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इतना परेशान करना हो, तो अब मत आना मोदीजी!

खरी-खरी            Aug 12, 2016


hemant-palहेमंत पाल। आदिवासी इलाका हमेशा ही राजनेताओं के लिए पसंदीदा रहा है। जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी। कई प्रधानमंत्री प्रदेश के इस सघन आदिवासी जिले झाबुआ और अलीराजपुर का दौरा कर चुके हैं। इस लिस्ट में अब नरेंद्र मोदी का भी नाम जुड़ गया। 'विश्व आदिवासी दिवस' पर अलीराजपुर जिले में चंद्रशेखर आजाद की जन्मस्थली भाबरा आने के साथ नरेंद्र मोदी ने यहाँ के झोतराड़ा गाँव में एक सभा को भी संबोधित किया! कुल जमा डेढ़ घंटे के इस कार्यक्रम से पूरे इलाके में अव्यवस्था का जो आलम रहा, उसे लोग लंबे अरसे तक नहीं भूल पाएंगे। स्कूलों और बस संचालकों से जबरन लाई गई बसें! गैर-राजनीतिक लोगों की भीड़। बरसात के कारण चारों तरफ हुए कीचड और गंदगी। पुलिस और प्रशासन की आदिवासियों पर जबरदस्ती। परेशान होते लोग। अधिग्रहित बसों के कारण यात्री बसों की कमी। करोड़ों रुपए की बर्बादी के अलावा 'आजाद' की जन्मस्थली रही कुटिया को नया रूप दिया जाना भी इतिहास पर रंग-रोगन करने जैसा है। इस आदिवासी इलाके के लोगों का दर्द प्रधानमंत्री की इस यात्रा से उभरकर सामने भी आया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलीराजपुर जिले के भाबरा (चंद्रशेखर आजाद नगर) की यात्रा अपने पीछे ऐसे कई कड़वे अनुभव छोड़ गई, जो लोग सालों भूल नहीं पाएंगे। प्रशासनिक ज्यादतियों और अव्यवस्थाओं ने पूरे मालवा-निमाड़ इलाके की व्यवस्थाओं को गड़बड़ा दिया। प्रधानमंत्री की रैली को सफल बनाने के एक सूत्रीय लक्ष्य को पूरा करने के लिए नौकरशाहों ने अपने अधिकारों की हदें पार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। स्कूलों की बसें छीनकर उन्हें रैली के लिए भीड़ जुटाने के काम में झोंक दिया! नियमित मार्गों पर चलने वाली यात्री बसें अफसरों का आदेश मानने के लिए मजबूर कर दी गई! इससे यात्री परेशान हुए! स्कूल बंद रहे। अलीराजपुर, झाबुआ और धार जिले के कई सड़क मार्ग बंद कर दिए गए या उनके ट्रैफिक को लंबे रास्ते पर धकेल दिया गया। वीआईपी सुरक्षा के नाम पर चाय, पान की दुकानें बंद करा दी गईं! भाबरा के एक वृद्ध की बातों से उभरा दर्द इस पूरे इलाके की पीड़ा को व्यक्त करने के लिए पर्याप्त है। उनका कहना था कि 'मैंने अपने जीवन में यहाँ लोगों को कभी इतना परेशान नहीं देखा! महीनेभर से पुलिस और अफसरों ने हमारे गाँव को कुचलकर रख दिया। पहले भी कई वीआईपी यहाँ आए, पर ऐसा आलम कभी नहीं दिखा। 'मोदीजी, हमें अपने हाल पर छोड़ दो, अब यहाँ कभी मत आना।' इन चंद शब्दों में बहुत सारा दर्द है। लेकिन, ये पीड़ा भाबरा तक सीमित नहीं है! पूरे मालवा ने किसी न किसी रूप में उभरी अव्यवस्था को भोगा है। प्रधानमंत्री की यात्रा के कारण पूरा सरकारी तंत्र कई दिनों तक भीड़ जुटाने की कोशिशों में जुटा रहा। सारे कामकाज ठप्प रहे! प्रशासनिक अधिकारी मैदानी स्तर पर यही जुगत लगाते रहे कि भीड़ को किस तरह भाबरा पहुंचाया जाए। नरेंद्र मोदी की सभा का पहला विवाद था खंडवा के एक छात्र का लिखा पत्र। यात्रा से चार दिन पहले 8 वीं के एक छात्र नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा और रैली की भीड़ के लिए स्कूल बसों के इस्तेमाल पर सवाल उठाए। उस छात्र ने पत्र लिखकर पूछा था कि क्या आपकी सभा हमारे स्कूल से ज्यादा जरुरी है? आपकी सभा को सुनने आने वाले लोगों को लाने