डॉ.प्रकाश हिन्दुस्तानी।
मध्यप्रदेश का विधानसभा चुनाव भाजपा शिवराज सिंह चौहान के चेहरे को सामने रखकर नहीं लड़ रही है, बल्कि नरेन्द्र मोदी के चेहरे को सामने रखकर लड़ रही है। मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव भाजपा के लिए कितने महत्वपूर्ण है इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले 11 दिनों में तीन बार मध्य प्रदेश का दौरा कर चुके हैं।
छह महीने में वह मध्यप्रदेश की नौ यात्राएं कर चुके हैं। विधानसभा चुनाव के बारे में अमित शाह ने पिछले दिनों कहा था कि अगर मध्यप्रदेश का चुनाव हार गए तो केन्द्र में अगले 50 साल तक सरकार बनाना हमारे लिए मुश्किल होगा। अगर मध्यप्रदेश जीत गए तो हमारे लिए यह जीत दिल्ली की राह आसान करेगी।
मध्यप्रदेश में चुनाव जीतना भाजपा के लिए इसलिए भी जरूरी है कि यहां लोकसभा की 29 सीट हैं, जिनमें से 28 बीजेपी के पास हैं। अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में इन सीटों में कमी होती है तो दिल्ली में बीजेपी की सरकार को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन फिर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को आम सभाओं में तवज्जो नहीं देते।
प्रधानमंत्री राज्य के मुख्यमंत्री को क्रेडिट देने में साधारण सौजन्य भी नहीं दिखाते, वह भी भाजपा के मुख्यमंत्री को। प्रधानमंत्री ना तो शिवराज सिंह चौहान की तारीफ करते हैं और ना ही मध्य प्रदेश सरकार की योजनाओं की प्रशंसा में दो शब्द भी कहते हैं। क्या इसका कारण यह है कि नरेन्द्र मोदी 2012 से ही शिवराज सिंह चौहान में एक प्रतिस्पर्धी को देखते हैं?
2012 में एक टीवी चैनल को इंटरव्यू के दौरान शिवराज सिंह से एंकर ने पूछा था कि गुजरात के विकास मॉडल के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे? तब शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि आप गुजरात मॉडल की बात मत कीजिए, विकास के मध्य प्रदेश मॉडल की बात कीजिए। हमारे लिए विकास का मॉडल मध्य प्रदेश मॉडल ही है।
2012 में जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में बीजेपी प्रोजेक्ट कर रही थी तब लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक ऐसे राजनेता हैं जिन्हें प्रशासन का अच्छा अनुभव है। शायद लाल कृष्ण आडवाणी की यही बात नरेन्द्र मोदी को आकर चुभ गई और लालकृष्ण आडवाणी को बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल में जाना पड़ा।
अब शिवराज हैं मोदी से करीब 9 साल छोटे, जाहिर है कि मार्गदर्शक मंडल में कौन पहले जायेगा?
मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव की तारीख का ऐलान होने ही वाला है लेकिन बीजेपी 18 साल मुख्यमंत्री रहनेवाले शिवराज के चेहरे पर चुनाव लड़ना तो दूर, शिवराज को टिकट भी देगी, तय नहीं है। शिवराज के नेतृत्व में ही 2018 का चुनाव लड़ा था। बहुमत नहीं मिला। करीब सवा साल बाद जब बीजेपी ने दलबदलुओं की मदद से सरकार बनाई, तब शिवराज ही मुख्यमंत्री बने। लगता था कि टैम्परेरी बने हैं पर वे फेविकोल लगाकर बैठे।
पिछले दस बारह साल में मोदी ने बीजेपी के कितने दिग्गज नेताओं को हाशिये पर धकेला, गिनती आसान है क्या? लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, उमा भारती, संजय जोशी और कुछ तो दिवंगत हो चुके।
प्रधानमंत्री बनने के बाद वे संघ शरणम गच्छामि करने खुलेआम नहीं जाते। समावेशी शिवराज सबको धोक देते हैं। पांव पखारते हैं और खर्ची-हर्जाना भी देते हैं। अपनी ललित कलाओं से उन्होंने न जाने कितने केन्द्रीय मंत्रियों, आलाकमान के नेताओं, प्रदेश भाजपा अध्यक्षों, दलबदलू नेताओं और 'भावी मुख्यमंत्रियों' की कुर्सी की एक टांग तोड़कर निकाल ली।
शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले व्यक्ति बन चुके हैं। वे देश में बीजेपी के ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिनका कार्यकाल सबसे लंबा रहा है और अभी भी जारी है। शिवराज सिंह चौहान को यह पता है कि विधानसभा चुनाव के बाद वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे, भले ही मध्य प्रदेश में बीजेपी को बहुमत मिल जाए। मध्य प्रदेश में अब कोई भी मुख्यमंत्री लंबे समय तक पद पर नहीं रहेगा, बीजेपी का हो तो बिल्कुल भी नहीं।
बीजेपी के दूसरे मुख्यमंत्रियों की तरह शिवराज सिंह चौहान भी पार्टी लाइन पर ही चलते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा करना उनकी मजबूरी है, लेकिन नरेन्द्र मोदी उनकी प्रशंसा करें, यह उनकी मजबूरी नहीं है। नरेन्द्र मोदी कभी भी शिवराज सिंह चौहान की प्रशंसा नहीं करते। अपवाद के अलावा अपनी तमाम मध्य प्रदेश यात्राओं के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भूल से भी शिवराज सिंह चौहान का नाम मंच से नहीं लिया और न ही मध्य प्रदेश सरकार की योजनाओं की तारीफ की।
वे शिवराज सिंह चौहान को बिल्कुल तवज्जो नहीं देना चाहते। इसके विपरीत शिवराज सिंह चौहान अपने प्रयासों से ही अपना कद लगातार बढ़ाते रहे और अब वह मध्य प्रदेश बीजेपी के एकछत्र नेता बने हुए हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद भी शिवराज सिंह चौहान का कद नहीं घटा है। अगर देश में मोदी हैं, तो मध्यप्रदेश में शिवराज हैं।
शिवराज सिंह चौहान नरेन्द्र मोदी का रेप्लिका है। 'नरेन्द्र मोदी का मध्य प्रदेश संस्करण'। वे एक ऐसा रेप्लिका हैं जो अपने मूल से भी ज्यादा अच्छा है। ज्यादा लोकप्रिय है।
शिवराज लाखों के सूट, चश्मा, घड़ी नहीं पहनते। सड़क पर ही, ज्यादातर समय जनता के बीच रहते हैं। सवा करोड़ महिलाओं को उन्होंने लाड़ली बहना बना लिया और अब वह उनका चुनावी मास्टर स्ट्रोक हो सकता है। उनकी स्वीकार्यता ज्यादा है।
नरेन्द्र मोदी पार्टी लाइन पर चलते हुए जो भी करते हैं, शिवराज सिंह चौहान भी पार्टी लाइन पर चलते हुए वही काम करते हैं और कहीं-कहीं तो वे नरेन्द्र मोदी को भी इससे पीछे छोड़ देते हैं।
कई उदाहरण हैं जिससे समझा जा सकता है कि नरेन्द्र मोदी के सामने शिवराज सिंह चौहान की हैसियत क्या है। हो सकता है कि शिवराज सिंह चौहान के इस कद से बीजेपी के दूसरे नेताओं की तरह ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी रश्क हो रहा हो! शिवराज को हाशिये पर धकेलने की तमाम कोशिशें नाकाम रही हैं। शिवराज की खूबी है उनकी जुबान! मुंह में शक्कर, पांव में चक्कर, सीने में आग, सिर पर फाग! अभिनय और डायलॉग डिलीवरी में उनका कोई जोड़ नहीं।
नरेन्द्र मोदी ने उज्जैन के महाकाल लोक का लोकार्पण किया था। यह पहला फेज़ था। उसके बाद महाकाल लोक के दूसरे फेज़ का लोकार्पण शिवराज सिंह चौहान ने कर दिया। महाकाल लोक की बढ़ती लोकप्रियता और धर्मप्राण जनता की आस्था को देखते हुए कहा जा सकता है कि महाकाल लोक में उज्जैन और उसके इलाके में विकास का एक नया ही दौर ला दिया है। (जिसके लिए धन का आबंटन कांग्रेस के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने किया था) प्रधानमंत्री ने अयोध्या में भूमि पूजन किया और काशी विश्वनाथ मंदिर के विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण भी किया था उसके जवाब में शिवराज सिंह चौहान ने बता दिया कि हम मध्य प्रदेश में 11 कॉरिडोर विकसित कर रहे हैं!
