Breaking News

मिस्टर शाह, ये ही तो मूल समस्या थी, ज़मीनी सब ज़मीन पर थे

खरी-खरी            Sep 28, 2023


नितिनमोहन शर्मा।

थेंक्स मोटाभाई पार्टी, शहर की आवाज लौटाई

 वक्त रहते "दिल्ली" प्रदेश पर फ़ोकस कर लेता तो आज ये दिन नही देखना पड़ते।

लगातार सत्ता के बावजूद सत्ता, संगठन से कार्यकर्ताओं को कुछ नही दिया।

अनुकूल हालातों में भूल गए प्रतिकूल परिस्थितियों में खून पसीना बहाने वालो को।

बड़े नेताओं ने बना लिए गुट, एक ही नेता को लगातार उपकृत करने के चलन ने कराई फ़जीहत।

कैलाश के टिकट की घोषणा से पार्टी कार्यकर्ताओं के दमकते चेहरे बता रहे हक़ीक़त

 थेंक्स मोटाभाई। आपने आपके कमलदल के औसत कार्यकर्ता के साथ-साथ इस शहर की आवाज भी लौटाई। ऐसा नही कि सत्तारूढ़ दल में बोलने वाले नेता नही? है तो ढेर लेकिन सब नफ़े नुकसान देखते हैं चाहे शहर का हित हो या पार्टी का। शहर का नुकसान हो जाये हो तो लेकिन अपनी राजनीतिक हैसियत पर आंच नही आना चाहिए। इंदौर करीब एक डेढ़ दशक से ये ही देख ओर झेल रहा है।

अब अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहने वाली आवाज आपने लोटा दी हैं। थेंक्स ऐसी ही आवाजों से आपका दल देश प्रदेश में सिरमौर हुआ था लेकिन ये आवाजें येन-केन-प्रकारेण हाशिये पर कर दी गईं या बिसरा दी गई थीं।

जमीनी, सब जमीन पर थे और उँगली कटाने वाले सब शहीद घोषित हो गए थे। जड़ो की तरफ लौटने और नीव के पत्थरों के इस पूजन के लिए थेंक्स। सालभर से ये पक्का इंदौरी अखबार ख़ुलासा फर्स्ट ये ही तो लिख-कह रहा था।*_

 मिस्टर शाह, मंगलवार शाम बड़ा गणपति पर कमलदल के कार्यकर्ताओं के चेहरे देखे? कैसे दमक रहे थे? एक नई ऊर्जा जोश चौराहे पर हिलोरें मार रहा था। उत्साह तो सोमवार रात से ही पसर गया था। कैलाश विजयवर्गीय की घोषणा विधानसभा 1 के लिए हुई थी लेकिन उत्साह शहर की सभी विधानसभा सीटों पर एक साथ पसर गया।

 ये उत्साह शहर की सीमा लांघ जिले की सभी 4 ग्रामीण सीटों पर भी देखा गया। ऐसा क्यों हुआ? दीप पर्व जैसा जश्न ज्यादा ज्यादा एक नम्बर के अलावा विधानसभा 2 में होना था या विधानसभा-3 में। लेकिन पूरे इंदौर में ये मना। सब जगह पटाखे फूटे। क्या कारण?

 मिस्टर शाह, ये कारण दिल्ली दरबार समय रहते जान लेता तो आज ये नोबत नही आती कि जवान बेटो की जगह बुढ़ापे में बाप को मैदान में आना पडे। चुनावी रणनीति के हिसाब से ये आपका मास्टर स्ट्रोक कहला सकता है लेकिन संगठन स्तर पर ये फैसला क्या साबित करता हैं?

कमलदल तो पीढ़ी परिवर्तन के दौर में प्रवेश कर गया था न? तभी तो हर युवा नेता स्वयं को विधायक मान रहा था। इसमे ज्यादातर वो ही थे जो पार्टी के अनुकूल हालातों में दल की जगह अपने नेता से आकर चिपके थे और रातो रात सबसे आगे खड़े हो गए।

 पुराने बिसरा दिए गए, वे नए पूजाने लगे जिन्हें आपके दल में आये " जुम्मा जुम्मा चार दिन" ही हुए थे। बावजूद इसके एक उम्मीद बन गई थी। फिर ये परिवर्तन एकाएक थम क्यो गया? तरुणाई तलाशती भाजपा का फिर से प्रोढ़ हो जाना क्या बताता हैं?

 मिस्टर शाह, हिंदुस्तान का दिल एमपी स्व अटलबिहारी वाजपेयी, कुशाभाऊ ठाकरे, प्यारेलाल खण्डेलवाल, कैलाश सारंग आदि नेताओ की जन्मभूमि-कर्मभूमि है। यहाँ के संगठन पर तो आपका दल देशभर में नाज़ करता है न? फिर ये नौबत कैसे आई कि आपके कमांड सम्भालने और पंतप्रधान के लगातार मूवमेंट्स के बाद भी दल छोड़कर नेता दूसरे दल में जा रहें हैं? वो भी एन चुनावी मुहाने पर।

जो भी गया, उसका एक ही कहना- अब भाजपा पहले वाली नहीं रही, कोई सम्पर्क पूछपरख ही नही तो क्या करें? ये संवादहीनता जैसा आरोप ही सबसे बड़ा झटका है उस दल के लिए जिसका मूलमंत्र ही- सम्पर्क-संवाद-समन्वय है।

ये तीन शब्दों ने ही तो कमलदल को दुनिया का सबसे बड़ा दल बनाया है न? फिर इसका अभाव मध्यप्रदेश में कैसे और कब हो गया? किसने इसकी शुरुआत की?

