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न्यायपालिका को धौंस तो नहीं दे रहे थे मोदी?

खरी-खरी            Aug 15, 2016


sriprakash-dixitश्रीप्रकाश दीक्षित। हमारे देश का लोकतंत्र लीडरों के लम्बे-चौड़े भाषणों, फरेबी वायदों और लोक-लुभावनी घोषणाओं का बंधक बन कर रह गया है। अब स्वाधीनता के राष्ट्रीय समारोह को ही लें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से पूरे डेढ़ घंटे तक भाषण फटकारा..! ऐसा लग रहा था मानो वे स्वाधीनता समारोह को नहीं बल्कि किसी चुनावी सभा को संबोधित कर रहे हैं। प्रधानमंत्री का यह जुमला काबिले गौर है कि हम टालने में नहीं टकराने में विश्वास करते हैं..? ऐसा कह कर घरेलू मोर्चे पर कहीं वे देश की न्यायपालिका को धौंस तो नहीं दे रहे थे..? अभी दो दिन पहले ही चीफ जस्टिस टी एस ठाकुर और दो अन्य जजों की सुप्रीमकोर्ट पीठ ने जजों की नियुक्ति संबंधी कालेजियम के प्रस्ताव को लम्बे समय से दबाए रखने के लिए मोदी सरकार की जमकर खिंचाई की। कालेजियम पिछले आठ महीनों में जजों की नियुक्ति के लिए 75 नामों की सिफारिश कर चुकी है जिन्हें सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल रखा है। इस कारण हाईकोर्टों में चीफ जस्टिस की नियुक्ति नहीं हो रही है। पीठ ने कहा की इससे न्यायिक कामकाज प्रभावित हो रहा है जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। पीठ ने चेतावनी भरे लहजे में कहा की हम जवाबदेही से बंधे हैं और जरूरत पड़ी तो अदालती आदेश से यह काम कराया जा सकता है।पीठ ने यह सख्त टिपण्णी जजों की कमी को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान की। सब जानते हैं कि हाईकोर्टों और सुप्रीम कोर्ट में दरबारी जजों की नियुक्ति के लिए मोदीजी ने कालेजियम को समाप्त कर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग बनाने की चाल चली थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने नाकाम कर दिया। इससे बौखलाए मोदीजी जजों की नियुक्ति में अड़ंगेबाजी कर रहे हैं। इतना ही नहीं समय-समय पर अरूण जेटली जैसे उनके खास सिपहसलार बयानबाजी भी करते रहे हैं। अहंकारी सत्ता के भ्रष्टाचार, तंत्र के दुरुपयोग और दमनकारी आचरण के खिलाफ अदालतें आम आदमी के लिए रक्षा कवच के समान हैं।इन्हें भ्रष्ट राजनैतिक सत्ता के अधीन करने की विफल कोशिश के बाद उनसे टकराव खतरनाक और लोकतंत्र के लिए घातक साबित हो सकता है। फेसबुक वॉल से।


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