Breaking News

कश्मीर पर ओवर रिएक्ट न करें। न अभी इसे मुद्दा बनाएं

खरी-खरी            Aug 12, 2019


यशवंत सिंह।
"कश्मीर पर ओवर रिएक्ट न करें। न अभी इसे मुद्दा बनाएं। मुझे नहीं लगता कि अलगाववादियों को बहुत ज्यादा समर्थन मिलने जा रहा है और घाटी अशांत हो जाएगी। सब कुछ बेहतर होगा, यही कामना है।"

सत्येंद्र पीएस की उपरोक्त पोस्ट पढ़ने के बाद लगा, मेरे मन में कश्मीर को लेकर जो चल रहा है, जो भड़ास है, उसे निकाल दूं, इस बात की परवाह किए बगैर कि कौन मुझे ग़लत कहेगा और कौन सही, कौन मेरे से सहमत होगा, कौन असहमत।

लोकतंत्र हमें आपको मौलिक तरीके से सोचने की छूट देता है। लोकतंत्र की इस खूबी का हमें इस्तेमाल करते रहना चाहिए। बिना किसी आग्रहों-पूर्वाग्रहों में फंसे, हमें अपनी सोच को अपनी दृष्टि-अनुभव से अपग्रेड करते हुए उसे बेबाक ढंग से सामने रख देना चाहिए।

सबसे पहली बात अपने साथियों से कहना चाहूंगा, सिर्फ इसलिए विरोध न करें कि शांति लाने के मकसद से, कश्मीर समस्या हल करने के लिए एक बड़ा कदम कांग्रेस ने नहीं बल्कि bjp वाली केंद्र सरकार ने उठाया है।

बीजेपी की मंशा केवल आतंकियों-अतिवादियों को अलग-थलग करने की है, यह दिख रहा है। इसीलिए कई किस्म के उपाय किए गए हैं।

आम कश्मीरी के प्रति अगर केंद्र सरकार की मंशा ठीक न होती तो मोदी जी ईद पर आम कश्मीरियों के लिए लाखों बकरा-मुर्गा न भेजते! सैकड़ा से ज्यादा राशन की दुकान न खोलते। साथ ही जो समय समय पर कर्फ्यू हटाया जा रहा है, यह भी दिखाता है कि सरकार खुद चाहती है हालात नॉर्मल हो जाए। जनता को तकलीफ न हो।

कश्मीर के मठाधीशों, कांग्रेस के पालतू बुद्धिजीवियों, बीजेपी का नाम सुनते ही आंख मूंदकर विरोध करने वाले हाई बीपी के मरीजों, लंगोटा धारी कामरेडों आदि इत्यादि से अनुरोध है कि एक बड़ी और पुरानी बीमारी के नए तरीके से इलाज की प्रक्रिया में धैर्य रखें।

ये इलाज न किया जाता तो भी किसी न किसी मुद्दे-घटना पर कश्मीर में अब तक कई दफे हिंसक बवाल हो चुका होता। सेना, पुलिस, नागरिक में से कोई न कोई मर कट रहा होता।

आंसू गैस, पैलट गन, गोलीबारी, कर्फ्यू जैसे शब्द अखबारों चैनलों में छप दिख रहे होते। इसलिए अभी जो हाल है, अभी जो वहां दुख है, अभी जो वहां लोग झेल रहे, उसे न्यूनतम नुकसान मान कर चलिए।

थोड़ा धैर्य रखना चाहिए। अंध विरोध सही नहीं। सरकारें अगर साफ नीयत मंशा से कुछ करें तो उसका समर्थन किया जाना चाहिए। कश्मीर में दीर्घकालिक शांति के लिए कुछ वक्त का एहतियात ज़रूरी है।

वहां के ट्रेडीशनल नेता न सिर्फ चोर और भ्रष्ट हैं बल्कि जनता से कटे भी हुए हैं। वे कांग्रेस सरकारों से मिले थे और मिलीभगत की नूराकुश्ती करते हुए जनता व जन आकांक्षा के नाम पर एक दूसरे को ब्लैकमेल करते थे।

