संजीव जैन।
लीजिए साहब, एससी-एसटी एक्ट के विरोध में कल भारत बंद का आयोजन मध्य प्रदेश सहित अधिकांश राज्यों में पूर्ण हो गया। कई राज्यों में इसका मिला-जुला प्रभाव रहा तो कई राज्यों में यह प्रभाव असरकारक रहा है।
पिछले अनेकों बंद के मुकाबले इस बंद की यह विशेषता रही कि बंद को सफल कराने के लिए अधिकांश स्थानों पर कोई जबरदस्ती नहीं की गई और ना ही जनधन की कोई ऐसी हानि हुई जिससे देश हिल जाता।
इसके बावजूद यह विचारणीय है इस बंद का केंद्र से लेकर राज्य सरकारों और अन्य राजनीतिक दलों पर प्रभाव क्या पड़ा है?
एक दिलचस्प बयान है 'लोकसभा की अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन का, ...उनका तर्क है कि यदि किसी बच्चे को चॉकलेट देने के बाद उससे चॉकलेट छीनी जाएगी तब वह आक्रोश करेगा ... निसंदेह ताई आपका तर्क वाजिब है लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि यदि 70 सालों के बाद भी कोई बच्चा 'कुपोषित बच्चा ही रह गया तो इसकी जिम्मेदारी किस पर डाली जाए?
कदापि यह जिम्मेदारी समाज के उस वर्ग की नहीं हो सकती जिसे इस कानून का लाभ नहीं मिला। जैसे कि एक बच्चा जब चॉकलेट खा रहा है तब दूसरा बच्चा उस स्वाद का आनंद नहीं ले सकता और ना ही उसको इसका लाभ मिलना है अलबत्ता वह बच्चा दूसरे बच्चे को चॉकलेट खाते हुए देखकर चिडेगा और आक्रोशित भी होगा, यदि उस बच्चे को भी चॉकलेट नहीं दी जाती है ..।
अब 70 सालों से एक वर्ग विशेष को बच्चा मानते हुए चॉकलेट दी जा रही है तो निश्चित ही दूसरा वर्ग इससे प्रभावित होगा ही, दूसरी बात यह भी है कि क्या केंद्र से लेकर राज्य सरकारें इतनी असफल, नाकारा रहीं कि पिछले 70 सालों में एक बच्चे को बड़ा नहीं कर पाईं और वह बच्चा आज भी कुपोषित होकर चॉकलेट खाने के लिए ही मजबूर है?
यदि यह बच्चा बड़ा हो गया होता तो निश्चित ही आज वह चॉकलेट की बजाय पोषण के अन्य व्यंजन ले रहा होता। लेकिन सरकार है कि एक बच्चे को बड़ा ही नहीं कर पाई बल्कि उस बच्चे को बच्चा बनाए रखते हुए अन्य बच्चों को कुपोषित कर दिया।
यह भी सही है कि अब यदि बच्चे के हाथ से चॉकलेट छीनी जाती है तब कोहराम मच जाएगा लेकिन यह भी वर्तमान दृश्यव्य सत्य है कि यदि एक ही बच्चे के हाथ में चॉकलेट अब निरंतर बनाए रखी गई तब बाकी बच्चे गंभीर कुपोषित रह जाएं?
फैसला सरकार को करना है, राजनीतिक पार्टियों को करना है, चाहे वह 70 वर्षों तक शासन में रही हो या फिर वर्तमान शासक हो...।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और सांध्य दैनिक प्रदेश की हलचल के प्रधान संपादक हैं।
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