डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।
पेंच है गाडरवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में ।
गाडरवाड़ा महाकौशल क्षेत्र में है। नरसिंहपुर जिले का नगर है।
लेकिन आता है होशंगाबाद संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत।
बीजेपी ने गाडरवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में अपने दिग्गज सांसद राव उदय प्रताप सिंह को मैदान में उतार दिया है।
गाडरवारा एक स्विंग सीट है। स्विंग बोले तो कभी पेंडुलम इधर, कभी उधर!
1990 के बाद इस सीट पर एक अपवाद को छोड़कर कभी भी एक ही व्यक्ति दो बार लगातार विधायक नहीं बन सका है। पिछली बार इस सीट पर कांग्रेस की उम्मीदवार सुनीता पटेल जीती थीं,जो इस बार भी मैदान में हैं।
2013 में सुनीता पटेल यह सीट हार गई थीं। इसलिए भी बीजेपी यह सीट जीतना चाहती है।
2013 में सुनीता पटेल गाडरवाड़ा सीट से बीजेपी के गोविंद सिंह से हार गई थीं।
2018 में बीजेपी ने गोविंद सिंह के बेटे को गौतम सिंह पटेल को उम्मीदवार बनाया था। तब सुनीता पटेल ने गोविंद सिंह पटेल के बेटे को हराकर पिछली हार का हिसाब चुकता कर लिया था।
अब बीजेपी ने दिग्गज को उतारा है कि अगर दम है तो अब जीतकर दिखाओ!
उदय प्रताप सिंह पहले कांग्रेस में विधायक थे।
फिर कौन सांसद बने और फिर कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आ गये।
2014 में जीते ।
2019 में भी जीते और रिकॉर्ड वोटों से जीते थे।
उन्हें पौने नौ लाख से ज्यादा वोट मिले थे (8,77, 927) वोट मिले थे जबकि उनके निकटतम उम्मीदवार कांग्रेस के दीवान चंद्रभान सिंह को 3 लाख 24 हजार 245 ।
जीत का अंतर था 5 लाख 53 हजार और 662 वोट।
2019 में वह मोदी लहर थी। पुलवामा कांड के बाद की जीत। मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 में से 28 सीटों पर बीजेपी जीती थी, लेकिन राव उदय प्रताप सिंह की जीत पूरे देश में 10वें सर्वाधिक वोटो से मिली जीत थी।
...और चुनाव की जीत केवल मित्र ही नहीं बनाती; प्रतिस्पर्धी और शत्रु भी बनाती है। तो बीजेपी के नेताओं को लगा होगा कि गाडरवाड़ा सीट किसी भी हालत में जीतनी है तो ही। चढ़ा दो राव उदय प्रताप सिंह को सूली पर।
अब सांसद राव उदय प्रताप सिंह गए हैं फंस! पुराना रिकॉर्ड बचाएं या अपनी सीट पर इज्जत! बहुत शालीन व्यक्ति हैं। अगले साल 60 साल के होंगे।
गाडरवाड़ा अब राव उदय प्रताप सिंह के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है! कि जो आदमी लोकसभा चुनाव में इतने ज्यादा वोटों से जीता हो वह विधानसभा चुनाव तो हार नहीं सकता।
गाजरवाड़ा अनारक्षित सीट है। यहां सभी जाति और धर्म के लोग रहते हैं।
कौरव समाज के लोगों का बाहुल्य है।अजा, ब्राह्मण, क्षत्रीय, जैन, सिख ...सभी हैं। जाति का कार्ड इस इलाके में ज्यादा नहीं चलता! पढ़े-लिखे और सभ्य लोग हैं !
देश में महंगाई और बेरोजगारी मुद्दा है तो यहां भी है। यहां की अरहर बहुत प्रसिद्ध है। दाल मिलें हैं जो पूरे देश में दालों की सप्लाई करती हैं। यहां गन्ना बहुत होता है और शुगर मिल भी पास ही है। इस इलाके का गुड़ पूरे देश में बिकता है।
लेकिन यहां सट्टे का धंधा भी अच्छा चलता है। यहां के अस्पतालों में डॉक्टर और नर्स नहीं मिलते! यहां के स्कूलों में शिक्षकों की कमी है! पूरा गाडरवारा नगर गंदगी से बजबजाता है और किसी को फिक्र नहीं है। बड़े और मालदार लोग बाहरी इलाकों में आलीशान कोठियां बना कर रहते हैं। जनता एनटीपीसी में नौकरी के लिए संघर्ष करती है। मांग करती है कि अगर यहां एक्सप्रेस और मेल ट्रेन रुकने लगे तो आना जाना सुगम हो।
यहां हरियाली है। नर्मदा की सहायक दो-दो नदियां हैं। नदियां हैं तो रेत का कारोबार भी भी है। रेत का कारोबार है तो माफिया भी है। रेत माफिया है तो नेता और राजनीति भी है। राजनीति है तो चुनाव है। चुनाव है तो दलबदल भी है। और अब यह भी मुद्दा है।
वोट 17 नवम्बर को पड़ेंगे। नतीजा 3 दिसम्बर को। तब तक दाल उत्पादक इलाके में नेता लोग दाल गलने की प्रतीक्षा में हैं। हम भी।
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