Breaking News

व्यवस्था याद रखे छोटे कफ़न और शव बहुत भारी होते हैं

खरी-खरी            Oct 06, 2025


ममता मल्हार।

दवा ही जहर बन गई और 6 मौतों से शुरू हुआ सिलसिला 16 तक पहुंच गया है।।मगर हमारी सरकार इतनी अलर्ट है कि पहले तो दवा बैन करने में देरी। फिर कार्रवाई में देरी। सरकार इतनी सजग है कि तमिलनाडु की रिपोर्ट आने के बाद मप्र में जांच शुरु हुई।

मुख्यमंत्री कह रहे हैं बच्चों के इलाज का खर्चा सरकार उठाएगी।

फिलहाल हाईलेवल मीटिंग के बाद 3 अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है।

मुख्यमंत्री जी बीमार तो पूरा सिस्टम है। बस अफसोस यह है कि इस सिस्टम में बैठे इस सिस्टम को चलाने वाले खुद के लिये और अपने परिवार के लिये दवाओं से लेकर खाना पानी तक टॉप क्लास का केमिकल फ़्री चुनते हैं।

मगर जनता के लिए केमिकल युक्त जहर युक्त चीजों से पेट भरना मजबूरी है। इस प्रदेश की एक और विडंबना है मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रियों तक एक-एक व्यक्ति पर कई कई पद हैं और बेहिसाब बड़ी जिम्मेदारियाँ हैं।

मतलब स्वास्थ्य मंत्री प्रदेश के उपमुख्यमंत्री भी हैं। जिन राज्यमंत्री के ऊपर कंट्रोल और दवा निरीक्षण का जिम्मा था वे तमाम होटलों आदि वालों को ठीक करते रहते हैं। अफसरों की तो क्या ही कहें बेचारे को-ऑर्डिनेशन ही नहीं कर पाए।

16 मौत हो गईं संदिग्ध मामले थे लेकिन एक भी पोस्टमॉर्टम नहीं हुआ। पहले दिन से ये सवाल उठ रहे थे।

खुद भाजपा के ही जबलपुर विधायक ने बढ़ती हुई सडन डैथस औऱ फ़ूड आईटम्स में मिलावट का मामला उठाया था मगर कोई खैर खबर नहीं।

इतने बड़े कांड के बाद भी नेशनल चैनलों पर कोई चर्चा नहीं। जरा-जरा सी बात पर जिनका धर्म खतरे में पड़ता है जिनकी पूरी ऊर्जा समय और डेटा दिनभर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के फैलाये हिन्दू-मुस्लिम जातिवाद के जहर को फैलाने में लगती है उनके लिए तो यह महत्व का मामला ही नहीं है।

बच्चे मरते हैं मरें हमें क्या हमारे थोड़े ही हैं।

अब मानसिकता ही यही बन गई है कि हमें तकलीफ नहीं तो एक ही प्रतिक्रिया अब ऐसा ही चल रहा है क्या करें।

जिम्मेदारों में गैरत होती तो तुरंत पद से इस्तीफ़ा देते।

दिलचस्प बात यह है कि जिन तत्कालीन कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह ने दवा को बैन करने का आदेश निकाला बकौल उनके उन पर दबाव बनाने के लिये कई फोन किये गए और 24 घण्टे भी नहीं बीते उनका ट्रांसफर कर दिया गया। फिलहाल जनता और ज्यादातर मीडिया व्यस्त है यह बताने में कि किस अधिकारी की ट्रांसफर के बाद कैसी विदाई हुई।

खाने से लेकर दवाओं तक में जहर है और ये नेक्सेस बहुत तगड़ा। इतना तगड़ा कि लूपहोल पर लूपहोल सामने आते रहें फर्क कुछ नहीं पड़ेगा। बाकि आओ मन्दिर-मस्जिद हिन्दू-मुस्लिम कर लें, यह हर समस्या का हल है।

पर यह व्यवस्था यह न भूले कि छोटे कफ़न और शव दोनों बहुत भारी होते हैं।

 

 


Tags:

chindwara-parasia cough-syrup death-of-16-childrens

इस खबर को शेयर करें


Comments