मुख्यमंत्री के रूप में गुजरात में वल्लभभाई पटेल की विशाल प्रतिमा बनाने का जो ख्वाब नरेन्द्र मोदी ने देखा था, उसे उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद तामीर कर दिया। शिवराज सिंह चौहान को प्रधानमंत्री बनने का मौका नहीं मिला, लेकिन उन्होंने ओंकारेश्वर में शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा का लोक अर्पण करके अपनी हैसियत बता दी।
नरेन्द्र मोदी ने केवल दो लोक का लोकार्पण किया, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने 11 लोक बनाने की शुरुआत की। मध्य प्रदेश में चित्रकूट में वनवासी रामपथ, ओरछा में रामराजा लोक, दतिया में पीतांबरा पीठ लोक, कॉरिडोर, इंदौर में अहिल्या नगरीय लोक, महू में जानापाव पर परशुराम लोक, छिंदवाड़ा में हनुमान लोक, सागर में रविदास धाम, ग्वालियर में शनि लोक, बड़वानी में नाग लोक, टंट्या मामा लोक और महू आंबेडकर स्मारक को भव्यतम बनाने का काम शुरू हो चुका है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी मध्य प्रदेश की यात्राओं में शिवराज सिंह चौहान की अपेक्षा की, लेकिन शिवराज सिंह चौहान ने अपने लिए लाइमलाइट खुद बटोर लिया। प्रधानमंत्री दिल्ली में मेट्रो में सफर करते हैं तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद इंदौर मेट्रो और भोपाल मेट्रो के ट्रायल रन का उद्घाटन करने पहुंच जाते हैं।
पहले मेट्रो ट्रेन को हरी झंडी दिखाते हैं फिर वह मेट्रो ट्रेन में बैठते हैं। उनकी तस्वीर खूब छपती हैं। जो एक तरफ से यह कहती है कि देखो महामहिम जी आप भले ही मुझे तवज्जो ना दो, पर मैं अपने काम खुद ही कर लेता हूं और वह भी आपसे बाद छोड़कर।
नरेन्द्र मोदी जितना 'मैं मैं' नहीं करते उससे ज्यादा तो शिवराज सिंह मामा मामा करते हैं। वे बार-बार कहते हैं कि मेरी बहनों और भांजियों, मेरे होते हुए तुम्हें कुछ नहीं होगा। मेरी बहनों का मुझे पूरा ख्याल है। मैं अपनी भांजियों को कोई कष्ट नहीं होने दूंगा। लोग कहते हैं कि जवाहरलाल नेहरू को बच्चे चाचा कहा करते थे, लेकिन यहां तो शिवराज सिंह चौहान ने खुद को ही मामा और भैया घोषित कर रखा है। सरकारी विज्ञापनों के वे सुपर मॉडल हैं।
पिछले कुछ महीनों में शिवराज सिंह चौहान का आत्मविश्वास गजब का बढ़ा है। वे अपने अफसरों और अपने बूते पर काम करते हैं। श्रेय खुद लेते हैं। न पार्टी को तवज्जो देते हैं न ही संघ को। मध्यप्रदेश में उन्होंने अपना कद बहुत बढ़ा लिया है जो उनकी पार्टी के नेताओं को रास नहीं आ रहा है! उनका आत्मविश्वास उनके भाषणों में झलकता है। उन्हें पता है कि वह चुनाव के बाद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं रहनेवाले। उन्हें यह बात भी पता है कि ना तो उन्हें पार्टी आलाकमान बहुत पसंद करती है और न ही प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री।
शिवराज सिंह चौहान ने अपने आप को मध्य प्रदेश की जनता और भारतीय जनता पार्टी के लिए महत्वपूर्ण बना दिया है। लोग उनसे मोहब्बत कर सकते हैं, नफरत कर सकते हैं लेकिन कोई भी उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकता। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी,अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी।
लोग कहते हैं कि मजबूरी का नाम महात्मा गांधी, लेकिन मध्य प्रदेश में मजबूरी का नाम शिवराज सिंह चौहान हो गया है। आज भले ही मध्य प्रदेश आर्थिक कर्ज में आकंठ डूबा हुआ हो, लेकिन शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रिय योजना में कोई कमी नहीं हो रही है।
मध्य प्रदेश की कृषि विकास दर 2002 में 3 फीसदी थी।लेकिन, इसके बाद राज्य ने कृषि क्षेत्र के विकास में व्यापक स्पीड पकड़ी। राज्य सरकार की तरफ से जारी आंकड़े के अनुसार 2020-21 में मध्य प्रदेश की कृषि विकास दर बढ़कर 18.89 फीसदी हो गई है। यानी 15.89 प्रतिशत की वृद्धि।
शिवराज सिंह चौहान जानते हैं कि उनकी आस्तीनों में बहुत सांप है। लेकिन उन्होंने सांप का जहर उतारने का मंत्र सीख लिया है। फिल्मी डायलॉग की तरह अब वह यह बात भी कहते हैं कि जब मैं चला जाऊंगा तब याद बहुत आऊंगा। टिकट मिलना शायद मुश्किल है, इसलिए भीड़ से पूछते हैं कि बोलो मैं इस बार चुनाव लड़ूं कि नहीं!
शिवराज सिंह चौहान राजनीति के कोई कच्चे खिलाड़ी नहीं है जो व्यक्ति 18 साल मध्य प्रदेश जैसे-जैसे विशाल राज्य में चार बार मुख्यमंत्री बन चुका हो, प्रशासनिक अधिकारियों को अपने और अपने लोगों के माध्यम से अंगुलियों पर नचाना जानता हो, पार्टी आलाकमान की हर हसरत पूरी करता हो, पार्टी अकाउंट के निजी अकाउंट्स के हितों का भी ध्यान रखता हो, और यह सब जानते हुए भी कर रहा हो, वह व्यक्ति शिवराज सिंह चौहान है। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव बीजेपी शिवराज के चेहरे पर नहीं लड़ रही, इससे वे अभी भले ही दुखी लग रहे हों, नतीजों के बाद वे राहत महसूस करेंगे।
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