जबसे राजनीति और समाज को समझना शुरू किया, तब से लहूलुहान कश्मीर को देख रहा हूँ। कश्मीर के बाप नेताओं की पीढ़ी बुढ़ा गयी तो बेटे-बेटी नेताओं की पीढ़ी राज करने आ गयी। आम कश्मीरी इस उस की बातों वादों आह्वानों के चक्कर में सड़क पर आता, पिटता, गिरता, खून खून होता रहा। मलाई खाते रहे इनके आका, दिल्ली से लेकर श्रीनगर और इस्लामाबाद में बैठे हुए आका लोग। आम जनता को बस मोहरा बना कर इस्तेमाल किया जाता रहा।

दशक दर दशक बीतते रहे। कश्मीर की स्क्रिप्ट न बदली। वही नेता, वही आतंकी, वही सेना, वही मांगें, वही हिंसा, वही खून खून! तब समझ में आना हम सब को बन्द हो गया था कि कश्मीर का हल क्या है. हमने कश्मीर और खून को एक तरह से एक दूसरे का पर्यायवाची मान इसे दिमाग के हार्ड डिस्क के एक कोने में आर्काइव कर दिया। कश्मीर में हिंसा, खून, गोलीबारी, कर्फ्यू जैसे शब्द धीरे धीरे अपनी संवेदना खोते गए।

पर बहुत दिन बाद एक रास्ता निकला है। बिल्कुल नया रास्ता। एक साहसिक रास्ता। इस रास्ते को मजबूत विल पावर वाली कोई सरकार ही निकाल सकती थी। इस बड़े और साहसिक प्रयोग को एक दिन होना ही था। कांग्रेस भी कर सकती थी। नहीं हिम्मत जुटा पाई। नेतृत्व विहीन कांग्रेस से इस हिम्मत की उम्मीद भी नहीं कर सकते थे।

हालांकि ये भी सच है कि कांग्रेस की सरकारों ने ही अनुच्छेद 370 में छेद करने का रास्ता दिखाया। एक नहीं बल्कि दो दो बार।

बीजेपी ने उसी रास्ते को अपनाया। उसने भी 370 में एक बार छेद किया है। ध्यान रखें, इस 370 को खत्म नहीं किया है। केवल संशोधित किया है, जैसा कांग्रेस सरकार करती रही है। अनुच्छेद 370 आज भी संविधान का पार्ट है।

कश्मीर को भारत से जोड़ने वाला पुल आज भी कायम है। बस पुल पर अब केवल कश्मीर के मठाधीश-आका लोगों को बिठा दिया गया है। बाकी आम कश्मीरी को पूरे भारत ने अपनी तरफ खींचकर गले लगा लिया है। छाती से चिपका लिया है।

श्रीनगर, दिल्ली और इस्लामाबाद के आकाओं के दम पर उछल कूद मचाने वालों को पीड़ा होगी ही। कृपया आम कश्मीरियों के दुख-सुख से बेपरवाह इन निहित स्वार्थी मठाधीशों-आकाओं की बौखलाहट को समझें।

इस चिरंतन अंसतुष्ट गैंग की आवाज़ आपको किसी न किसी रूप में फेसबुक-ट्वीटर और वेबसाइटों में भी दिखेगी। इनकी बात आए, उसमें दिक्कत नहीं। लेकिन हम आप इन्हें समझते-बूझते रहें, ये ज्यादा जरूरी है।

उम्मीद करते हैं कश्मीर में नया सूरज निकलने में कामयाब हो सकेगा।

आप सभी को ईद की बहुत बहुत मुबारकबाद!

लेखक भड़ास4मीडिया के संपादक हैं। यह आलेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है।

 


Tags:

murder-of-company-ceo brian-thomson-ceo-of-united-health-care bar-council-in-supreme-court advocates-are-not-permitted-to-practice-journalism-on-a-full-time-or-part-time-basis

इस खबर को शेयर करें


Comments