श्रीकांत सक्सेना।
अपने देश की समृद्ध विरासत पर गर्व करने के लिए हमारे पास अनेक कारण हैं।
हमारी सभ्यता संसार की सबसे प्राचीन सभ्यता है।
प्रागैतिहासिक काल का पश्चिमी जगत मात्र कुछ उल्टा-सीधा अनुमान मात्र ही लगा सका है।
अपने पूर्वजों की अनुमानित शक्लें गढ़ने में कामयाब हो चुका है।
अब यह बात प्रत्येक भारतवासी जानता है कि पश्चिम के नृवंशशास्त्रियों के कितने ही पूर्वज आज भी वृक्षों की शाखाओं पर छलाँगें मारते हुए दिख जाएंगे ।
जबकि हमारे त्रिकालदर्शी ऋषिगण हमें बहुत पहले बता चुके हैं कि वर्तमान सृष्टि तो सातवीं सृष्टि है,उससे पूर्व छ:बार धरती पर जीवन पल्लवित हुआ और नष्ट हुआ।
उन सभी कालों में धरती पर जीवन करोड़ों वर्षों तक रहा तब हमारे पूर्वपुरुष इस धरती पर ही नहीं अपितु अन्य ग्रहों पर भी शासन किया करते थे।
हम विज्ञान,कला और समृद्धि के उस स्तर पर जीवन जीते थे जिसकी कल्पना करना भी वर्तमान मनुष्य के लिए (विशेषकर पश्चिम के मनुष्य के लिए )संभव नहीं है।
उस काल में हमारी स्त्रियाँ अपने शरीर के मल से,अथवा मात्र एक कटोरी खीर खाकर,किसी पुरुष के साथ संसर्ग किए बग़ैर महाबली और प्रबुद्ध संतानों को जन्म देती थीं।
हमारे योद्धाओं के धनुषों की टंकार सिर्फ इस धरती पर ही नहीं बल्कि अन्य ग्रहों में दहशत फैला देती थीं।
ऐसी टंकार जिसे सुनकर आकाशगंगाओं के पार स्वर्गलोक का राजा भी भयभीत होकर लड़खड़ाकर सिंहासन से गिर पड़ता था।
हमारे यहाँ के नटखट बच्चे खेल खेल में सूर्य को निगल लेते थे।
हमारी महान सभ्यता अतुलनीय रही है उसकी किसी भी अन्य सभ्यता से तुलना करना मात्र मूढ़ता है।
हमारे संस्कारों में वे तमाम दिव्य तत्व आज भी सूक्ष्म रूप में विद्यमान हैं।
बस विस्मृति के घटाटोप में हम अपनी बहुत सी क्षमताओं और दिव्यताओं को पहचान नहीं पा रहे हैं।
इस दिशा में ज्ञात इतिहास में पहली बार गंभीर प्रयास अब किए जा रहे हैं।
हमारे महानायक फिलहाल आर्यावृत्त के निवासियों को शौचसंस्कार सिखा रहे हैं।
हस्तप्रक्षालन की विधियों में नागरिकों को दीक्षित कर रहे हैं।
तमाम उम्र चुनाव लड़ते रहने और अनेक बार संसद में चुनकर आने के बावजूद हमारे माननीय यह नहीं सीख रहे हैं कि वोट किस प्रकार दिया जाता है।
लिहाज़ा सर्वोच्च सदन में बैठे माननीयों को ठीक से वोट देने के तरीके सिखाए जा रहे हैं।
हालांकि यह भी सच है कि पश्चिमी प्रभाव में आकर देश के अधिसंख्य नागरिक अब सिले हुए वस्त्र धारण करने लगे हैं, लेकिन अक्सर उनके वस्त्रों की डिजाईनें भी अतीत के पुराने वस्त्रों की नक़ल ही होती हैं।
वैसे सभी जानते हैं कि मनुष्य कपड़े पहनकर इस धरती पर नहीं आया, अब हमारी सरकार इस दिशा में गंभीर प्रयास कर रही है।
जल्दी ही हमारे नागरिक वस्त्रों के कृत्रिम आवरणों को उतार फेंकेंगे और प्राकृत तौर पर बिना वस्त्रों के रहा करेंगे।
निरंतर जूते या चप्पल आदि पहनने से धरती से मनुष्य का संपर्क कट गया है।
नागरिकों को इस बात के लिए तैयार किया जा रहा है कि वे यथाशीघ्र वस्त्रों,जूतों आदि का परित्याग करके अपनी महान विरासत को दोबारा जीते हुए दिगंबर वस्त्र धारण करें।
चरण तो शास्त्रोक्त रूप से शूद्र हैं ही सो उनके लिए जूते या चप्पल आदि धारण करना धर्म-विरुद्ध है।
सो नागरिक नंगे पैर चला करें ऐसा करने से हम अनगिनत बीमारियों का शिकार होने से भी बच जाएँगे और वृद्धावस्था की बहुत सी कठिनाइयाँ स्वत: नष्ट हो जाएँगी क्योंकि बहुत बड़ी आबादी का वृद्धावस्था तक पहुंचेगी ही नहीं।
कल्याणकारी राज्य के लिए प्राच्यदृष्टि के अनुसार वृद्धावस्था अनुत्पादक है।
देर से ही सही अब हम सुनहरे अतीत की ओर बढ़ रहे हैं जहाँ एक बार फिर से सभी ग्रहों और आकाशगंगाओं तक हमारी विजय पताका पुन: लहराएगी।
हमारे अच्छे दिन आने वाले हैं, स्त्रियाँ अपने शरीर के मल से या खीर आदि खाकर फिर से महामानवों को जन्म देने लगेंगी।
पश्चिम के घमंडी, क्षुद्र विचारक और वैज्ञानिक हमारे गुरुकुलों में दाख़िला पाने के लिए सिफ़ारिशी पत्र हाथों में लेकर पंक्तिबद्ध खड़े होंगे।
अंतत: विश्व को स्वीकार करना ही होगा कि हम ही संसार की सबसे प्राचीन सभ्यता के वाहक हैं।
हमारे पूर्वज महान थे,हम विश्वगुरु थे, हम महान हैं और जल्दी ही फिर से विश्वगुरु बनने की प्रक्रिया में हैं।
शौचसंस्कार,हस्तप्रक्षालन संस्कार और वोटदीक्षा संस्कार,मतदानुष्ठान आदि के ज़रिए हम इस दिशा में पहल कर चुके हैं।
हमारी सरकार अहोरात्रि इस दिशा में कार्य कर रही है जिसके परिणाम भी शीघ्र ही देखने को मिलेंगे....कृण्वंतो विश्वमार्यम्।शुभमस्तु।
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