाल को चुनती है। ऐसा दो मलयालम सुपरस्टार के फैंस को नाराज न करने के लिए किया गया होगा। एक तीसरे अंत की भी योजना बनाई गई थी जिसमें शाह रुख खान को कैमियो में शामिल होना था और जूही को उनके साथ जाना था।
हो सकता है कि फिल्म हिट हो जाये और इस प्रयोग से हिन्दी फिल्म उद्योग को राहत मिले! हो सकता है भविष्य में ऐसे उपन्यास आएं, जिनके पेपरबैक एडिशन में कहानी कुछ और हो तथा हार्ड बाउंड एडिशन में कुछ और !
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