के लिए प्रशासन द्वारा स्कूल बसों को अधिग्रहित करना क्या सही है? पत्र में लिखा कि मैंने यह भी सुना है कि स्कूल ने यदि बसें देने का आदेश नहीं माना, तो शिवराज मामा हमारा स्कूल बंद करवा देंगे। क्या आपको हमारी पढ़ाई और भविष्य की कोई चिंता है? इस पत्र के सोशल मीडिया पर वायरल होते ही प्रशासन जागा और संयुक्त कलेक्टर ने तुरंत भाबरा रैली में बसों के इस्तेमाल पर तुरंत रोक लगा दी। जबकि, पहले उन्होंने ही बस नंबरों के साथ स्कूलों को आदेश जारी करके उन्हें संबंधित अधिकारियों को सौंपने को कहा था! एक छात्र द्वारा मोदी को लिखे पत्र ने अंततः प्रशासन को अपना फैसला वापस लेने को मजबूर कर दिया! खंडवा प्रशासन ने स्कूल बसें लेने का आदेश निरस्त करने के साथ ही खंडवा में 'विश्व आदिवासी दिवस' पर स्कूलों में घोषित अवकाश भी रद्द कर दिया। इस यात्रा से जुड़ा एक और पहलू यह भी है कि इंदौर कलेक्टर पी नरहरी ने स्कूलों की बसें अधिग्रहित करने के लिए एक अजीब आदेश दे डाला। कलेक्टर ने आदेश दिया कि ‘मौसम विभाग द्वारा कल (9 अगस्त 2016) के लिए इंदौर जिले में वर्षा की चेतावनी और कार्यक्रम के लिए स्कूल बसों की आवश्यकता को देखते हुए, सभी आंगनवाड़ियों, शासकीय एवं अशासकीय स्कूलों में (प्री-प्राइमरी, प्राथमिक से लेकर बारवी तक) कक्षाएं कल नहीं लगेंगी। कलेक्टर के इस आदेश से स्कूली बच्चे तो खुश हुए, पर सोशल मीडिया पर इस अजीब आदेश को लेकर कई तरह के कमेंट सामने आए। इस आदेश का काफी मजाक उड़ाया गया। लोगों ने अपने कमेंट में यहाँ तक लिखा कि ‘भारी बारिश के कारण स्कूल तो बंद कर दिए, लेकिन क्या मोदी की रैली होगी?' जबकि, वास्तव में 9 अगस्त को इंदौर में भारी वर्षा की आशंका को लेकर मौसम विभाग ने कोई अलर्ट ही जारी नहीं किया। उस दिन पूरे इंदौर जिले में जोरदार बारिश भी नहीं हुई। कई स्कूलों को तो दूसरे दिन भी छुट्टी घोषित करना पड़ी क्योंकि, देर रात तक भाबरा गई बसें लौट नहीं सकीं। जब कलेक्टर का ये आदेश सामने आया था, तब इसे गंभीरता से इसलिए नहीं लिया गया कि शायद सही में भारी बरसात हो जाए। पर, जब कुछ नहीं हुआ तो एडवोकेट आनंद मोहन माथुर ने मंगलवार को युगल पीठ के सामने तर्क रखा कि किसी भी कलेक्टर को इस तरह के आदेश देने का अधिकार नहीं है। उनके द्वारा स्कूलों की छुट्टी करने का फैसला असवैंधानिक है। उन्होंने कलेक्टर के इस फैसले को संविधान की धारा 14, 21(अ), 45 और 46 का उल्लंघन बताया। सभा के लिए बसों का अधिग्रहण भी असंवैधानिक बताते हुए माथुर ने कहा कि इस फैसले से शहर के लाखों बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हुआ है, उसके लिए कौन जिम्मेदार है? मौसम विभाग की रिपोर्ट के विपरित उन्होंने शहर में भारी वर्षा की झूठी चेतावनी देकर भ्रम फैलाया है। इसके लिए भी उन पर कार्यवाही होना चाहिए। माथुर ने इस छुट्टी के एवज में स्कूली बच्चों के परजनों को मुआवजा देने की भी मांग की। माथुर के मुताबिक ये तर्क सुनने के बाद इंदौर हाई कोर्ट के प्रशासनिक न्यायमूर्ति पीके जायसवाल ने इस मामले को चीफ जस्टिस ऑफ मप्र के ध्यानार्थ जबलपुर भेज दिया है। संभवत: हाई कोर्ट खुद इस पर जनहित याचिका दायर कर सकता है। इसके अलावा कांग्रेस नेता पिंटू जोशी ने भी इस मुद्दे पर जनहित याचिका दायर की! स्कूलों में अवकाश घोषित करने के फैसले को कलेक्टर द्वारा पद का दुरुपयोग बताते हुए प्रदेश में इस मुद्दे पर गाइड लाइन जारी करने की मांग की गई है। पिंटू जोशी के एडवोकेट ने बताया कलेक्टर ने 9 अगस्त को स्कूलों का अवकाश घोषित कर दिया। जबकि, 14 अप्रैल 2016 को डॉ.