मिस्टर शाह, आपका यहाँ आना, आकर जम जाना तो ये ही साबित कर रहा है कि दिल्ली को अब यहां के नेतृत्व से उम्मीद भी कम और भरोसा भी कम रह गया। नहीं तो क्या कारण है कि इस बार सीधे "दिल्ली" से टिकट आ रहें हैं। वो भी प्रदेश के किसी बड़े नेता की जानकारी के।

बगैर जिलेवार रायशुमारी, पैनल के। बगैर चुनाव समिति के गठन के। अब प्रदेश का समूचा दिग्गज नेतृत्व मिशन 2023 की फतह के लिए मैदान में उतार दिया। इसमें चुनाव प्रबंधन समिति के मुखिया नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय तक। एक सीएम के रहते अनेक सीएम पद के दावेदारों का इस तरह चुनाव लड़ना या लड़वाना भाजपा की तो कम से कम परिपाटी नही रही हैं।

 सत्ता और संगठन में बन गए थे "गिरोह"

मिस्टर शाह, 17-18 बरस की सत्ता को लेकर जनता में उतनी एन्टीइनकमबेसी नहीं, जितनी आपके दल के नेताओं और कार्यकर्ताओं में हैं। हो भी क्यों नहीं? सत्ता का "एकक्षत्र" होने और दिल्ली दरबार के आंख फेर लेने के ये परिणाम है कि 6 माह में 7 बार पीएम को आना पड़ रहा और आपको बारम्बार। दिल्ली ने ये जानने या तलाशने की कोशिशें क्यो नही की कि निरन्तर सत्ता के बावजूद कार्यक्रताओं कुछ मिल रहा है या नही? पद-प्रतिष्ठा नहीं, कम से कम सम्मान मिल रहा है या नहीं? उनकी कहीं कोई सुनवाई हो रही है या नहीं? सत्ता और संगठन उनकी सुन रहा है या अपने अपने "गिरोह" बनाकर बस सत्ता सुख लूटा जा रहा हैं। इत्ती से ये बात ही समझ लेते तो आज ये हाल नहीं होते।

औसत कार्यकर्ता की आवाज कैलाश

बड़ा गणपति चौराहे पर जो कल चेहरे दमक रहे थे वे हर उस सवाल का जवाब है जो आपसे पूछे जा रहें हैं। चेहरों की दमक के पीछे केवल एक नाम कैलाश विजयवर्गीय। विजयवर्गीय प्रदेश भाजपा के उन सभी कार्यकर्ताओं की आवाज है जो विजयवर्गीय जैसे ही हाशिये पर करीने से सरका दिए गए थे। तमाम योग्यता होने के बाद भी। प्रतिकूल हालातों में पार्टी के लिए जी जान लगाने वाले कार्यकर्ता का प्रतीक है विजयवर्गीय।

औसत कार्यकर्ता की आवाज भी है वे। तभी तो जैसे ही उनके नाम की घोषणा हुई, औसत कार्यकर्ता को लगा जैसे उसको टिकट मिल गया। उसका पुराना वैभव लौट आया। वो उत्साहित हुआ और घर से वैसे ही निकलकर बड़ा गणपति पहुँचा, जैसे 90 के दशक में वो दीवानों सा सड़क पर निकलता था। उसके इसी जज्बे ने तो समूचे भारत पर अखण्ड राज करने वाली कांग्रेस की आज ये हालत कर दी और कमलदल को एकक्षत्र राज दे दिया।*

 बोला था न- जड़ों की ओर लौटेगी भाजपा

मिस्टर शाह, प्रदेश की सत्ता-संगठन ऐसे दीवानों को भूल गए। सत्ता में मशगूल हो गए। कोई पद नही दिए। *खाली पड़े रहे पद। प्राधिकरण बना दिये तो बोर्ड नही बनाया और बोर्ड बना दिया तो उसमें अपने वाले भर लिए। ये ही नही, संगठन और सत्ता के बीच की महीन दीवार भी ढहा बैठे और संगठन का दबदबा भी।

नतीज़ा ये हुआ कि बूथ अध्यक्ष से लेकर वार्ड प्रभारी, मण्डल अध्यक्ष, पार्षद, एमआईसी मेम्बर, एल्डरमैन, नगर इकाइयां सब सत्ता का सुख भोग रहे विधायकों के हवाले हो गया और औसत कार्यकर्ता हाशिये पर हो गया। जिसकी विधायक से पटरी नही बैठी, उसे खुलकर "जमा" करने का खेल शुरू हो गया।

किचन केबिनेट हर विधानसभा में न केवल अस्तित्व में आ गईं, बल्कि वो उस इलाके की भाजपा की भाग्यविधाता भी हो गई। नतीज़ा सामने हैं। आपको फिर से उन्हीं के पास लौटना पड़ा, जिन्होंने दल को ऊंचाई तक पंहुचाया। यानी वो ही बात जो सालभर से ये पक्का इंदौरी अख़बार लिख-कह रहा था- नींव के पत्थर कब पूजाएँगे? हमने ये भी लिखा था- जड़ों की और लौटेगी भाजपा।

 

 



इस खबर को शेयर करें


Comments