Breaking News

ऑनलाईन शॉपिंग के रस्मन विरोध से पहले सरकारों से सवाल जरूर पूछें

खरी-खरी            Oct 20, 2024


ममता मल्हार।

इत्तेफाकन कुछ साल पहले का चेतन भगत का भास्कर में छपा हुआ एक आलेख सामने आ गया, जिसका शीर्षक था भूख भावनाओं का खेल है। वह समय भी दीवाली के आसपास का लेकिन कोविड काल के बाद का था। अब फिर दीवाली आसपास ही है और ऑनलाईन खरीदी के विरोध में रस्मन पोस्ट शुरू हो गईं हैं। बात यह है कि जब लोग मोबाइल स्क्रीन पर ऐसे संदेश झट फॉरवर्ड या पेस्ट कर देते हैं तो वे एक सेफजोन में बैठकर यह कर रहे होते हैं। उन्हें नहीं याद आते दिनभर बाईक से गली-गली पार्सल बांटते लड़के। जिनके लिए शायद वह पूरे परिवार का रोजी-रोटी का जरिया हो। ऐसी ही बहुत सारी बातें उस समय लिखीं थीं। भूख भावनााओं का खेल नहीं है।

हम किसी ऐसे ज्ञान को नहीं मानते जो लोग खुद की जिंदगी में अमल न करें। सालभर कुछ न कुछ ऑनलाइन खरीदने वालों का त्यौहार के समय षष्ठम भाव वाला ज्ञान जाग्रत हो जाता है और फिर सोशल मीडिया पर ज्ञान की बाढ़ आ जाती है। क्यों न करें ऑनलाईन खरीदी भाई? मेहनत का पैसा है जहां से चीजें सस्ती मिलेंगी नापसन्द होने या खराब निकलने पर बिना झिक-झिक वापसी की सुविधा फुल रिटर्न के साथ होगी वह भी सम्मान के साथ। तो वहीं से खरीदी करेंगे हम तो, जहां से बचत होगी। अब इससे भी बड़ा तथ्य और मुद्दा जो ये ज्ञानी लोग अनदेखा कर देते हैं। मुझे पूरा यकीन है कि यह वह एलीट क्लास है जो शायद खुद कभी सब्जी भी खरीदने नहीं जाता होगा। ये सबसे अहम बात नजरअंदाज कर रहे हैं या इन्हें दिखाई ही नहीं दे रही?

क्या आपको अंदाजा है कि इस ऑनलाइन शॉपिंग के कारण कितने नौजवानों को रोजगार मिला है? ये जो कई-कई किलो के बोरे लादे लड़के घर तक सामान पहुंचाते हैं उनके बारे में सोचा है आपने? कभी पूछिये इनसे पता चलेगा ये कितने पढ़े-लिखे हैं? इनकी क्या क्वालिफिकेशन है? परिवार के सहारे ही हैं या परिवार ही चला रहे हैं। ये ऑनलाईन शॉपिंग का विरोध करने वाली जमात वो जमात है जो निजीकरण का विरोध नहीं करती। सरकार द्वारा नवरत्न कम्पनियां बेचे जाने का विरोध नहीं करती। ये नोटबन्दी पर तर्क देती थी लाईन में खड़े होकर शहीद होने का। ये।महंगाई पर इतना सात्विक ज्ञान देते हैं कि ओवर सात्विकता से उबकाई आने लगती है। आप जोमैटो स्विगी का भी विरोध करते हैं कभी पूछिये उनके डिलवरी बॉय से कि प्रति पार्सल डिलीवरी कितना मिलता है और कोई शिकायत कर दे तो इन डिलीवरी बॉयज के साथ क्या होता है।

एक बार रेपीडो बाइक पर एक अकॉन्टेन्ट।मिले थे लॉकडाउन में नौकरी चली गई थी।।जो मिली वह घर चलाने और लोन की किश्तें भरने पर्याप्त नहीं थी उन्होंने घर में रखी स्कूटी को ओला और रेपीडो से जोड़ लिया। अब वे यह भी कर रहे हैं। उन ऑनलाइन मार्केट हो या D-mart, Ondoor जैसे सुपर स्टोर ये 7 से 15 दिन का समय देते हैं सामान को रिटर्न या एक्सचेंज करने का। आपका लोकल दुकान वाला ऐसा बहुत कम करता है। करता भी है तो पहले आपको 20 सुनाएगा और 50 बार अहसान जतायेगा कि देखो हमने वापस कर लिया या बदल लिया कोई और थोड़े ही करता है। एक तमीजदार कस्टमर सर्विस मिलती है इन ऑनलाइन स्टोर या ऑफलाइन सुपर स्टोर से। जिसका पैसा मेहनत का होगा वो सोच समझकर ही पैसे को खरचेगा बरतेगा।

आप नई पीढ़ी के लिये या फिलहाल जो आउटसोर्स कर्मचारी या अतिथि शिक्षक या संविदा शिक्षक हैं उनकी स्थायी नियुक्ति या पेंशन की बात क्यों नहीं करते? आप क्यों नहीं बोलते जब सेना जैसी जिम्मेदारी वाली नौकरी भी 4 साल की अग्निवीर स्कीम के हवाले कर दी जाती है। चायना का विरोध करना है मगर सरकार से यह नहीं पूछ रहे कि चायना का सामान आज हर भारतीय के चूल्हे तक पहुंचा है तो क्यों पहुंचा है? क्योंकि सरकार रास्ते बंद कर नहीं रही। पन्नियां रखने पर दुकान वालों के यहा कार्रवाई होगी पर बनाने वालों पर नहीं। पूजा का सामान जैसे दिए माला लाई आदि सामग्री लीजिये फुटपाथ वालों से हम भी वहीं से लेंगे। लेते आ रहे हैं पिताजी के समय से। बाकी जहां बचत होगी वहां से खरीदिये। अब एक सच्ची घटना बताऊं यह पोस्ट लिखते हुए बालकनी में बैठी हूँ। ऊपर के फ्लैट से अंकल की आवाज आ रही है बेटे से बात करते हुए वही ऑनलाइन शॉपिंग न करें वाली पोस्ट सुना रहे और उसका समर्थन भी कर रहे फिर बोले अच्छा वो लड़ी ऑर्डर करी थी आई कि नहीं फलां ऑनलाइन से। डिलीवरी बॉय तो 4-5 दिख गए।

देखिए कुलमिलाकर बात इतनी सी है सरकार सरकारी नौकरी करती जा रही है खत्म तो लोग अगर मेहनत-मजदूरी से दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर रहे हैं तो करने दीजिये। और हाँ ऑनलाइन खरीदी जब करते हैं न तो उसमें डीलर की डिटेल जरूर देखिएगा आपके आसपास का ही कोई ऑनलाइन वालों को माल सप्लाई करता है। उसका भी धंधा चौपट करवाओगे।

चेतन भगत को लगता होगा भूख भावनायें जगाने वाला विषय है पर मैंने देखा है अनुभव भी किया है भूख के लिये बहुतों को अपनी भावनाएं मारते हुए।

 


Tags:

online-shopping-vs-local-shopping bhookh-bhavnaon-ka-khel-nahin chetan-bhagat

इस खबर को शेयर करें


Comments