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फिल्म समीक्षा:साफ-सुथरे तरीके से जुटाया गया भानुमति का कुनबा फन्ने खां

           Aug 03, 2018


डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।
फन्ने खां में एक गाना है – मेरे अच्छे दिन कब आएंगे। आश्चर्य हुआ कि ऐसा गाना सेंसरबोर्ड ने पास कैसे कर दिया? सवा दौ घंटे की फिल्म खत्म होते-होते गाना बन जाता है – मेरे अच्छे दिन आ गए। तब समझ में आता है कि सेंसर वालों ने इसे क्यों रिलीज हो जाने दिया। अब राजकुमार राव जैसे कलाकार को ऐश्वर्या राय जैसी हीरोइन मिलेगी, तो उसके अच्छे दिन तो आ ही गए।


कोई डच फिल्म आई थी – एवरीबडी'स फेमस से मिलती-जुलती कहानी बताई जाती है। बाप अपने अधूरे सपने बेटी के जरिये पूरे करने चाहता है और उसके लिए गलत कदम उठाने से भी नहीं चूकता। दृश्यम में अजय देवगन एक पिता के रूप में अपनी बेटी को बचाने के लिए तमाम गैरकानूनी काम करता है और यहां एक पिता अपनी बेटी को मशहूर बनाने के लिए अपराध करने पर उतर आता है। इसी के बीच कहानी बूनी गई है।


फैक्ट्री बंद करके मालिक का लंदन भाग जाना (संदर्भ विजय माल्या)। रोजगार के नाम पर टैक्सी चलाना। बड़े सपने देखने के नाम पर टीवी पर सुपरस्टार बनना और बीच-बीच में गाने, इमोशन का ओवरडोस, पुराने गाने की पैरोडी, संगीत के नाम पर केवल एक मधुर गाना यही सबकुछ है।

फिल्मकार ने इसे इमोशनल म्युजिकल कॉमेडी फिल्म बताया है, जिसमें ये सभी थोड़े-थोड़े है। कई बार लगता है कि फिल्म के कई पात्र बेहद असंतुलित है। कभी इस फिल्म में सीक्रेट सुपरस्टार की झलक मिलती है, तो कभी किसी कॉमेडी फिल्म का दृश्य सामने आता है। अनिल कपूर और दिव्या दत्ता ने अधेड़ पति-पत्नी की भूमिका निभाई हैं और बेटी बनी है पीहू संद।


लगभग औसत फिल्म है। साफ-सुथरी है, लेकिन न तो गाने मजेदार हैं और न कहानी बांधकर रख पाती है। भानुमति का कुनबा साफ-सुथरे तरीके से जुटाया गया है। फिल्म बोर नहीं करती, लेकिन कोई मजा भी नहीं आता।

 



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