नितिनमोहन शर्मा।
मिस्टर नाथ। वेलकम।
क्या हुआ जमीनी कार्यकर्ताओं को आगे लाओ अभियान का? आपके ही दल के एक जमीनी कार्यकर्ता जीतू दीवान ने शुरू किया था ये अभियान और आप तक पहुँचे थे। अपनो से ताजा ताजा धोखा खाये थे तब आप। लिहाजा जीतू दीवान की इस एकाकी प्रयास को आपने खूब सराहा था। वादा किया था कि ढूंढ ढूढं कर ऐसे नेता और कार्यकर्ताओ को फिर आगे लाया जाएगा जिन्होंने पार्टी के लिए जमीन पर जमकर पसीना बहाया। जिनकी निष्ठाएं कांग्रेस के प्रति अटूट और असीम हैं। जो बुरे हालातों में भी दल के साथ डटे रहें। अपने दम से "बाहुबली भाजपा" किला लड़ाते रहें। न्यूनतम संसाधनों के दम पर लेकिन हौसले के संग। याद है न जीतू दिवान के संग आपकी मुलाकात की भूल गए?*
शायद भूल गए। अन्यथा आप यू उनका पूजन करने नही आते, जो सत्ता के साकेत में जा बैठे थे। जिनके कारण आप सड़क पर आ गए। जो आपको छोड़कर चले गए। जिन्होंने दल को दरकिनार कर दूसरे दल का दामन थाम लिया। उनके लिए स्वागत सत्कार की जाजम बिछ रही हैं। और वफ़ादारों के लिए क्या? वे कब पूजाएँगे? उनका वंदन-अभिनंन्दन कब होगा जो घनघोर निराशाजनक वातावरण के बाद भी दल के प्रति उम्मीद से हैं। विचारधारा के प्रति समर्पित हैं।
*जीतू दिवान भी आपको याद नही होंगे। दिवान जैसे कई ने चप्पल घिसी , अब एक किनारे कर दिए गए हैं। देवेंद्र सिंह यादव, भूपेंद्र केतके, मोहन बजाज, दिलीप ठक्कर, स्व मोहन कसेरा जैसे दर्जनों नाम है जो सड़क पर किला लड़ाते थे। राजनीतिक रूप से दो दो हाथ सत्तारूढ़ दल के साथ करते थे। अभी भी ऐसे युवा नेता ही है जो अपने दम पर पार्टी में दम भरते रहते हैं। अभी भी आपकी भारी भरकम पार्टी में दो चार युवा दिनभर भाजपा से किला लड़ाते रहते हैं। इन सबकी भी सुध लीजिये न..!! ये ही असली कांग्रेसी हैं। जो किसी लालच में नही आये और आपके साथ, अपने दल के साथ डटे हुए हैं। वो भी भाजपा जैसी संसाधनों से लैस ताकतवर पार्टी के समक्ष।*
आप तो ऐसे कभी नही थे कि परायो से लाड़ लड़ाओ ओर अपनो दूर कर दो। आपके अनथक परिश्रम ने आज पार्टी को पुनः सत्ता के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया हैं। साढ़े 3 साल होने आए, विश्वासघात के बाद से जैसे आप एक "अगन" सीने में लिए दिनरात एक कर रहें हैं, ऐसे में पार्टी के वफ़ादार ज्यादा काम के है मिस्टर नाथ। बजाय "प्रवासियों" के। प्रवासी का स्वागत भी आपके बड़े दिल का परिचायक हैं। दोष भी कुछ नही। ये एक तरह से विरोधी दल के समक्ष बढ़त भी ये और आपकी रीति नीति की जीत भी है लेकिन इस सबमें दिवान, देवेन्द, जोशी, ठक्कर, खण्डेलवाल, चौरसिया आदि जैसे जमीनी कार्यकर्ताओ की भी सुध ली जाना चाहिये।
आपके बीते प्रवास पर इस पक्के इंदौरी अखबार ख़ुलासा फर्स्ट ने आज की तरह ही सवाल किया था कि आखिर कब तक शहर में कांग्रेस अनाथ यानी बिना शहर अध्यक्ष के रहेगी। आपने एक नही दो दो अध्यक्ष दे दिए। अच्छा किया। दोनो युवा है ओर ऊर्जावान। गोलू के आने से निसन्देह गांधी भवन की ताकत में इज़ाफ़ा हुआ है लेकिन अभी मंज़िल बहुत दूर हैं। एक तरफ बूथ मैनेजमेंट अंतिम चरण में पहुच गया और एक तरफ ये सवाल खड़ा हुआ है कि आखिर मिस्टर नाथ वफ़ादारो का पूजन-अर्चन कब करेंगे?
प्रवासी पँछी लौट आये, मुंडेर पर बैठे उनका क्या?
_*जब पीठ में ख़ंजर घोपने वाले पूजन के साथ बगल में फिर बैठाए जा सकते है तो उनका क्या दोष जो बेचारे टिकट नही मिलने पर बागी होकर लड़ लिए। सालभर से ज्यादा हो गया उनको पार्टी से निष्कासित हुए। एडवोकेट सन्तोष यादव ढाई हजार से ज्यादा वोट लाये। सैय्यद वाहिद अली 7 हजार वोट लाये। फारुख पठान 7600 वोट लाये। मनोज जाधव की पत्नी को 700 वोट मिले तो मुकेश जैन 1100 वोट लाये। और भी होंगे पर ये सब पार्टी से बाहर है। दोष है बगावत का लेकिन इलाके में वोट तो पार्टी के ही बटोरे न? जनाधार भी बताया। हजारो वोटो की ताकत थी फिर भी दूसरे दल में भी नही गए। बावजूद इसके मिशन 2023 के मुहाने पर भी पार्टी से बाहर है। जबकि भाजपा बागियों को माफ कर चुकी हैं। आप क्यो देर कर रहें हैं? जब "प्रवासी पंछी" लौट सकते है तो ये तो "गांधी भवन की मुंडेर" पर ही बैठे हैं। कही उड़कर नही गए। दाना पानी भी दल का ही चुग रहे हैं। अब पंख फड़फड़ा रहे हैं। चुनावी मौसम है। फुर्ररर न हो जाये। देख लीजिए। समय है अभी इन्हें फिर से अपने पिंजरे में लेने का।
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