ये जनता की बात करते-करते अपने घरों को कितना भर चुके हैं

खरी-खरी            Aug 14, 2019


मिलिंद कुलकर्णी।
भारत सरकार ने ‘द हिंदू’, टाइम्स ग्रुप और ‘टेलीग्राफ’ - इन तीन अखबारों के विज्ञापन बंद कर दिए हैं। ‘द हिंदू’ के मामले में वजह राफेल की खबर बताई जा रही है।

इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश के रूप में बताया जा रहा है और मीडिया आजादी के वैश्विक सूचकांक से जोड़ा जा रहा है। लेकिन, भारतीय नागरिक यह जानते हैं कि इन अखबार घरानों के मालिक जनता की बात करते-करते अपने घरों को कितना भर चुके हैं ?

ये प्रेस की आजादी की बात करते हुए कई उद्योग-धंधों के मालिक बन गए और चुनावों के दौरान अक्सर पैकेज की खदानों से हीरे बीनते रहे। देशवासी यह भी समझते हैं कि प्रगतिवादी सोच वाले इन अखबारों ने भारतीय संस्कृति और परंपराओं को विशेष बता कर किस तरह पेश किया या उसके पिछड़ेपन का मजाक बनाया ?

ये अखबार हमेशा ‘अंग्रेजीयत’ और पाश्चात्य संस्कृति के रंग डूबे रहे और आम भारतीयों की नब्ज को कभी नहीं पकड़ पाए। याद करें पुलवामा हमले पर टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर का शीर्षक क्या था और उस पर कैसी प्रतिक्रिया हुई थी ?

कोई बताए कि इन समाचार-पत्रों में हिंदुस्तानियों के तीज-त्योहार कैसे और कितने झलकते हैं ? या जानें कि अंग्रेजी अखबारों में भारतीय जनमानस की भावनाएं कितनी और कहां हैं ? और यदि नहीं हैं, तो सरकारी विज्ञापनों के बंद होने से मचाए जा रहे इस शोर या विलाप का जनता पर कितना असर होगा ?

माफ करें, सच्चाई यह है कि आज देश की जनता आपके विज्ञापन बंद करने वाली सरकार के कश्मीर में धारा 370 और 35-ए को खत्म करने के फैसले से इतनी खुश है कि उसे आपकी आमदनी के घटने से कोई लेना-देना नहीं है।

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