प्रकाश भटनागर।
विचार और निर्णय की प्रक्रिया वाले दो सिरों के बीच यदि निजी स्वार्थ का परनाला बह रहा हो तो फिर विचार और निर्णय, दोनों पर ही इसका बुरा असर होता है। यही एक बार फिर कांग्रेस के साथ हुआ है।
कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में पार्टी ने जातिगत आरक्षण का खुलकर समर्थन किया। कहा कि यदि आम चुनाव में उसकी सरकार बनी तो पूरे देश में इसी आधार पर जनगणना कराई जाएगी। जाहिर है कि इस जातिवादी गणित से कांग्रेस सबसे पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में सियासी लाभ लेने की जुगत में है।
लेकिन ऐसे ही एक लाभ के लिए इस दल ने जो जुर्रत दिखाई है, वह हतप्रभ कर देने वाली है। सीडब्ल्यूसी ने इजरायल पर हमास के बर्बर आतंकवादी हमले में फिलिस्तीन का पक्ष लिया है। वहां के रहवासियों को जमीन, स्वशासन और आत्म-सम्मान एवं गरिमा के साथ जीवन के अधिकार देने की वकालत की है।
यदि आप थूक कर चाटने वाली कहावत का भावार्थ समझना चाहे हैं तो इसे यूं समझिए कि सीडब्ल्यूसी में इस आशय का प्रस्ताव पारित करने से एक दिन पहले ही इस दल ने इस संघर्ष के लिए फिलिस्तीन की खुलकर आलोचना की थी।
अब चौबीस घंटे में ही उसके सुर कैसे बदल गए, यह एक दूसरी कहावत ‘घुटने पेट की तरफ ही मुड़ते हैं’ से समझा जा सकता है। देश में कांग्रेस के शासनकाल में ही फिलस्तीन और इसके नेता यासिर अराफात को देवतुल्य सम्मान और पितृतुल्य व्यवहार प्रदान किया गया था। जिस गणराज्य का निर्माण ही एक देश (इजरायल) को मिटा देने की अवधारणा के साथ किया गया हो, उसको कांग्रेस ने हमेशा मित्रवत स्नेह दिया है।
इसलिए ताज्जुब यह नहीं है कि इस दल ने फिलिस्तीन का समर्थन किया, ताज्जुब यह कि इससे जुड़े प्रस्ताव में इजरायल के लिए समर्थन तो दूर, संवेदना तक को स्थान नहीं दिया गया है। अब जाहिर है कि हमारे देश में यहूदी वर्ग के मतदाता नहीं हैं।
शायद इसीलिए कांग्रेस को इजरायल में मारे गए करीब एक हजार लोगों और फिलस्तीन समर्थक आतंकवादी संगठन हमास द्वारा बंदी बनाए गए असंख्य इजरायलियों से कोई सरोकार नहीं है, लेकिन वह फिलिस्तीन के लिए दुखी है।
इस बात के कारण को ज्यादा विस्तार न देते हुए एक धारावाहिक के शीर्षक गीत ‘ ये रिश्ता क्या कहलाता है?’ को दोहराकर काम चला लेना ही उचित जान पड़ता है।
भारत लंबे समय तक आतंकवाद के उस दंश को झेल चुका है, जो एक बार फिर इजरायल को सता रहा है। दुनिया का अधिकांश हिस्सों की तरह ही भारत और इजरायल में भी इस समस्या की जड़ में मुस्लिम चरमपंथ ही है। इससे कांग्रेस भी अछूती नहीं रही है। इंदिरा गाँधी की हत्या भले ही सिख समुदाय के दो सुरक्षा कर्मियों ने की हो, लेकिन इसके मूल में स्थित सिख आतंकवाद को तो पाकिस्तान ने ही पैदा किया और पनपाया था।
जातीय या नस्लीय आधार का फिलिस्तीन जैसा कट्टरपंथ कितना घातक हो सकता है, यह कांग्रेस श्रीलंकाई तमिलों के हाथों मारे गए राजीव गांधी के रूप में देख चुकी है।
इसके बाद भी यदि वह फिलिस्तीन का समर्थन कर रही है तो फिर यह बेशक कहा जा सकता है कि इस दल ने महज चौबीस घंटे में फिलिस्तीन के विरोध से लेकर उसके समर्थन के जरिए ‘रंगा सियार’ वाली कहानी और कहावत, दोनों ही याद दिलवा दी हैं। आज सोशल मीडिया की बदौलत सारी दुनिया लोगों की मुट्ठी में है।
फिलिस्तीन में एक देश और धर्म के नाम पर जो किया जा रहा है, वह सब वितृष्णा के भाव के साथ देख रहे हैं। भारत में भी प्रतिक्रिया की यही स्थिति है। इसके बाद भी इस मसले पर कांग्रेस का रुख यह बताता है कि आत्ममुग्धता के दलदल में डूबा यह दल अतीत की अपनी गलतियों से कोई सबक लेना नहीं चाह रहा है।
आज हमने कहावतों को लेकर काफी बात कही। एक कहावत और है कि सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते हैं। लेकिन फिलिस्तीन के विषय में कांग्रेस के रुख को देखकर आज वाली कहावतों में से अंतिम में कांग्रेस कहीं से कहीं तक फिट नजर नहीं आ रही है।
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