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आजादी के मतवाले की माँ की सत्ता ने सुध नहीं ली!

खरी-खरी            Aug 09, 2016


श्रीप्रकाश दीक्षित। आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद की जन्मस्थली भाबरा पधारे जो हमारे मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले का कस्बा है।पहले अलीराजपुर आदिवासी बहुल झाबुआ जिले का हिस्सा हुआ करता था। सबसे ज्यादा कटोचने और पीड़ा देने वाली बात यह है कि आजाद की जन्मस्थली भाबरा और झाँसी की रानी तथा तात्याटोपे की शहादतस्थली ग्वालियर और शिवपुरी मध्यप्रदेश में होने के बावजूद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान करोड़ों रुपये खर्च कर शौर्य/शहीद स्मारक नवाबों की नगरी भोपाल में बनवा रहे हैं...! chandra-shekhar-mother आइये, इस मौके पर उस प्रतापी माँ के बारे में कुछ जानें जिसने यशस्वी आजाद को जन्म दिया। उनका नाम जगरानी देवी तिवारी था जिन्होंने अंतिम सांस झाँसी में ली थी। मेरी बुआ के दामाद पंडित उमाशंकर तिवारी कुछ दिन पहले ही झाँसी से भोपाल शिफ्ट हुए हैं। ८०-८१ बरस का होने के बावजूद वे खासे चैतन्य और जागरूक हैं और खूब लिखते-पढ़ते हैं। मोदीजी के आजाद की जन्मस्थली पहुँचने की चर्चा के दौरान उन्होंने यह जानकारी दी कि स्वर्गीय आजाद की माँ का देहावसान झाँसी में हुआ था। उन्होंने इस बारे और अधिक ब्योरे के लिए झाँसी के ही मनीषी श्री ओमशंकर खरे अशर का टेलीफोन नंबर मुझे दिया। बिजली की किल्लत के लिए कुख्यात उत्तरप्रदेश की झाँसी में अशर साहब लाइट ना होने से परेशान थे सो उन्होंने मुझे झाँसी के वरिष्ठ पत्रकार मोहन नेपाली से बात करने को कहा। नेपाली जी ने बताया की स्वर्गीय आजाद ने फरारी के छह बरस मध्यप्रदेश में गुजारे थे। इस दौरान वे ओरछा के अलावा दतिया और पन्ना आदि में भी रहे। ओरछा में सातार नदी के किनारे गुफा के समीप कुटिया बना कर वे डेढ़ साल रहे थे। मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह ने वहां इंदिरा गाँधी के कर कमलों से उनकी मूर्ति स्थापित करवा दी है। वहां एक भवन भी बना है जहाँ कहते हैं की हमेशा ताला जड़ा रहता है। झाँसी के मास्टर रूद्र नारायण आजाद के गुरु थे। आजाद का एकमात्र उपलब्ध दुर्लभ फोटो रुद्रनारायण की पत्नी और दो बेटियों के साथ का ही है। आजाद के शहीद होने के बरसों बाद तक उनकी माँ को इसकी जानकारी नहीं थी और वे भाबरा में ही रहा करती थीं। आजादी के बाद आजाद की माँ की जब किसी ने भी सुध नहीं ली तब बनारसीदास चतुर्वेदी की पहल पर भगवानदास माहौर और सदाशिवराव मलकापुरकर माँ जगरानी देवी को झाँसी ले आए। इन महानुभावों ने उन्हें तीर्थ यात्रा भी करवाई. उन्होंने झाँसी में माहौर जी की देखरेख में 21 मार्च,1951 को प्राण त्यागे और बड़ागाँव गेट के पास के शमशान घाट पर अंतिम संस्कार कर दिया गया.। दुर्भाग्य से आजाद जैसे आजादी के मतवाले को जन्म देने वाली इस राष्ट्रमाता का स्मारक झाँसी में आकार नहीं ले पाया है।


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