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कुछ नेता अधिकारी और दलाल सदा सुहागन रहते हैं।

खरी-खरी, राज्य            Apr 29, 2019


राघवेंद्र सिंह।
भारतीय लोकतंत्र में एक जमाने में ठप्पा मारो तान के का नारा चलता था। चुनाव सुधार और उसके आधुनिकीकरण में इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन आ गई। इससे जो क्रांति आई वह यह कि मतदान केन्द्र लुटने जैसी घटनाएं कम हो गईं।

मतदान केन्द्रों पर कब्जा करने वाले गिरोह और उनके ठेकेदार बेरोजगार हो गए। लेकिन पिछले दिनों प्रतिपक्ष ने इसे लेकर जो हल्ला मचाया उससे पूरा देश चौंक गया। हालांकि ईवीएम कुछ हरकत करती है इस पर आम भारतीय विश्वास नहीं करता। लेकिन हारने वाली पार्टियां जरूर इस पर संदेह करती हैं।

गर्मी का पारा मध्यप्रदेश में 46 डिग्री के पार जा रहा है। आग बरसती गर्मी में चुनाव अधिकारी मानते हैं कि चालीस प्रतिशत मशीनें खराब हो सकती हैं इसलिए अतिरिक्त ईवीएम का इंतजाम किया गया है ताकि मतदान प्रभावित न हो। बस यहीं से प्रतिपक्ष के कान खड़े हो जाते हैं।

दरअसल कहा जाता है कि गर्मी से ईवीएम खराब नहीं होती हैं। मगर चुनाव में लगे अधिकारियों का तजुर्बा कहता है कि गर्मी से मशीन बिगड़ती है।
मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से 29 अप्रैल को 6 पर मतदान होना है। इसमें प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष राकेश सिंह की जबलपुर और मुख्यमंत्री कमलनाथ की परंपरागत सीट रही छिंदवाड़ा में वोट पड़ेगे।

इसके अलावा सीधी में नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह और भाजपा की रीती पाठक, मंडला से पूर्व केन्द्रीय मंत्री फग्गन कुलस्ते के साथ शहडोल और बालाघाट में प्रत्याशियों का भाग्य ईवीएम में बंद हो जाएगा।

पिछले चुनाव में इन छह में से छिन्दवाड़ा को छोड़ पांच सीटें भाजपा के खाते में गई थीं। अब कांग्रेस का दावा है कि आंकड़ा उल्टा बैठेगा। कांग्रेस खेमें में चिन्ता की बात ईवीएम को लेकर है।

दरअसल इस पार्टी में जिन नेताओं की दिलचस्पी ईवीएम में है उनका कहना है कि जब मशीन खराब नहीं होती हैं तो चालीस फीसदी अतिरिक्त मशीनों की व्यवस्था करने के पीछे कोई गणित जरूर है।

मध्यप्रदेश में 26 हजार 283 मतदान केन्द्र हैं। इनमें चालीस प्रतिशत मशीन खराब होने या उन्हें बदलने का मतलब है करीब 12 हजार अतिरिक्त मशीनों का शामिल होना। इतना बड़ा आंकड़ा कांग्रेस खेमे को चिन्तित कर रहा है।

चुनाव परिणाम कांग्रेस नेताओं की उम्मीद के आसपास आ गए तो ठीक नहीं तो गर्मी और ईवीएम पर सियासत का पारा चढ़ना तय है। कुल मिलाकर ईवीएम गरीब की लुगाई और सबकी भौजाई हो गई है। लगता है ठीकरा उसी के सिर फूटेगा।

भाजपा खेमा कहता है ईवीएम पर शक करने का मतलब अपनी हार से बचने का रास्ता ढूंढना। चुनाव आयोग पहले भी इस तरह की संदेह पर स्थिति साफ कर चुका है। उसका कहना है ईवीएम गड़बड़ी रहित मशीन है। इस पर सवाल खड़े करने का मतलब है लोकतंत्र को कमजोर करना।

भाजपा से लेकर कांग्रेस सरकार में कुछ नेता अधिकारी और दलाल सदा सुहागन रहते हैं। इन सबसे अलग हटके प्रदेश सरकार के एक अधिकारी जो जितने प्रिय शिवराज सिंह चौहान के थे उतने ही चहेते वे कमलनाथ के बने हुए हैं।

बेशक उनमें काबिलियत है तभी तो ऐसा संभव हो पा रहा है। वैसे अधिकारी किसी के नहीं सरकार के होते हैं। लेकिन कृषि उद्योग से जुड़े एक अधिकारी जब भाजपा शासन में किसान आंदोलन कर रहे थे और मंदसौर में उन पर गोलियां चलने पर सरकार संकट में थी तब वे विदेश यात्रा पर थे।

इत्तेफाक से इन दिनों चुनाव में सरकार कर्ज माफी के मुद्दे पर किसानों से घिरी हुई है तब भी यह अधिकारी जापान की यात्रा पर है।

लगता है कर्ज माफी का कोई फार्मूला खोजने गए हैं। अंदर खाने की खबर यह है कि चुनाव का मौसम है और लक्ष्मी पुत्र ये अफसर चुनावी चंदे से अपने को बचाने के लिए विदेशों की मौज कर रहे हैं।


राजनीति में लगता है अब त्रिस्तरीय व्यवस्था और मजबूत हो रही है। इसमें कार्यकर्ता जिले और प्रदेश के नेता। कार्यकर्ता जो हर छोटी बड़ी समस्या की चिन्ता पार्टी के लिए करता है।

जिले का नेता इसमें से कुछ समस्याओं को फिल्टर कर प्रदेश के नेताओं को समाधान करने के लिए बताता है।

बड़ा नेता केवल मलाईदार कामों की फिक्र करता है। उसे हार से ज्यादा मतलब नहीं होता वह अपनी सेटिंग की चिन्ता करता है। ज्यादा पूछने पर जवाब आता है लोकतंत्र है ये चुनाव हारे तो अगला जीत जाएंगे। इसलिए उसे न तो रेत चोरी बढ़ने से सरकार की छवि की चिन्ता है और न पुलिस की मनमानी से उसे कोई फर्क पड़ता है।

न ही स्कूलों में मास्टर अस्पतालों में डाक्टर के नहीं होने से उसका कुछ बिगड़ने वाला है। इसलिए कार्यकर्ताओं की इन मुद्दों पर चिन्ता को वह संजीदगी से नहीं लेता क्योंकि वो सियासत में सत्ता की अलग दुनिया में रहता है।

लेखक आईएनडी समाचार चैनल में प्रधान संपादक हैं।

 


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