भीमराव आम्बेडकर की जयंती के कार्यक्रम में शामिल होने आए प्रधानमंत्री की यात्रा के लिए अवकाश के दिन भी बच्चों को जबरिया कार्यक्रम स्थल बुलाया गया था। मैंने कई साल पहले चंद्रशेखर आजाद की जन्मस्थली को उसके मूल स्वरुप में देखा था। मिट्टी की उस कुटिया देखकर दिल में श्रद्धा का जो भाव उभरा था, वो इस बार नहीं आया।'आजाद' की असल कुटिया नदारद थी, उसकी जगह खूबसूरत बिल्डिंग खड़ी थी! चकाचक और चमचमाती हुई! खूबसूरत फूलों से सजी हुई। अंदर 'आजाद' की मूँछ उमेठते हुए प्रतिमा लगा दी गई। बेहतर होता कि इस कुटिया को उसके मूल स्वरुप में ही संवारकर संरक्षित किया जाता। महात्मा गाँधी के साबरमती आश्रम की तरह। आजाद की जन्मस्थली को चमचमाना इतिहास के साथ खिलवाड़ करने जैसी धृष्टता है। आज वहाँ ऐसा कुछ नहीं बचा, जो देखने वाले को उस समयकाल में ले जाए। ये तो हुये सरकारी जबरदस्ती वाले किस्से। सभा स्थल भाबरा तक जाने के रास्ते की भी हालत ये थी कि इंदौर तथा अन्य स्थानों से गए कई भाजपा नेता और कार्यकर्ता जाम लगने से कार्यक्रम स्थल तक भी नहीं पहुंच पाए। क्योंकि, इस पूरे ग्रामीण इलाके की सड़कें सिंगल हैं, जहाँ से एक बार में एक ही वाहन गुजर सकता है! वहां 3 हज़ार वाहन एक साथ पहुँच जाएंगे, तो जाम लगना स्वाभाविक था। झाबुआ से आलीराजपुर जाने वाले वाहनों की लंबी कतार सुबह से ही लग गई थी! यही स्थिति मनावर और कुक्षी होकर जाने वाले वाहनों के साथ भी थी। कुक्षी से जाने वाला रास्ता ही एनवक़्त पर बदल दिया। ऐसे में कई वहाँ कई वाहन कीचड में फँस गए। कई भाजपा नेता कुक्षी के इस जाम में अटक गए। कुक्षी से जोबट तक भी लंबा जाम रहा। कार्यकर्ताओं से भरी बसें और अन्य वाहन भी रैली स्थल तक नहीं पहुंचे। उधर, सभा स्थल पर भी अव्यवस्थाओं का आलम अलग ही था। पूरा सभा स्थल कीचड़ और गंदे पानी से अटा होने से लोग काफी परेशान हुए। कीचड़ की स्थिति ऐसी थी कि लोगों का बैठना तो दूर खड़ा होना भी मुश्किल था। वे लोग भी दो दिन बेहद त्रस्त रहे, जिन्हें इन दिनों में बसों से यात्रा करना थी। इंदौर, धार, झाबुआ, रतलाम, उज्जैन और खरगोन समेत कई जिलों से चलने वाली यात्री बसों को प्रशासन द्वारा अधिग्रहित किए जाने से लोग बेबस थे। अकेले रतलाम जिले की 180 बसें दो दिन बंद रहीं! बसें कम होने से सड़क यातायात बुरी तरह प्रभावित हुआ। धार से आने-जाने वाले यात्रियों के लिए भी मोदी की सभा त्रासद रही। धार मार्ग की 80 बसें अधिग्रहित किए जाने की वजह से नहीं चलीं। इस कारण यात्रियों का इंतजार लंबा हो गया। इंदौर के गंगवाल बस स्टैंड से दूसरे स्थानों पर जाने के लिए यात्री सुबह से शाम तक परेशान हुए। इस मार्ग पर बहुत कम बसें दौड़ती नजर आईं, जो यात्रियों के लिए नाकाफी थी। झाबुआ जाने वाले यात्रियों की भारी बड़ी फजीहत हुई। एक बस के इंतजार में यात्री दो-दो घंटे तक इंतजार करते रहे। कई महिला यात्री इस बात की शिकायत करती रहीं कि प्रधानमंत्री के दौरे के लिए हमें क्यों तकलीफ दी जा रही है? कुक्षी, आलीराजपुर, धामनोद और बड़वानी जाने वाले यात्री भी बस के इंतजार में घंटों खड़े रहे। अफसरों ने बसों को अधिग्रहित करने से पहले लोगों को होने वाली तकलीफों के बारे में नहीं सोचा। ये सब देखकर भाबरा के उस बुजुर्ग की बात याद आती है कि 'इतना ही परेशान करना हो, तो अब मत आना मोदीजी।' लेखक सुबह सवेरे में राजनीतिक संपादक हैं।


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