मधुशाला, गुनाहों के देवता का शहर, जहां से निकलते हैं निर्माणकर्ता और प्रशासक

वीथिका            Dec 29, 2021


अवनीश यादव।

दुनिया के नक्शे पर एक अलहदा शहर जहां सब कुछ आज भी मानो रुका हुआ सा है। सब चल रहे हैं लेकिन कहीं पहुंचने कि जल्दी किसी को नहीं! खुद में ही खोए बस मानो बहे जा रहे हों। हनुमान जैसा कर्मठी व्यक्ति भी इस शहर में आकर लेटे हनुमान हो गया।
 
कभी-कभी मैं सोचता हूं कि क्या हनुमान जी ने किसी विद्यार्थी के कमरे पर दाल भात चोखा तो नहीं न खा लिया था जो अलसिया के सो गए?

माया है भईया इस शहर की। यहां सीनियर "चीन" बनके रहता है और जूनियर "ताइवान".. हॉस्टल में रहने वाला "अमेरिका" तो डेलिगेसी में रहने वाला उस की सरपरस्ती में पलने वाला "दक्षिण_कोरिया"। यहां रह कर आप कुछ सीख पाएं या न सीख पाएं "डीलिंगबाजी" और शानदार "खाना बनाना" जरूर सीख जाएंगे और "फेमिनिज्म" के लिहाज से यह एक प्रगतिशील कदम है।

दुनिया के किसी भी शहर में रहने वाला व्यक्ति अपने शहर को और अपने विश्वविद्यालय को इतना याद नहीं करता होगा जितना कि इस शहर के लोग।

और हॉं अगर जान का डर न रहे तो वह अपनी छाती फाड़ के दिखा दें कि यह शहर उन के दिल में बसा हुआ है और आखिर हो भी क्यों ना..!

यह शहर उनके लिए केवल शहर नहीं है वरन् उनके जीवन का वह बेहतरीन वक़्त है जिसमें उन्होंने खुद को निर्मित किया है परिमार्जित किया हैं।

यहां उन्हें वह लोग मिले हैं जिनके साथ उसने " जिंदगी न मिलेगी दोबारा" देख कर स्पेन जाने और वहां हवाईजहाज से कूदने का वादा किया है..।

"बुद्ध"और "महावीर स्वामी" के स्तर तक जाकर जीवन को समझा है इसी शहर में
अपनों से दूर गैरों को अपना बनाकर जीने की कला पाई है इसी शहर से।

यह शहर अपने आप में एक साथ इतनी समृद्ध धार्मिक-सांस्कृतिक, राजनीतिक ऐतिहासिक विरासत को समेटता है जिसे शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है।

पूरी दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक जमावड़े को समेटते हुए यह शहर एक अलग ही रंग दिखाता है एक तरफ जहां पूरे भारत में "गंगा मेरी जमुना तेरी" का दावा चल रहा हो वहां इस शहर में गंगा और जमुना के "संगम" से निकलकर एक साझी संस्कृति मुस्कुराती है।

इसी शहर में बैठकर अंग्रेजों ने भारत के सिरमौर बनने की शुरुआत की तो इसी शहर में " "आजाद था आजाद हूं आजाद ही रहूंगा" का उद्घोष हुआ।

इसी शहर में निराला ने "राम की शक्ति पूजा" की और "होगी जय होगी जय हे पुरुषोत्तम नवीन!" कह राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा दिखाई ।

इसी शहर ने भारत का पहला "वैश्विक नेता" दिया तो भारत की पहली "महिला प्रधानमंत्री" भी। इस शहर में "फिराक" के "शेर" गूंजे तो इसी शहर की छांव में "छायावाद" पला-बढ़ा ।

इसी शहर की "मधुशाला" में मंदिर मस्जिद से परे "हिंदू-मुसलमान" का मेल हुआ तो इसी शहर में विश्वविद्यालय के किनारे-किनारे "चंदर सुधा" टहले थे ।

इसी शहर ने देश को "छात्र राजनीति" का पाठ पढ़ाया

मुझे ऐसा लगता है की "सर", "सेटिंग", "भौकाल" जैसे शब्दों का आविष्कार भी इसी शहर में हुआ होगा..!

इसी शहर ने भारतीय क्रिकेट टीम को "शानदार_फील्डिंग" का पाठ पढ़ाया तो इसी शहर ने "हॉकी_का_जादूगर" दिया।

यहां की सुबह बिलकुल ताजगी भरी है जिसमे "दही_जलेबी" का स्वाद घुला हुआ है तो दोपहर बिलकुल "फ्राई_दाल_भात_चोखा" लपटे अलसायी सी है शाम रंगीनियत लिए हाथों में "समसमायिकी" थामे उत्साह से भरी हुई चाय में उबल रही पत्ति की तरह है।

"कर्जन पुल" हो या "नैनी ब्रिज" अथवा "अल्फ्रेड पार्क" हवा में वह रवानी है जो पूरी रात न सोने के थकान को भी चुटकी में खत्म कर देती है।

यहां की हवा में बौद्धिकता का आलम यह है की यूनिवर्सिटी रोड पर किताब बेचने वाला भी 2 साल से मेडिकल की तैयारी करने वाले से ज्यादा किताबों के लेखकों का नाम जानता है..।

"यूनियन_हाल" से "कल्लू कचौड़ी" होते हुए "नेतराम" की दूकान तक और वहां से
"लक्ष्मी चौराहे" तक जो भीड़ में केवल "कपार_ही_कपार" दिख रहा है न जनाब उसे बस कपार समझने की गलती कभी मत करिएगा क्योंकि इन्हीं साधारण से दिखने वाले बचेखुचे बालों को लिए कपार वालों में से देश की प्रगति के लिए आर्थिक-सामाजिक नीतियों के निर्माणकर्ता, प्रशासक निकलेंगे।

मम्फोर्डगंज,तेलियरगंज, गोविंदपुर, सलोरी, बघाड़ा, अल्लापुर, सोबतियाबाग.. की भीड़ को कभी भी केवल जनसंख्या में वृद्धि करने वाली भीड़ समझने की गलती मत करिएगा। ये पकौड़ा तलने के लिए नहीं पैदा हुए हैं वरन् ये वो लोग हैं जिनके कंधे पर भारत अपनी स्वर्णिम यात्रा तय करेगा।

यह मेरा शहर है "गुनाहों के देवता" का शहर है"वह, वह तोड़ती_पत्थर" वाली का शहर है  
"मधुशाला" का शहर है "नीरजा_और_दीपशिखा" का शहर है।

गंगा-जमुना के संगम का शहर है यह मेरा "इलाहाबाद" है।

 



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