कीर्ति राणा।
केंद्र से राज्य तक नाम बदलने के रिवाज से जिन दलों-नेताओं के पेट में मरोड़े उठते हों उनके लिए एक तरह से दर्द निवारक जैसी पहल मप्र सरकार ने कर दी है।मप्र ने यह साबित कर दिखाया है कि नाम बदलने से इतिहास नहीं बदल सकता।
भूले नहीं हों तो विभिन्न पदों के लिए परीक्षा लेने वाले मंडल का नाम पहले एमपी प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड था।
इसके द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं में जब धांधलियां लगातार सप्रमाण सामने आने लगीं तो इसका नाम मप्र व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) नाम कर दिया था इसी सरकार ने ।
कोई फर्क नहीं पड़ा नाम बदलने से, परीक्षाओं के ऐसे कच्चे चिट्ठे सामने आए कि पूर्व सीएम, पूर्व मंत्री से लेकर संघ के भाईसाबों तक द्वारा की गई सिफारिशों की चर्चा आम हो गई। चूंकि संघ के बड़े-बड़े भाई साब जुड़े थे इसलिए सरकार को अभयदान मिलता गया।
व्यापमं कांड किसी को याद ना रहे इस दिशा में इसी सरकार ने हमेशा की तरह फिर नाम बदलने में तत्परता दिखा दी।
नया नाम हो गया कर्मचारी चयन बोर्ड (ईएसबी)।नाम बदलने से फिर भी कुछ नहीं हुआ, धांधली के कीर्तिमान इस बार भी कायम हो गए।पटवारी परीक्षा वाली जो मिलीभगत सामने आई तो सरकार ने परीक्षा परिणाम की जांच कराने की सजगता जरूर दिखा दी है, वह भी चुनाव सिर पर हैं तो?
पटवारी परीक्षा में 10 में से 7 टॉपर ग्वालियर के जिस भिंड स्थित कॉलेज सेंटर के हैं वो एनआरआई कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड मैनेजमेंट कॉलेज भाजपा विधायक संजीव सिंह कुशवाह का है। प्रदेश में बेरोजगार युवाओं की संख्या 80 लाख के करीब है।इनमें से पटवारी पद पर चयन के लिए परीक्षा देने वाले 13 लाख छात्रों में से लाखों समझ नहीं पा रहे हैं कि टॉप-10 में इंदौर, भोपाल, जबलपुर, सागर, रीवां संभाग के छात्र क्यों नहीं आ पाए। सरकार इतनी जल्दी तो परीक्षा परिणाम का परीक्षण करा नहीं पाएगी यह जानते हुए हाइकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में रघुनंदन सिंह परमार ने जनहित याचिका भी लगा दी है।
परीक्षा में धांधली का यह मामला पहला नहीं है। इससे पहले सिंधिया कोटे से सरकार में परिवहन मंत्री गोविंद सिंह के सागर कॉलेज ज्ञानवीर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड साइंस कॉलेज से शिक्षक पात्रता परीक्षा का पर्चा लीक हो चुका है। इस कॉलेज को ब्लेकलिस्ट किया जा चुका है।इस कांड की जांच पुलिस को सौंपी जा चुकी है। यह जांच भी इतनी जल्दी तो होना नहीं है।
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