पंकज शुक्ला।
एक पेड़ का शोकगीत,
यह जो धराशायी है... यह पीपल का हराभरा पेड़ था... ऊंचे कद का, लहलहाता, पंछियों के डेरे वाला दरख्त।
बौने समाज का यह 'बरगद' सा पीपल आज पड़ा है... बेदम।
याद आता है, कुछ बरस पहले जब कॉलोनी में कदम रखा तो मिला था यह हाथ हिलाता हुआ। दूर से दिखाई दे गया था जैसे यही हमारा संरक्षक हो। हमारी सांसों का रखवाला।
जाने कितनी बार इसके करीब से गुजरा, फोन पर बतियाते हुए इसके तले ठहरा, कभी अनदेखा किए निकल गया काम की जल्दी में। मगर जब भी इसकी ओर देखा, यह मुस्कुराता मिला, अपनी पत्तियों को हिला-हिला दुलाराता सा मिला।
फिर एक दिन देखा, सूखा रोग लग गया है इस हरियल पीपल को। एक-एक कर झर गए पात सारे।
यूं होता है भला? इतना हरा पेड़ कब सूखता है बताओ जरा?
मेरी हैरत पर माली खामोश था। खूब पूछा तो फुसफुसाया, सामने वालों ने जड़ों में कुछ डाला था।
दीवार में उग आए आवारा से नन्हे पीपल के पौधे से डरने वाले छोटे-छोटे फ्लेट के मालिक इत्ते बड़े पीपल के खौफ से कैसे बचे रहते?
कोई कहता, यह हमारी दीवारों को ले गिरेगा एक दिन। कोई बताता इसकी जड़ें नींव कमजोर करती है। सामूहिक चिंता के स्वरों में उस शख्स को कोसा जाता जिसने इसे रोप दिया था जाने कब। कोई कहता दोषी नहीं है इंसान, हवा उड़ा लाई होगी यह बीज और यहां उग आया होगा नन्हा पौधा। तब उलाहना भरी प्रतिक्रिया सुनाई देती, तब ही उखाड़ फेंकते तो आज यह नौबत नहीं आती।
कहते हैं जड़ों में मट्ठा डालो तो अच्छे से अच्छा पेड़ सूख जाता है। यह तो पीपल था और जड़ों में कोई कैमिकल। सूख गया वह पेड़ से जो परिवार के बुजुर्ग की तरह करता था हमारी सांसों की हिफाजत, चुपचाप, बिना बोले। बिना अहसान जताए।
एक दिन देखा, सूखे पेड़ की शाख पर एक पाखी बैठा है। वह क्यों बैठा है एक सूखे पेड़ की सूखी शाख पर जबकि आसपास घने पेड़ हैं। सोचता रहा मैं देर तक। फिर कई दिन देखा, वह पंछी अक्सर आ कर बैठा करता था। जैसे, दोस्त के पास कर दु:ख बांट रहा हो दूसरा दोस्त। जबकि इस पेड़ का डेथ वारंट जारी करने वाले इंसान कर रहे थे जतन कि यह खड़ा भी न रहे ठूंठ बन कर। गिर ही जाए कि बच जाएं नींव, बनी रहे सुरक्षा दीवार।
आज धराशायी हो गया एक जवान पेड़ जिसे इंसानी खौफ ने बूढ़ा बना दिया था।
जब गिरा यह तो आसमान सुबक रहा था, हवाएं बैठ गई थीं किनारे चुपचाप। बत्ती कुछ देर गुल हुई कि घरों से बाहर निकल इंसान जान जाएं कि आखिर डूब गया यह सितारा। हो गई मुराद पूरी। अब चैन पाओ।
यह पेड़ जब गिरा तो गिर गया वह भय भी कि यह दीवार गिरा कर ही छोड़ेगा। यह गिरा लेकिन अपने कातिलों पर रहम कर गया। उनकी दीवार सलातम रही, बस, जड़ों के साथ उभर आया मिट्टी का एक घेरा। मानो, धरती ने कहा है, मैं छोडूंगी साथ तुम्हारा।
अब सुबह होगी। पेड़ के हिस्से होंगे। ये हिस्से बंटेंगे उनके बीच जो इसका उपयोग करना चाहेंगे। इसके जाने से हुए गड्ढे को भर दिया जाएगा। इंसान के गुनाहों पर डाल दी जाएगी मिट्टी। थोड़ी हुई टूट को सुधार कर चमका दिया जाएगा। सबकुछ हो जाएगा पहले जैसा।
मगर, बहुत दिनों बात जब कोई आएगा और पता पूछते हुए कहेगा, यहां एक पीपल हुआ करता था न?
तब शायद चीख कर कह सकूं, यहां अब इंसान रहते हैं। सुरक्षित।
आज यहां पेड़ धराशायी नहीं हुआ है, यहां हमारी सांसें उखड़ गई है।
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